सुधा कुमारी
कहते हैं जब एक लड़का शिक्षित होता है तो एक नागरिक शिक्षित होता है, लेकिन जब एक लड़की शिक्षित होती है तो एक पीढ़ी शिक्षित होती है। शिक्षा के इस महत्व को समय-समय पर देश की सभी सरकारों ने पहचाना और इसके प्रोत्साहन के लिए अनेक उपाए भी किए। कभी देश के मानचित्र पर बिहार एक ऐसे राज्य के रूप जाना जाता था जहां विकास नाममात्र की थी। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह अन्य राज्यों के मुकाबले निचले पायदान पर रहता था। लेकिन आज स्थिती बदल चुकी है। राज्य सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। यूं तो शिक्षा का स्तर बिहार के हर जिले में भिन्न है, परंतु कुछ जिलों में शिक्षा के प्रति सराहनीय काम भी हुआ है। लोग शिक्षा का महत्व समझ चुके है और अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। आज के दौर में शिक्षा को महत्वपूर्ण माना गया है।
शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए बिहार में कई महत्वाकांक्षी पहल और योजनाएं प्रांरभ की गई है। एक तरफ जहां बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है वहीं पंचायती राज संस्थाएं एवं नगर निकायों के माध्यम से नये स्कूलों की स्वीकृति भी प्रदान की गई है। नये स्कूल भवनों का निर्माण किया गया है। खास बात यह है कि बालिका शिक्षा पर काफी जोर दिया जा रहा है। स्कूल जाने वाली बच्चियों को पोशाक और साईकिलों के लिए धन राशि दी जा रही है। अब तक 36 लाख 81 हजार बालिकाओं को पोशाक योजना और 13 लाख 60 हजार बालिकाओं को साईकिल योजना के अर्न्तगत लाभान्वित किया गया है। इसकी सफलता को देखते हुए अब बालकों के लिए भी पोशाक और साईकिल योजना प्रारंभ की गई है। प्राथमिक विद्यालयों में चारदीवारी निर्माण, खेलकूद के सामानों की व्यवस्था, षौचालय और पेयजल व्यवस्था, अतिरिक्त कमरों का निर्माण और बच्चों के लिए शिक्षण-परिभ्रमण की व्यवस्था जैसी बुनियादी चीजें मुख्यमंत्री समग्र विद्यालय विकास कार्यक्रम के अर्न्तगत की जा रही हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार में शिक्षा योजना को बढ़ावा देने में अन्य स्वरूप के साथ-साथ आंगनवाड़ी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिसकी शुरूआत 30 साल पहले 2 अक्टूबर 1975 को की गयी थी। प्रारंभ में राज्य के 33 ब्लॉक में इसकी नींव रखी गई थी। लेकिन अब प्रदेश सरकार की तरफ से हर गांव में आंगनबाडी की व्यवस्था हैं। आंगनबाडी मुखिया के माध्यम से बनाया जाता है। इसका उद्देश्य 0-6 वर्ष तक के बच्चों में शिक्षा को बढ़ावा देना ताकि प्राथमिक स्तर से ही बच्चे में शिक्षा की लौ जल उठे।
गुंचा फरजाना भतौरा गांव की एक समाज सेविका है जो केन्द्र नं0 78 में आंगनबाडी चलाती हैं। यह गांव मधुबनी जिले के सिंघिया पंचायत के अंतगर्त आता है। इसकी जनसंख्या मुश्किल से 1000 से 1500 तक है। यह एक ऐसा गांव हैं जिसके उत्तर में मधुबनी के कई जिले हैं जबकि दक्षिण में यह दरभंगा जिला से सटा हुआ हैं। गुंचा ने ज़िले में ही स्थित मदरसा अनवारूल ओलूम पैगम्बरपुर से मैट्रिक पास किया हैं। जिसे उर्दू में फोकानिया कहा जाता है। गांव में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का अलख जगाने के लिए इन्होंने आंगनबाडी में सेवा देने का निष्चय किया। बच्चों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ही आंगनबाड़ी खोली गई है ताकि खेल-खेल में ही बच्चों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन मिल सके।
इस आंगनबाडी में फिलहाल 40 बच्चें शिक्षा ग्रहण कर रहे है। जहां उन्हें लिखने-पढ़ने के लिए स्लेट, पेंसिल मफ्त मुहैया कराई जाती है। गुंचा के अनुसार अगर इन छोटे छोटे सुविधा को पूर्ति करेंगे तो बच्चें उसकी लालच में आकर पढनें आऐंगे। जिससे उनकी जागरुकता बढेगी और वह शिक्षा के लिए अग्रसर होगें। इसके अतिरिक्त इन बच्चों को दोपहर में खाने के लिए खिचड़ी और चोखा दिया जाता है। जो सरकार की प्रायोजित योजना के द्वारा बच्चों के भोजन के लिए लागू है। खास बात यह है कि यहां बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है और इसी अनुसार उन्हें सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। विशेष तौर पर दोपहर के खाने में पौश्टिकता को प्राथमिकता दी जाती है।
गुंचा फरजाना पिछले 6 सालों से इस आंगनबाडी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाडी केंद्र से शिक्षा ग्रहण करने के बाद बच्चों का दाखिला प्राथमिक विद्यालय में हो जाता है। जहां दाखिला करवाने पर उन्हें कोई सर्टिफिकेट की जरुरत नही होती। उनके अनुसार सरकार ने आंगनबाडी को इतनी सुविधा दे रखी है कि वो 0 से 5 साल तक के बच्चों की जन्मपत्री (जन्म प्रमाण पत्र) भी बना सकती है। इस जन्मपत्री को बनाने के लिए केवल 21 दिनों का समय दिया जाता हैं। यह ऐसी जन्मपत्री है जो कभी भी किसी भी स्कूल में दाखिला करवाने पर काम आ सकती है। पहले गांव के लोगों को इसे बनवाने के लिए शहर जाना पडता था। जहां उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ती थी, लेकिन अब वो सुविधा गांव में आंगनबाडी चलाने वाली सेविका को दे देने से उनका काम आसान हो गया है। आंगनबाड़ी के माध्यम से शिक्षा की योजना को बढ़ाने का सरकार का यह अनोखा तरीका काफी कामयाब होता नजर आ रहा है।
दूसरी तरफ आंगनबाड़ी के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए उसकी बागडोर जनता के हाथ में सौंपने के राज्य सरकार के फैसले ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। राज्य के समाज कल्याण विभाग के अनुसार बिहार में करीब अस्सी हजार आंगनबाड़ी केंद्र संचालित है जिनमें अधिकांश गरीब परिवार के बच्चे होते हैं। सरकार ने गरीबी की हीनभावना को बाल मन से निकालने के मकसद से सभी केंद्रों के बच्चों को पोशाक मुहैया करवाती है। जिसपर प्रत्येक बच्चा 250 रूपए खर्च आता है। इस तरह एक केंद्र पर करीब 10,973 रूपए खर्च करने को निर्धारित किया गया है। लेकिन आंगनबाड़ी में अनियमितताओं की खबरों के बाद सरकार ने इसकी निगरानी के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। जिसे केंद्र की सेविका को बर्खास्त करने का भी अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अलावा आंगनबाड़ी केंद्रों के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए अब प्रति माह केंद्रों को सामाजिक अंकेक्षण कराना अनिवार्य कर दिया गया है। इससे केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति और अनुपस्थिति की स्थिति का पता तो चलेगा ही साथ ही उनकी अनुपस्थिति के कारणों का भी पता चल सकेगा। (चरखा फीचर्स)