संसदीय व्यवस्था की आत्मा है प्रश्नकाल, पर . . .

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लिमटी खरे

कोरोना काल चल रहा है, वर्तमान में सामान्य स्थितियां नहीं हैं। कोरोना काल में बहुत सारी बातों, रहन सहन, चाल चलन आदि में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। संसदीय परंपराएं भी इससे अछूती कतई नहीं मानी जा सकती हैं। कोरोना महामारी के बीच 14 सितंबर से आरंभ हो रहे मानूसन सत्र की अधिसूचना के साथ ही विवाद भी गहराता दिख रहा है। कोरोना कॉल में संसद की परंपराओं में आंशिक तब्दीली भी की गई है। इस बार संसद में प्रश्नकाल नहीं होगा। सभी को समझना होगा कि प्रश्नकाल को अगर स्थगित किया गया है तो मामला कुछ गंभीर ही होगा तभी ऐसा किया गया है।

देखा जाए तो संसद का प्रश्नकाल प्रत्येक संसद सदस्य को सरकार के द्वारा किए गए, या किए जा रहे अथवा किए जाने वाले हर क्रिया कलाप पर सवाल उठाने का अधिकार देता है। प्रश्नकाल को संसदीय व्यवस्था का स्पंदन अथवा आत्मा निरूपित किया जा सकता है। संसद का अब तक के नजारे पर अगर आप गौर फरमाएं तो संसद में अधिकांश समय पार्टी लाईन पर ही बहस होती दिखती है, पर प्रश्नकाल का नजारा अलग ही होता है। सांसदों के द्वारा तारांकित प्रश्नों के जरिए सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जाता है और जवाब अगर संतोष जनक नहीं है तो पूरक प्रश्नों के जरिए सरकार को स्पष्ट तौर पर जवाब देने के लिए मजबूर किया जाता है। कई बार इस तरह के नजारे भी देखने को मिलते हैं कि सत्ताधारी दल के सांसद ही अपनी सरकार को घेरते नजर आते हैं।

लोकसभा सचिवालय ने स्पष्ट किया है कि कोरोना महामारी के कारण उपजी असाधारण स्थितियों के चलते प्रश्नकाल को प्रथक करने का प्रस्ताव लाया गया है। इससे प्रश्नकाल के दौरान दीर्घा में मौजूद संबंधित विभागों के अधिकारियों की फौज को वहां नहीं रहना होगा और शारीरिक दूरी के नियम का पालन हो सकेगा। एक या दो दिन प्रश्नकाल स्थगित रखना ठीक है पर लगातार 18 दिनों तक प्रश्नकाल न होना एक जुदा बात मानी जा सकती है। इसके साथ ही शून्यकाल आधे धंटे का किया गया है। प्रश्नकाल सिर्फ मानसून सत्र के लिए स्थगित रखा जा रहा है। इसमें भी सरकार के द्वारा हर दिन 160 तारांकित सवालों के जवाब दिए जाएंगे। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है कि प्रश्नकाल संसद की कार्यवाही का हिस्सा नहीं बन रहा हो, इसके पहले भी अनेक बार प्रश्नकाल को हटाया जा चुका है।

यहां इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यह पहला मौका होगा जब संसद भी कोरोना के चरमकाल में बैठेगी। संसद को देश की सबसे बड़ी पंचायत माना जाता है। सांसदों को पंच भी माना जा सकता है। सांसदों को आम जनता अपना अगुआ यानी पायोनियर भी मानती है। इसलिए सांसदों को भी शारीरिक दूरी की एक मिसाल पेश की जाना चाहिए ताकि देश भर में इसका बेहतरीन और सकारात्मक संदेश जा सके। सांसद प्रश्नकाल को लेकर वाद विवाद में उलझे नजर आ रहे हैं, पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले पांच सालों में ही राज्यसभा का साठ फीसदी से ज्यादा समय हंगामें की ही भेंट चढ़ चुका है।

आईए अब आपको बताते हैं कि आखिर प्रश्नकाल होता क्या है! दरअसल, लोकसभा में संसद सत्र पहला घंटा अर्थात 60 मिनट सवाल पूछने के लिए होता है, जिसे प्रश्नकाल कहा जाता है। इस दौरान सांसद सरकार के कामकाज को लेकर संबंधित विभाग के मंत्रियों से अपने सवालों का सीधे जवाब मांगते हैं और मंत्री जिनकी प्रश्नों का उत्तर देने की बारी होती है, वो खड़े होकर संबंधित सवाल का जवाब देते हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब संसद के सत्र से प्रश्नकाल को निलंबित किया गया है। इससे पहले विभिन्न कारणों से 1991 में और उससे पहले 1962, 1975 और 1976 में भी प्रश्नकाल नहीं हुआ था।

