“पं. देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय संग्रहीत बंगला सामग्री के आधार पर ऋषि जीवन का अनुवाद व सम्पादन करने वाले विद्वान पं. घासीराम”

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मनमोहन कुमार आर्य

आर्यसमाज के संस्थापक ऋषि दयानन्द के जीवन विषयक इतिहास सामग्री के संग्रह में पं. लेखराम एवं पं. देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय का स्थान सर्वोपरि है। इन दोनों ऋषि भक्तों ने ऋषि दयानन्द के जीवन विषयक सामग्री का संग्रह कर उनके जो जीवन चरित्र लिखे हैं वह आर्यसमाज साहित्य में उच्च स्थान रखते हैं। यह दोनों ऋषि भक्त ऋषि दयानन्द का पूर्ण जीवन चरित स्वयं अपनी लेखनी से नहीं लिख सके। दोनों का ही जीवन चरित लिखते हुए देहावसान हो गया। पं. लेखराम जी की मृत्यु का कारण एक विधर्मी द्वारा उनकी हत्या करना रहा तो पं. देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय जी की मृत्यु का कारण उन्हें जीवन चरित की भूमिका व चार अध्याय लिखने के बाद पक्षाघात होना था। इन दोनों जीवन चरितो को बाद में पं. आत्माराम अमृतसरी जी और पं. घासीराम जी ने ऋषि जीवन लेखन का कार्य पूरा किया। पं0. लेखराम जी द्वारा संग्रहीत सामग्री के आधार पर उर्दू में जीवन चरित लिखा गया जबकि बाबू देवेन्द्र नाथ मुखोंपाध्याय जी की बंगला, गुजराती व अंग्रेजी की सामग्री के आधार पर हिन्दी में जीवन चरित लिखा गया। बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी ने जो सामग्री सग्रहित की थी वह बंगाली भाषा में थी। इस सामग्री का उल्लेख करते हुए अनुवाद व सम्पादक पं. घासीराम जी ने लिखा है कि उनकी मृत्यु के पश्चात् मैंने अपने स्वर्गीय मित्र बाबू ज्वालाप्रसाद एम00 की सहायता और उद्योग से जो काशी में डिप्टी कलक्टर थे, सम्भवतः सन् 1917-18 में देवेन्द्रबाबू की संगृहीत सामग्री प्राप्त की जो विचित्र दशा में थी। वह सैकड़ों छोटेबड़े कागज के टुकड़ों, नोटबुकों, पत्रों, पोस्टकार्डों, समाचार पत्रों की कतरनों के रूप में थी, जो कहीं पेंसिल से और कहीं स्याही से बंगाली अथवा अंग्रेजी अक्षरों में लिखी हुई थी। मैंने पहले उन सबको पढ़ा, फिर आर्यभाषा में उनका अनुवाद किया और फिर उन्हें एक क्रम में लिखा। इस प्रकार पं. घासीराम जी ने बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी द्वारा लगभग 10 वर्ष लगाकर संग्रहीत सामग्री के आधार पर ‘‘महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित नाम से जीवनचरित लिखा।हमने कुछ पूर्व बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी पर एक लेख लिखा था। उनका चित्र उपलब्ध नहीं हो सका तो हमें इसके लिये अपने मित्रों से फेसबुक के माध्यम से सम्पर्क किया। मित्रों ने पं. घासीराम जी के चित्र को भी महत्वपूर्ण मानते हुए उसे भी प्राप्त व प्रस्तुत करने की प्रेरणा की। वह चित्र हमें सुलभ हो गया है। इसे मित्रों तक पहुंचाने के लिये हम पं. घासीराम जी के जीवन विषयक कुछ तथ्यों को डॉ. भवानीलाल भारतीय जी की पुस्तक ‘आर्य लेखक कोश’ की सहायता से प्रस्तुत कर रहे हैं। पं. घासीराम जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा सं. 1929 (शनिवार, 14-12-1872) को मेरठ नगर में लाला द्वारिकादास के यहां हुआ। इनकी शिक्षा आगरा में हुई जहां से उन्होंने सन् 1896 में एफ.