ग्रह का गुण एंव दशाफल(effects of different planets on raashis)

जातक के जन्म समय में उपस्थित ग्रहो की स्थिती के अनुसार जातक को ग्रह विशेष की दशा में शुभा शुभ फल मिलते है ग्रह यदि शुभ स्थिती होकर बली भी हो तो उसका फल दशा काल में उत्तम रहता है लेकिन अशुभ स्थिती में होकर निर्बल भी हो तो जातक को उस समय लगातार असफलताओं का सामना करना पड़ता है इसमें दो राय नही है । ये गुण

 

1. परमोच्चगत , 2. उच्च राशिगत 3. उच्च राशि के आगे या पीछे

4. मूल त्रिकोणी 5. स्व. क्षेत्री 6. मित्र राशि

7. तत्कालिन मित्र 8. समक्षेत्री 9. शत्रु क्षेत्री

10. नीचराशि के आस पास 11. नीच राशि 12. परमनीच

13. नीच या शत्रु वर्गगत 14. पाप ग्रहो से युक्त 15. स्वर्ण वर्ग

16. केन्द्र त्रिकोणगत 17. युद्ध में पराजित 18. अस्तगत

 

इन 18 गुणो के अनुसार ही कोई ग्रह अपनी दशान्त दशा में शुभाशुभ प्रभाव देता है । इसी आधार पर दशाओ का वर्गीकरण इस प्रकार है

 

1. सम्पूर्ण दशा:- परमोच्चगत या अति बलवान ग्रह की दशा सम्पूर्ण दशा कहलाती है ,इस दशा में राज्य लाभ ,भौतिक सुख समृद्धि व शुभ फल लक्ष्मी की कृपा एंव अन्य सुखदायक होती है जातक प्रत्येक कार्य में सफलता अवष्य प्राप्त करता है ।

2.पूर्ण दशा:- उच्च राशि या बलवान ग्रह की दशा पूर्णा कहलती है इस दशा में जातक को उत्तम ऐश्वर्य एंव सांसारिक सुख भोगो की प्राप्ति होती है ।

3.रिक्त दशा:- जो ग्रह नीच , परम नीच या बड़बलहीन होतो उसकी दशा रिक्त कहलाती है इस काल में नामानुसार जातक प्रत्येक कार्य में सुख की कमी का अनुभव करता है ।

4.अवरोहणी दशा:- जो ग्रह परमोच्च से आगे तथा परम नीच के बीच कंही भी हो तथा स्वराशिगत , मुल त्रिकोणी हो तो उसकी दशा अवरोहणी दशा कहलाती है । अर्थात परम उच्च से जितना परम नीच की तरफ का ग्रह होगा उतना दशाफल में कम सुख प्राप्त होता है । शुभ में गिरावट स्थिती अनुसार होता है ।

5. माध्यमा दशा:- जो ग्रह अपने मित्र या अधिमित्र की राशि में हो या अपने अधिमित्र की उच्च राशि में हो तो उसकी दशा माध्यम होती है। अर्थात शुभ फल की प्राप्ति माध्यम ही रहती है ।

6. आरोहिणी दशा:- नीच राशि के आगे की 6 राशियो में तथा उच्च राशि से पूर्व कही स्थित हो तो ग्रह की दशा आरोहिणी होती है जितना ग्रह उच्च राशि की तरफ बड़ेगा उतनी ही दशा फल में समृद्धि देने वाला होगा

7.अधमा दशा:- जो ग्रह नीचगत, शत्रुक्षेत्री , नीच नवाषं या शत्रु नवांष में होतो उसकी दशा अधमा दशा कहलाती है इस दशा में जातक की मान हानी क्लेष , रोग, ऋण व दुष्मनो का सामना करने से सांसारिक सुख भोग नश्ट प्रायः होते है ।

7 वक्री ग्रह की दशा:- वक्री ग्रह जब दशा फल में मार्गी रहेगा तब पूर्ण फल तथा वक्री होने पर साधारण फल की प्राप्ति होगी ।

इनके अतिरिक्त ग्रह कमजोर होकर यदि किसी बली ग्रह के साथ हो तो उसका शुभ फल दशा काल में मिलता है , उच्च बली ग्रह भी पापी ग्रहो एवं नीच ग्रहो के प्रभाव से अशुभ फल दे सकता हे । अन्यथा शुभफल में प्रभावनुसार कभी अवश्य होती है । पापी ग्रह बलवान हो तो उनका फल दशा के प्रारम्भ में भावस्थिति का फल माध्य में एंव पापग्रह की दृश्टि का फल अन्त में मिलता है । लेकिन शुभ ग्रह भावस्थिति का फल दशा के प्रारम्भ में , राशि की स्थिति का फल दशा के माध्य में , दृश्टि का फल अन्त में प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त ग्रह अपने शुभ या अशुभ फल को दशा काल में देता है । शुभ प्रभाव अधिक हो तो शुभ फल की अधिकता व पाप ग्रह प्रभाव अधिक हो तो पाप फल अधिक मिलता है । दो राशि के स्वामी ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि के आधार पर ही फल प्रायः देते है । सामान्य राशि का फल प्रायः कम ही देते है । जैसे कन्या लग्न में द्वितीय भाव में शनि हो तो शनि पंचम का स्वामी होकर आकस्मिक उच्च धन प्राप्ती का कारक शेयर सट्टे लाटरी लाभ लेकिन मूल त्रिकोण राशि कुम्भ शश्ठ में पड़ने से जातक कर्ग लेकर ही पारिवारिक कार्यो को सम्पन्न करते देखा जा सकता है उन पर हमेषा कर्ज भार बना रहना मूल त्रिकोणी राशि के विशेष फल के कारण ही है भाव के द्वितीयेष व सप्तमेष तथा इनसे युक्त दृश्ट ग्रहो तथा कारक कि दशा में भाव का नाष होता है किसी भावा से अश्टमेष दुर्बल ग्रह यदि छठे , सातवें , आठवें , में होतो अपनी दशा में भाव का नाष करता है । अर्थात् किसी ग्रह का फल अपनी दशा में कैसे रहेगा इसका निर्णय ग्रह की राशि भाव कारक स्थिती एंव उस पर पड़ने वाले ग्रहो के प्रभाव से निर्धारित होती है ।

4 COMMENTS

  1. Area name ANAND SHUKLA hai mere rashi meases rashi hai or chadrma ki mahadasha me cha drama ki antardasha chal rahi hai jiske Karen mera KISHI kar me man nahi lagta hai or mujhae khuch samajh me bhi nahi aata

  2. Jay Matadi guruji d b he 26/1/1977 5:00am Gujarat.gandhinagar guruji a hi mera samay bahut khrab chl raja he plzzz madad karo guruji

  3. में नहीं मानता हु ,सब अपने अपने कर्मो का खेल हे ,क्योकि सब तो राजा बन नहीं सकते ,इसलिए संतोष कर के हम अपना मन बहला लेते हे ,

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