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान संसद के शीतकालीन सत्र में प्रश्नकाल को प्रथक कर दिया गया था। चीन और भारत के बीच युद्ध 20 अक्टूबर को शुरू हुआ और 21 नवंबर तक चला। इसके अलावा, सत्र की समय सारणी में भी बदलाव किया गया और 11 बजे की बजाय 12 बजे से सत्र शुरू हुआ। 34 दिन के बदले 26 दिन ही सत्र चल पाया था। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान भी संसद में प्रश्नकाल को छोड़ दिया गया था। पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश के जन्म की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा में की थी। उस दौरान लोकसभा की कार्यवाही के समय को भी बदलकर दस बजे से 1 बजे तक कर दिया गया था।

इंदिरा गांधी के समय लगी इमरजेंसी के दौरान भी संसद का कम से कम दो सत्र बिना प्रश्नकाल के चला था। जून 1975 और मार्च 1977 के बीच-आपातकाल के दौरान पांच संसद सत्र आयोजित किए गए। 1975 के मॉनसून सत्र जो कि आपातकाल की घोषणा के बाद पहला संसद सत्र था, में प्रश्नकाल नहीं था। इतना ही नहीं, 1976 में के शीतकालीन सत्र में भी प्रश्नकाल नहीं था।  इस दौरान कहा गया था कि संसद के मॉनसून सत्र के दौरान मंत्रियों द्वारा पूछे जाने वाले अतारांकित प्रश्न या लिखित प्रश्नों की अनुमति दी जाएगी मगर प्रश्नकाल रद्द रहेगा। यह फैसला विपक्ष के विरोध के बाद लिया गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार सवालों से भाग रही है और विपक्ष के अधिकारों का हनन कर रही है।

आईए अब आपको बताते हैं कि प्रश्नकाल में कितने प्रक्रार के प्रश्न पूछे जाते हैं! सबसे पहले तारांकित प्रश्न के बारे में जानिए। संसद में सत्र के दौरान पूछे जाने वाला तारांकित प्रश्न वह होता है, जिसका सदस्य सदन में मौखिक उत्तर चाहता है और जिस पर तारांक लगा होता है। हालांकि, इसमें स्पीकर की अनुमति से क्रॉस प्रश्न अर्थात पूरक प्रश्न की गुंजाइश होती है। ये प्रश्न हरे रंग में मुद्रित होते हैं।

अब जानिए किसे कहा जाता है कि अतारांकित प्रश्न। तारांकित के उलट अतारांकित प्रश्न वह होता है, जिसका संसद सदस्य सदन में मौखिक उत्तर नहीं चाहता है। जवाब के लिए स्पीकर एक समय निर्धारित करते हैं। अतारांकित प्रश्न पर पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।

इसके अलावा संसद में अल्प सूचना प्रश्न भी पूछे जाते हैं। तारांकित या अतारांकित प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए सदस्य को 10 दिन पूर्व सूचना देनी पड़ती है, मगर इसमें कोई प्रश्न पूरे 10 दिन से कम की सूचना पर पूछा जा सकता है। अल्प सूचना प्रश्न्, वह होता है जो बिना देरी के लोक महत्व से संबंधित होता है और जिसे एक सामान्य प्रश्नन हेतु विनिर्दिष्ट सूचनावधि से कम अवधि के भीतर पूछा जा सकता है। एक तारांकित प्रश्नश की तरह, इसका भी मौखिक उत्तर दिया जाता है, जिसके बाद पूरक प्रश्न  पूछे जा सकते हैं।

संसद में गैर सरकारी सदस्य से प्रश्न पूछे जा सकते हैं। इसमें उन से प्रश्न किया जाता है जो मंत्री नहीं होते हैं। इसमें प्रश्न स्वयं सदस्य से ही पूछा जाता है और यह उस स्थिति में पूछा जाता है जब इसका विषय सभा के कार्य से संबंधित किसी विधेयक, संकल्प या ऐसे अन्य मामले से संबंधित हो जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी हो।

कुल मिलाकर कोरोना काल में असाधारण परिस्थितियों के चलते प्रश्न काल को स्थगित किया गया है। देखा जाए तो यह एक तरह से उचित ही है। संसद सदस्यों को जो प्रश्न पूछने हों वे इसके बाद वाले सत्रों में भी पूछ सकते हैं। इसके साथ ही साथ सांसदों को यह अधिकार भी होता है कि वे सीधे सीधे मंत्री या संबंधित अधिकारी को पत्र लिखकर जानकारी मांग सकते हैं। सांसदों को वैसे भी अधिकारियों से लिखित तौर पर प्रश्न पूछकर उत्तर मांगने चाहिए और अगर उत्तर संतोष जनक न हों तक संसद के पटल पर इन्हें रखा जाना चाहिए।कोरोनाकाल चल रहा है, आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, घर से निकलते समय मास्क का उपयोग जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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