आजाद भारत के सबसे बेबस प्रधानमंत्री साबित हुए मनमोहन

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लिमटी खरे

भारत गणराज्य भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार की आग में जल रहा है, उधर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं। कांग्रेस के युवराज ने कुछ दिन पहले गठबंधन की मजबूरियों पर प्रकाश डाला था। देशवासियों के जेहन में एक बात कौंध रही है कि बजट सत्र के ठीक पहले हुए इस फेरबदल और विस्तार के जरिए कांग्रेस क्या संदेश देना चाह रही है? संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में जितने घपले घोटाले सामने आए हैं, वे अब तक का रिकार्ड कहे जा सकते हैं। मंत्रियों, अफसरशाही की जुगलबंदी के चलते लालफीताशाही के बेलगाम घोड़े ठुमक ठुमक कर देशवासियों के सीने पर दली मूंग के मंगौड़े तल रहे हैं। महंगाई आसमान छू रही है, आम आदमी मरा जा रहा है, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे ज्यांतिषी नहीं हैं कि बता सकें कि आखिर कब महंगाई कम होगी। मनमोहन भूल जाते हैं कि वे भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री हैं। भारत के संविधान में भले ही महामहिम राष्ट्रपति को सर्वोच्च माना गया हो किन्तु ताकतवर तो प्रधानमंत्री ही होता है। अगर मनमोहन सिंह चाहें तो देश में मंहगाई, घपले घोटाले, भ्रष्टाचार पलक झपकते ही समाप्त हो सकता है, किन्तु इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है, जिसकी कमी डॉ.मनमोहन सिंह में साफ तौर पर परिलक्षित हो रही है।

उन्नीस माह पुरानी मनमोहन सरकार में पिछले लगभग अठ्ठारह माह से ही फेरबदल की सुगबुगाहट चल रही थी। तीन नए मंत्रियों को शामिल करने, तीन को पदोन्नति देने और चंद मंत्रियों के विभागों में फेरबदल के अलावा मनमोहन सिंह ने आखिर किया क्या है? हमारी नितांत निजी राय में यह मनमोहनी डमरू है, जो देश की मौजूदा समस्याओं, घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद की चिंघाड़ से देशवासियों का ध्यान बंटाने का असफल प्रयास कर रहा है। संप्रग दो में असफल और अक्षम मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि वे दस जनपथ (श्रीमती सोनिया गांधी के सरकारी आवास) की कठपुतली से ज्यादा और कुछ नहीं हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे मंत्रियों को बाहर करके मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की गिरती साख को बचाने की पहल कर सकते थे, वस्तुतः उन्होंने एसा किया नहीं है। आज देश प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछ रहा है कि जो मंत्री अपने विभाग में अक्षम, अयोग्य या भ्रष्टाचार कर रहा था, वह दूसरे विभाग में जाकर भला कैसे ईमानदार, योग्य और सक्षम हो जाएगा? साथ ही साथ प्रधानमंत्री को जनता को बताना ही होगा कि आखिर वे कौन सी वजह हैं जिनके चलते मंत्रियों के विभागों को महज उन्नीस माह में ही बदल दिया गया है। क्या वजह है कि सीपीजोशी को ग्रामीण विकास से हटाकर भूतल परिवहन मंत्रालय दिया गया है?

दरअसल विपक्ष द्वारा शीत सत्र ठप्प किए जाने के बाद अब बजट सत्र में अपनी खाल बचाने के लिए मंत्रियों के विभागों को आपस में बदलकर देश के साथ ही साथ विपक्ष को संदेश देना चाह रही है कि अब भ्रष्ट मंत्रियों की नकेल कस दी गई है। वैसे कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी की युवा तरूणाई को इस मंत्रीमण्डल में स्थान न देकर कांग्रेस ने एक संदेश और दिया है कि आने वाले फेरबदल में भ्रष्टों को स्थान नहीं दिया जाएगा, बजट सत्र के बाद जो फेरबदल होगा वह राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रोडमेप हो सकता है। इसी बीच इन तीन चार माहों में भ्रष्ट और नाकारा मंत्रियों को भी अपना चाल चलन सुधारने का मौका दिया जा रहा है, किन्तु मोटी खाल वाले मंत्रियों पर इसका असर शायद ही पड़ सके। इसी बीच मंहगाई पर काबू पाने के लिए भी कुछ प्रयास होने की उम्मीद दिख रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की जो छवि है, वह भी बचाकर रखने के लिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने देशी छोड़ विदेशी मीडिया को साधना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के प्रबंधक जानते हैं कि देश में मीडिया को साधना उतना आसान नहीं है, क्योंकि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बाद अघोषित चौथे स्तंभ ‘‘मीडिया‘‘ के पथभ्रष्ट होने के उपरांत ‘ब्लाग‘ ने पांचवे स्तंभ के बतौर अपने आप को स्थापित करना आरंभ कर दिया है।

