पुराने चेहरों के सहारे नया दांव लगा रही कांग्रेस

chintan shivir of congressमृत्युंजय दीक्षित
कांग्रेस के प्रोफेशनल रणनीतिकार प्रशांत किशोर की रणनीति अब लगा रहा है कि जमीन पर आने लगी है। प्रशांत की सलाह पर ही उप्र में मुस्लिम वोटों को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पहले कांग्रेस पार्टी ने वरिष्ठ मुस्लिम नेता गुलाम नबी आजाद को उप्र का प्रभारी बनाकर भेजा। उसके बाद आजाद व किशोर ने अपनी रणनीति को अब आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। आजाद की नियुक्ति के बाद प्रदेश की राजनीति में दगे हुए पुराने कारतूस राजबब्बर को चांैकाने वाले अंदाज में पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया है और उसके बाद ब्राहमण कार्ड खेलते हुए शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करके एक बहुत बड़ा दांव चल दिया है। प्रदेश में 27 वर्षो से सत्ताविहीन कांग्रेस के लिए यह चुनाव निश्चय ही जीवन और मरण का प्रश्न बन गये हैे। वास्तव में यह चुनाव कांग्रेस के अस्तित्व के लिए नहीं अपितु कांग्रेस में गांधी परिवार की हैसियत भी यही चुनाव बरकरार रखेंगे। यही कारण है कि इस बार कांग्रेस की यूपी रणनीति के सिलसिले में श्रीमती प्रियंका वाड्रा गहरी रूचि रखने लग गयी हैं तथ उप्र के विषय दिलचस्पी भी ले रही हैं।वैसे कांग्रेस की रणनीति अभी भी अधूरी लग रही हैं तथा आने वाले समय में वह दलित सम्मेलन, पिछड़ावर्ग सम्मेलन व अलपसंख्कों को जबर्दस्त तरीके से लुभाने के लिए अल्पंसख्यक सम्मेलन करवाने की भी योजना बनवा रही है। कांग्रेस की योजना छोटे -छोटे दलों से गठबंधन का नेतृत्व करके भाजपा के समीकरणों को बिगाड़ कर रख देने की भी बन रही है। लेकिन कांग्रेस की नयी रणनीति से सभी दलों को एक बार फिर से अपनी रणनीति बनानी पड़ रही है तथा सभी दलों ने अपना विचार- विमर्श शुरू भी कर दिया है।
मिशन -2017 के मददेनजर सपा बसपा व कांग्रेस के पास आने चेहरे हो गये हैं।छोटे दलों के पास भी अपने चेहरे व जातियां है। अब चेहरे को लेकर सबसे बड़ी समस्या व चुनौती भाजपा के ही पाले में आ गयी है। भाजपा के सामने दोहरा संकट पैदा हो गया है। भाजपा को अब ब्राहमण व सवर्ण मतदाता को साधना सबसे बड़ी चुनौती हो गया है। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को यूपी की बहू बताकर ब्राह्मण मतदाता को लुभाने के लिए एक बड़ा दांव खेल दिया है।
दिल्ली की चर्चित मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित कांग्रेस का कितना हित साधने में सफल होंगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन फिलहाल उन पर दिल्ली में मुख्यमंत्री रहते हुए वाटर टैंकर घोटाल पर आरोप लग रहे हैं तथा उनके शासनकाल में हुए कामनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी चर्चा का फिर से विषय तो बनेंगे हीं। अभी ब्राहमण मतदाता पूरी तरह से कांग्रेस के ही पक्ष में झुक जायेगा ऐसी संभावना फिलहाल दिखलायी नहीं पड़ रही है। ब्राहमण मतदाता और सवर्ण मतदाता में इस बार मतों का स्पष्ट विभाजन हो सकता हैं । माना जा रहा है कि प्रदेश में ब्राहमण मतदाताओंका कुल 12 प्रतिशत वोट है। अब भाजपा और बसपा के पास इन मतों का विभाजन रोकने की बड़ी गम्भीर चुनौती भी मिल गयी है। इसके अलावा कांग्रेस ने अपनी चुनाव प्रबंधन समिति ने जिन लोगों का समावेश किया है वह कांग्रेसी रणनीति का सबसे रोचक व अहम बदलाव है। चुनाव प्रबंधन समिति में डा. संजय सिंह व राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद प्रमोद तिवारी को चुनकर सवर्ण मतदातों को लुभाने का पूरा -पूरा जोखिम लिया है। प्रदेश के राजनैतिक इतिहास में 27 वर्षांे के बाद किसी भी राजनैतिक दल ने किसी भी ब्राहमण चेहरे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं घोषित किया यहां तक कि किसी भी दल ने इस बात की चर्चा तक नहीं की थी।