ए. और इसके बाद एल.एल.बी. की परीक्षायें उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् घासीराम जी जसवन्त कालेज, जोधपुर में दर्शन एवं तर्कशास्त्र के प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए किन्तु सन् 1901 में इस कार्य को छोड़ कर मेरठ आ गये। कुछ काल तक उन्होंने मेरठ में वकालत भी की किन्तु इस व्यवसाय में उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। इसमें उनकी रुचि भी नहीं थी। आप आर्य प्रतिनिधि सभा संयुक्त प्रान्त (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) के वर्षो तक प्रधान रहे। 30 नवम्बर सन् 1934 को उनका निधन हो गया। इनका कुल जीवन 61 वर्षों का रहा। पं. घासी राम जी को हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, बंगला और अंग्रेजी आदि भाषाओं का प्रौढ़ ज्ञान था। वे हिन्दी तथा अंग्रेजी के सफल लेखक थे।पं. घासीराम जी ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। उनके द्वारा लिखे व अनुदित ग्रन्थ गीता का उर्दू पद्यानुवाद, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का अंग्रेजी अनुवाद, महात्मा नारायण स्वामी कृत ईशोपनिषद भाष्य का अंग्रेजी अनुवाद तथा भक्ति सोपान हैं। डा. भवानीलाल भारतीय जी के अनुसार पं. घासीराम का सर्वाधिक महत्वपूर्व कार्य ऋषि दयानन्द के जीवन के गवेषक पं. देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय लिखित बंगला जीवन चरित का अनुवाद एवं सम्पादन है। बाबू मुखोपाध्याय जी द्वारा लिखित ऋषि के प्रथम बंगला भाषा के जीवन-चरित (1894) का हिन्दी अनुवाद पं. घासीराम ने किया था जो प्रथम बार सन् 1912 में भास्कर प्रेस मेरठ द्वारा छपा। जब देवेन्द्र बाबू ने अपने एतद् विषयक विशद अनुसंधान के बाद ऋषि जीवन का पुनर्लेखन आरम्भ किया और चार अध्याय पर्यन्त लिखकर दिवंगत हो गये, तो पं. घासीराम ने इस सामग्री को काशी में अधिगत किया और ग्रन्थ को पूरा कर दो खण्डों में आर्य साहित्य मण्डल, अजमेर से 1933 में प्रकाशित कराया। यदि देवेन्द्र बाबू को पं. घासीराम की मैत्री और सहयोग नहीं मिलता तो उनके द्वारा संगृहीत ऋषि दयानन्द के जीवन चरित विषयक आधारभूत बहुमूल्य सामग्री पाठकों के समक्ष नहीं पाती। पंडित घासीराम जी ने बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी द्वारा मुख्यतः बंगला में लिखित सामग्री के आधार पर जो जीवन चरित लेखन का कार्य किया वह हमें असाध्य को साध्य करने जैसा काम लगता है। किसी विद्वान द्वारा संग्रहीत सामग्री जो प्रायः नोट्स, रजिस्टर के पन्नों या कतरनों आदि के रूप में होती है, उसके आधार बनाकर सामग्री संग्रहीत करने वाले विद्वान की इच्छानुसार उसे लेखबद्ध करना असम्भव नहीं तो कठिन कार्य अवश्य होता है। सभी लेखकों व विद्वानों के लिये ऐसा करना सम्भव नहीं होता। अतः पंडित घासीराम जी ने जो कार्य किया है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसके लिये समूचा आर्यजगत उनका कृतज्ञ है। इसके लिये उनका कोटिशः धन्यवाद है।दिनांक 23-11-2018 को पं. घासीराम जी का जन्मदिवस था। उनकी जन्म तिथि कार्तिक पूर्णिमा सम्वत् 1929 विक्रमी है। 