इस फेरबदल में वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को भारी मशक्कत करनी पड़ी है। एक दूसरे के बीच लगातार संवाद कराने में कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल की महती भूमिका रही। किसी को इस फेरबदल का लाभ हुआ हो अथवा नहीं किन्तु इसका सीधा सीधा लाभ अहमद पटेल को होता दिख रहा है, जिन्होंने एक बार फिर कांग्रेस सुप्रीमो की नजर में अपनी स्थिति को मजबूत बना लिया है। दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच अहमद पटेल ने सेतु का काम ही किया है। बताते हैं कि फेरबदल में मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाने का सुझाव अहमद पटेल का ही था। पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष को मशविरा दिया कि अगर मंत्रियों को हटाया गया तो वे पार्टी के अंदर असंतोष को हवा देंगे, तब बजट सत्र में टू जी स्पेक्ट्रम, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना, नामों के खुलासे, महंगाई, सीवीसी की नियुक्ति आदि संवेदनशील मुद्दों पर पार्टीजनों को संभालना बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा। भले ही कांग्रेस प्रबंधकों ने यह सोचा होगा कि टीम मनमोहन से आक्रोश को शांत किया जा सकता है, किन्तु अभी भी पार्टी के अंदर लावा उबल ही रहा है।

मनमोहन ने देश की वर्तमान चुनौतियों को दरकिनार कर गठबंधन का धर्म ही निभाया है। भारत में गठबंधन सरकार का श्रीगणेश सत्तर के दशक में हुआ था। आपातकाल के उपरांत 1977 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, उस समय मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई थी। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंम्हाराव, अटल बिहारी बाजपेयी, एच.डी.देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल पुनः अटल बिहारी बाजपेयी के बाद डॉ.मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा दो बार गठबंधन के जरिए केंद्र पर राज किया है। इक्कीसवीं सदी में सरकार में शामिल सहयोगी दलों द्वारा जब तब कांग्रेस या भाजपा की कालर पकड़कर उसे झझकोरा है। बिना रीढ़ के प्रधानमंत्रियों ने सहयोगी दलों के इस रवैए को भी बरदाश्त किया है। बहरहाल जो भी हो गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही ने सत्ता की मलाई का रस्वादन अवश्य किया है पर गठबंधन के दो पाटों के बीच में पिसी तो आखिर देश की जनता ही है।

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लिमटी खरे
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4 COMMENTS

  1. खरे जी आपने कांग्रेस की बढ़िया तो उधेडी लेकिन यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इसकी शुरुआत इंदिरा गाँधी के समय ही हो चुकी थी,आपातकाल में क्या कुछ नहीं हुआ संजय गाँधी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया. इंदिरा गाँधी के समय से ही स्विस बंज्को में काले धन की चर्चा जोरो से प्ररुम्भ हो चुकी थी और अफवाहों की चपेट में भारत के प्रथम परिवार का नाम जुड़ने लगा था.लेकिन राजीव गाँधी के कुँत्रोची के संबंधो को छुपाने और बोफोर्स सौदे के दलाली के पैसो के लेन-देन में कुछ विदेशी समाचार पत्रों में राजीव गाँधी के खातो के बारे में महत्व्पुर्ड समाचार प्रकाशित भी प्रकाशित हुए (सुरेश चिपूलकर का महाजाल पैर आप कितना जानते है? ) जो अकाट्य प्रमादो के साथ छपे थे परन्तु जैसा कि आज भी हो रहा है यह बेशर्म और बेहया परिवार हमेशा की तरह खामोश रहा, इसके व्यवहार में हमेशा की तरह ख़ामोशी अख्तियार कर दुसरे अपराधियो और कर चोरो ,घूसखोरो के लिए रास्ता दिखने का कार्य इस परिवार द्वारा स्विस बैको में छिपे करदाताओ के पैसो को छुपाने वालो पैर कार्यवाही करने के स्थान पैर उनके नामो का खुलासा न करने पैर आमादा सरकार अपने स्वामिभक्ति में जनता के निगाहों में इस परिवार की संदिघ्तिता पर निश्चय की मुहर लगाने का कार्य कर रही है.अच्छे आलेख के लिए बधाई स्वीकार करे.

  2. मनमोहन सिंह को अब शिखंडी की उपाधी दे देनी चाहेये मान्यवर

  3. आज़ादी के बाद से वोह पहले पम हैं जिनके समय में तिरंगा झंडा फेह्राने में रोके लगाई जा रही है . बधाई हो राजमाता सोनिया की , युवराज राहुल की , जय कांग्रेस .

  4. श्रीमान खरे जी से बिलकुल सहमत. इस सरकार ने भ्रष्टाचार के उच्चतम स्तर को छु लिया है. कोई दर नहीं, हमारे देश में वोट तो परंपरागत है.

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