जी हां जमीं से आसमां के सफर की ही बात हो रही है। लेकिन आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा की किसका सफर? मैं नेताओं के सफर की बात कर रहा हूं…
एक समय था जब नेता जनता से मिलने के लिये पैदल यात्रा पर निकलते थे, उनकी बातें सुनते थे और उस समय के नेताओं को जमीन से जुड़ा भी माना जाता था। समय बदला, राजनीति बदली और हमारे राजनेता भी बदल गये। धीरे-धीरे नेताओं ने पैदल यात्राओं की जगह गाड़ियों को चुना। कुछ ने रथ यात्राऐं निकाली और इससे फर्क भी पड़ा, रथ यात्राओं से पार्टियों ने अच्छा खासा जनाधार भी बटोरा। अब जमीन से जुड़े नेता की परिभाषा ही बदल गयी, रथ यात्रा करने वाला नेता जमीन से जुड़ा कहलाने लगा। फिर क्या था, रथ यात्राओं का सिलसिला जोर पकड़ता गया। हद तो तब हो गई, जब नेताओं ने अपनी गाड़ियों को ही रथ कहना शुरु कर दिया। माननीय आडवानी जी की रथ यात्रा का वर्णन करने की जरुरत मुझे महसूस नहीं होती। जनता के बीच ये नेता बुलेटप्रूफ गाड़ियों में आने लगे और उसे भी रथ कहने लगे। आज तो वो ‘रथ’ भी गायब हो गये हैं।
आज के नेता पैदल तो छोड़िये, गाड़ियों से भी जनता के बीच जाना पसन्द नहीं करते हैं। आज के ये नेता जनता से हवाई दौरों से ही रुबरु हो रहे हैं। जितना बड़ा नेता, उतना बड़ा हवाई जहाज और उस हवाई जहाज में नेता जी के बगल वाली सीट पर एक पत्रकार जो नेता जी की बात जनता के बीच पहुंचाये। इतनी हवा में होने के बावजूद ये नेता खुद को जमीन से जुड़ा बताते हैं।
इन नेताओं का जमीं से आसमां तक का सफर भले ही कितना सुखद रहा हो, लेकिन आज भी जनता परिवर्तन की आस लिये इन नेताओं की ओर आषा भरी निगाहों से देख रही है। पर इतने उंचे आसमान में अपने नेताओं को देखना जनता के लिए संभव नहीं है और आसमान से नेता जी को भी जनता चींटी की तरह लगती है। फिर जनता की बात कौन सुनेगा? कौन खरा उतरेगा उनकी कसौटी पर? पहले तो नेता जी से थोड़ी बहुत बात भी हो जाती थी, बात हो न हो दर्षन तो हो ही जाते थे लेकिन सूचना तकनीक में आई वृहद क्रांति के बाद, आवागमन एवं संचार के साधन तो सुलभ हो गए पर नेताजी के दर्षन और दुर्लभ हो गए। नेताजी पलक झपकते आते हैं और पलक झपकते ही फुर्र हो जाते हैं, तो भैया जनता की बात कहां से सुनेंगे। एक दिन नेता जी किसी गरीब के यहां पहुंच जाते हैं तो बड़ी वाहवाही बटोरते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं हैं। आज नेताओं को चाहिए कि वो आसमां से जनता के बीच न पहुंचें बल्कि जमीं से ही जनता तक पहुंचे और यथार्थ के धरातल पर कुछ प्रयास करें। ये न हो कि सिर्फ वोट बटोरने पहुंचें।
आज जरुरत है, ऐसे नेताओं की जो गांधीजी की तरह जनता के भले के लिए पैदल ही निकल पड़ें और जनता को भी चाहिए कि अपने वोट के द्वारा ऐसे नेताओं पर चोट करें ताकि ये नेता फिर से जमीं पर आ पहुंचें। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब खाली गाड़ियों पर नेता जी की मूर्ति आकर वोट मांगेगी।
– हिमांषु डबराल
जनता धरती पे बैठी है , नभ में मंच खड़ा है
जो जितना दूर मही से , उतना वही बड़ा है
sahi likha hai apne..aajkal yahi ho raha hai…
aise vicharo se nakaratmakta jhalakti hai par sach ka aina b dikhana jaroori hai. me dabral ji se purna roop se sahmat hu.