23-11-2018 को कार्तिक पूर्णिमा ही थी। यह विक्रमी सम्वत् 2075 वर्ष है। अतः 23 नवम्बर 2018 को हिन्दी तिथि के अनुसार उनका 146 वां जन्म दिवस था। हमने इसी दिन इस लेख को आरम्भ किया परन्तु समाप्ती से पूर्व  ही हमें दिल्ली जाना पड़ा। हम कल देहरादून लौटे और आज लेख को पूरा कर प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें लगता है कि ईश्वर की ऋषि भक्तों पर बड़ी कृपा रही कि पं. घासीराम जी बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी की सामग्री के आधार पर जीवन चरित लिखकर दिवंगत हुए। उन्होंने यह कार्य सन् 1933 में पूरा किया था। इसके एक वर्ष बाद सन् 1934 में उनका देहावसान हो गया। यदि किसी कारण वह पहले दिवंगत हो जाते तो यह इस कार्य में बाधा आती और यह पूर्ण न हो पाता। आज हम ऋषि दयानन्द के जीवन को इन दो महापुरुषों द्वारा संग्रहीत सामग्री वा उन पर आधारित जीवनचरितों के माध्यम से ही जानते हैं। अन्य जीवन चरित अधिकांशतः इन्हीं पर आधारित हैं। वैदिक स्कालर पं. भगवद्दत्त, रिसर्च स्कालर महर्षि दयानन्द का एक अनुसंधानपूर्ण जीवन चरित लिखना चाहते थे परन्तु उनके द्वारा परोपकारिणी सभा से एक टंकक वा लिपिक की सेवायें मांगने पर वह उपलब्ध नहीं कराई गईं। यदि यह उपलब्ध कराई गईं होती तो आज एक अन्य महत्वपूर्ण जीवन चरित भी हमारे पास होता।हम पंडित घासीराम जी के प्रति ऋषिभक्ति सहित बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय की सामग्री के आधार पर जीवनचरित के लेखन कार्य के लिये कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हमारे बहुत से ऋषि भक्त इन जीवन चरितों को क्रय करके इनके अध्ययन का लाभ नहीं उठाते। उन्हें इन जीवनचरितों के लेखकों, सम्पादकों, अनुवादकों व प्रकाशकों के पुरुषार्थ व कष्टों का अनुमान नहीं है। हमें लगता है कि हम एक प्रकार से कृतघ्नता से ग्रस्त है नहीं तो क्या कारण है कि पिछले पिच्चासी वर्षों में इस जीवन चरित की लगभग 3-4 हजार प्रतियां ही प्रकाशित हुई हैं। 85 वर्षों में इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ की चार हजार प्रतियां भी न खपना हमारी कृतघ्नता का प्रमाण नहीं तो क्या है? ईश्वर आर्यों को कर्तव्य बोध करायें जिससे वह स्वाध्याय के धन से सम्पन्न होकर आर्यसमाज और वैदिक धर्म के प्रचार को अपने जीवन का अंग बनायें।

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  1. पंडित घासी राम जी द्वारा सम्पादित ऋषि दयानन्द का जीवन चरित इस समय दो सम्पादकों प्रथम मैसेर्स विजयकुमार गोविंदराम हासानन्द] ४४०८ नई सड़क, दिल्ली-११०००६ से उपलब्ध है। उनका दूरभाष न. ०११२३९७७२१६ एवं २३९१४९४५ है. इसके अतिरिक्त यह श्री प्रभाकरदेवआर्य, हिण्डोन सिटी फ़ोन नो. ०९४१४०३४०७२ / ०७०१४२४८०३५ से भी उपलब्ध है। आप इनसे संपर्क कर सकते हैं। आप मुझे अपना व्हॉटशॉप्प न. भी प्रेषित करें। हम आपस में जुड़े रहेंगे। मेरा व्हाट्सअप नंबर है ९४१२९८५१२१। सादर।

  2. I am ASHUTOSH Rastogi, great grandson of Pandit Ghasiram Ji. We had two copies of the JEEVAN charitra out of which one was given to Arya Samaj Budhana Gate Meerut. Unfortunately our copy was also destroyed by termites and since then I am searching for one copy of both volumes. How could I get them? Please help.

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