कांग्रेस की रणनीति से यह भी साफ नजर आ रहा है कि वह विशेष रूप से भाजपा के खिलाफ ही अपनी रणनीति बनाकर चल रही है। ज्ञातव्य है कि कांग्रेस ने राजबब्बर को अध्यक्ष बनाकर साफ संकेत दिया है कि वह पीएम मोदी के खिलाफ ही हमला बोलेंगे और लोकसभा चुनावों के दौरान बोटी -बोटी कटवा देंगे का बयान देने वाले इमरान मसूद को उपाध्यक्ष बनाकर अपनी संभावित आक्रामक रणनीत का ही संकेत दिया है। कांग्रेस पार्टी ने राजबब्बर को अध्यक्ष बनाकर भी जहां पिछड़ा कार्ड खेला है वहीं खत्री समाज को भी कांग्रेस में वापस लाने की कोशिश की है। राजबब्बर फिल्म अभिनेता होने के नाते कुछ हद तक अल्पसंख्यक समाज के युवा वर्ग सहित कुछ विशेष तबकों में खासे लोकप्रिय हैं तथा उनका प्रभाव भी है। समाजवादी सांसद डिंपल यादव को एक बार हरा भी चुके हैं। लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को कड़ी चुनौती देने का काम भी कर चुके हैं। कांग्रेस को आशा है कि राजबब्बर व इमरान मसूद के सहारे अल्पसंख्यकों को भी साधने का प्रयास कांग्रेस करने जा रही है। अल्संख्यकों को साधने के लिए कांग्रेस सो से अधिक अलपंसख्यक सम्मेलन भी करने जा रही हैं । अभी तक कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही थी कि सपा बसपा और भाजपा जातिवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीति कर रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि अब कांग्रेस ने भी वही काम करना प्रारम्भ कर दिया है।
प्रदेश की राजनीति में सच्चाई यह है कि आज कांग्रेस अपना अस्तित्व बरकार रखने के लिए बहुत बड़ा दांव चल रही है। दलित, ब्राहमण और मुस्लिम का गठजोड़ बनाकर अपनी पुरानी नाकामियों को भुलाकर पीएम मोदी व केंद्र की भाजपा सरकार को नाकाम बताने का काम करने जा रही है। कांग्रेस केपास सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसका परम्परागत वोटबैंक उसके पास से काफी दूर जा चुका है। कांग्रेस का जमीनी सतर पर संगठन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। अब प्रदेश की जनता कांग्रेस की पुरानी सरकारों का इतिहास भूल चुकी है। जबकि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और पूर्व मुख्ष्मंत्री शाीला दीक्षित के काम को आधार मानकर सत्ता के नजदीक पहुंचने का प्रयास कर रही है। खबरे ंयह भी है कि कांग्रेस अब छोटे दलो का गठबंधन बनाकर कम से कम विधानसभा में इस प्रकार का गणित बना देना चाहती है कि चुनावों के बाद भाजपा व सपा आदि को सत्ता से दूर रखने में सफलता मिल जाये तथा साथ ही सत्ता में उसकी सशक्त उपस्थिति भी दर्ज हो जाये। खबरे हैं कि कांग्रेस के नेताओं की अपना दल के असंतुष्ट नेता कृष्णा पटंेल गुट और स्वामी प्रसाद मौर्य से पर्दे के पीछे बात की है जबकि कौमी एकता दल , पीस पार्टी व रालेाद के साथ भी बात चल रही है। कुछ अन्य छोटे दलों के साथ भी बातचीत चल रही है। जदयू से भी बात चल रही है। वहीं दूसरी ओर निषादों के बीच काम करने वाले दल निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल(निषाद पार्टी) भी इस नये महागठबंधन के मोर्चे में शामिल हो सकती हंै। एक प्रकार से अब कांग्रेस की रणनीति भी काफी व्यापक नजर आने लग गयी है।वह सपा बसपा व भाजपा को चुनावों के पहले साफ संकेत देना चाह रही है कि वह भी मुकाबले में किसी से कम नही है तथा उसको कमजोर आंकना भूल भी हो सकती है।
यह कांग्रेस की दबाव की रणनीति का ही परिणाम है कि भाजपा की कार्यसमिति की बैठक कुछ दिनों के लिए टाल दी गयी है। सपा व बसपा के प्रवक्ता कांग्रेस के नेताओं व चेहरों को दगे हुए कारतूस की संज्ञा दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने प्रशांत किशोर पर सीधा हमला बोलते हुए कहा है कि प्रशांत ने कांग्रेस के लिए कांट्रैक्ट लिया है व सुपारी। आप नेताओं का कहना है कि श्रीमती शीला दीक्षित कांग्रेस की सर्वाधिक नाकाम मुख्यमंत्री रहीं उनके ही मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस का दिल्ली सूपड़ा साफ हो गया था। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने भविष्यवाणी की है कि राजबब्बर व श्रीमती शीला दीक्षित जैसे चेहरों के कारण कांग्रेस प्रदेश के आगामी चुनावों में अब तक का सबसे शर्मनाक प्रदर्शन करने जा रही है। प्रदेश के सपा नेताओं ने प्रियंका पर चुटकी लेते हुए कहा है कि कांग्रेस ने लगता है कि राहुल गांधी को राजनीति में फ्लाप नेता मान लिया है।

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