हत्यारे को मिली सजा…लेकिन उठे कई सवाल

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श्वेता सिंह

26 नवंबर 2008 दहशतगर्ती की काली रात.. जिसने 166 लोगों को मौत की नींद सुला दी…इस काली रात के गुनहगार को निचली अदालत ने 9 महीने पहले फांसी की सजा सुनाई थी…जिसे मुंबई हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है…लेकिन अब भी इस दरिंदे कसाब के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता बचा है…कसाब सुप्रीम कोर्ट जाएगा…और सौ आने की सच्चाई ये भी है कि…सु्प्रीम कोर्ट यानि देश के माननीय उच्च न्यायलय में भी फांसी की इस सजा को बरकरार रखा जाएगा….बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के सबने खुले दिल से स्वागत किाया…स्वागत लाजमी भी था…आखिर देश की आर्थिक राजधानी पर हमला कर 166 बेगुनहागारों के कातिल को सजा जो मिली है…लेकिन सवाल ये है कि…क्या ये सजा दहशतगर्दी पर लगाम लगाने के लिए काफी है…और सबसे बड़ी बात तो ये है कि…हाईकोर्ट ने कसाब के कथित दो भारतीय मददगारों को बाइज्जत बरी कर दिया…निचली अदालत ने भी फहीम अंसारी और शहाबुद्दीन की सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था…जाहिर सी बात है…इन गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए हमारे पास सबूतों का अभाव है…और हम उन्हें सजा नही दिलवा पाएंगे….सुप्रीम कोर्ट भी उन्हे बाइज्ज़त बरी कर देगी…दूसरे इस फैसले के खिलाफ अब कसाब सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा…मुमकिन है कि…सुप्रीम कोर्ट उस सजा को बरकरार रखे…उसके बाद एक और रास्ता दहशथगर्दी के इस सिरमौर के पास बचता है…वो है राष्ट्रपति के पास जाने का…विशेषज्ञों की मानें तो…कसाब को मौत की फंदा कसाब तक पहुंचने में सालों का वक्त लग सकता है…

मुंबई हादसा…और कसाब पर दो साल से भी ज्यादा समय से चल रहा मुकदमा कई सवालों को जन्म दे रहा…पहला सवाल तो यही है…कि क्यों हमारी कानून प्रक्रिया इतनी लंबी है…कि एक दहशतगर्द कातिल को सजा मिलने में सालों का वक्त लग जाता है…क्या भारतीय न्याय प्रणाली का लचीलापन उसकी कमजोरी नहीं बन गया है…क्यों गुनहगार को इतना वक्त मिलता है…यहां संविधान निर्माताओं को तर्क था कि…किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहीए…इसलिए वो न्याय पाने के लिए कई सीढ़ियों तक अपील कर सकता है…ऐसे में गुनाहगार आराम से समय काटते हैं…और निचली अदालत से हाईकोर्ट और हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक के चक्कर लगाने में सालों का वक्त लग जाता है…कसाब को भी पता है कि…उसे उसके जघन्यतम अपराध के लिए उच्च न्यायालय माफ करने वाली नहीं है….न ही माननीय राष्ट्रपति द्वारा उसकी अर्जी पर दया की मुहर लगेगी…ये वक्त और पैसे की बर्बादी के साथ साथ…166 लोगों के परिवार के लिए हर पल न्याय के आखिरी अंजाम तक पहुंचने की आस की बाट को भी तोड़ता है…आखिर कब एक दहशतगर्द को उसके किए की सज़ा मिलने का इंतजार कर रहें हेंमत करकरे, विजय सालस्कर, संदीप उन्नीकृष्णन के परिवार वाले… न्याय की बाट जोहते जोहते न्याय पाने की आस इतनी लंबी हो गई कि….संदीप के चाचा को खुदकुशी करनी पड़ी…इसका जवाब न तो सरकार के पास है और न ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के पास.

सवाल और भी हैं…क्यों दहशतगर्दों के साथियों को सजा दिलाने के लिए अभियोजन पक्ष सबूत इक्टठा नहीं कर पाया…और फहीम अंसारी के साथ शहाबुद्दीन को बाइज्जत बरी कर दिया गया…इन्हें सजा नहीं मिलना अभियोजन पक्ष के लिए भी बहुत बड़ा झटका है…अगर इन जैसे लोगों को सजा नहीं मिलेगी तो हमेशा सबूतों के अभाव में फहीम और शहाबुद्दीन जैसे अपराधी बरी होते रहेंगे…इन्हें न तो कानून का डर रहेगा…न ही पुलिस प्रशासन का….

सवाल तो ये भी है कि….पाकिस्तानी आतंकी कसाब को तो सजा मिल जाएगी…लेकिन भारतीय जमीं को दहशतगर्दी में झोंकने वाले उसके आकाओं को सजा कब मिलेगी… पाकिस्तानी कोर्ट में इस हमले की सुनवाई लगातार टाली जा रही है…हैरान करने वाली बात ये भी है…हमारे देश का कानून तो लचीला है कि…यहां के राजनीतिज्ञ और भी ढ़ीले हैं….मास्‍टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए कुछ ख़ास प्रयास भी नहीं किए जा रहे हैं… पाकिस्तान ने नवंबर, 2008 में हुए हमले के मुख्य आरोपी जकी-उर-रहमान लखवी के बारे में कहा है कि… उसे पाकिस्तान की अदालतें छोड़ सकती हैं …क्योंकि पाकिस्तान के जांच दल को भारत नहीं आने दिया गया है।

जाहिर है…हत्यारे की सजा को बरकरार रखने का बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला दहशतफैलाने वाले हर उस दरिंदे के लिए एक सबक है…जो दहशत फैलाने और लोगों की हत्या करने को जेहाद मानते हैं…लेकिन अपने देश में कसाब को मिली ये सजा…सजा में लगने वाला वक्त…सबूतों के अभाव में बरी होते आरोपी, कसाब की सुरक्षा पर किए जा रहे खर्च सवाल तो कई पैदा करते हैं…लेकिन इनका जवाब किसी के पास नहीं है…किसी के पास नहीं…

 

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