सवाल : क्या जनगणना-2021 को टाला जाना संभव है?

0
182

    किसी भी मुल्क के लिए जनगणना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है।‌ किसी एक मुल्क के विकास का पैमाना तय करने में जनगणना की उपयोगिता बढ़ जाती है। जनगणना जैसा कि नाम से ही जाहिर हो जाता है कि इसमें लोगों की संख्या का पता लगाया जाता है। इसके साथ-साथ उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन संबंधित को इकट्ठा कर अध्ययन किया जाता है। अध्ययन के बाद इसे प्रकाशित कर दिया जाता है। जनगणना उस प्रक्रिया को दिया जाने वाला नाम है, जो न केवल किसी मुल्क के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाती है, बल्कि देश की विविधता और इससे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन करने का अवसर भी प्रदान करती है। जनगणना वह माध्यम है, जिसके द्वारा नागरिकों को अपने समाज, जनसांख्यिकी, अर्थशास्त्र, मानव जीवन, समाजशास्त्र, सांख्यिकी आदि द्वारा उन समस्त के बारे में अपडेट देती है, जो उनके जीवन को प्रत्यक्ष या फिर परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।‌ 

इसके अलावा भी जनगणना के आंकड़ें कई मायनों में बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के लिए योजना और नीति-निर्धारण में बहुमूल्य जानकारी साझाकरण का कार्य जनगणना के आंकड़े ही करते है। वहीं, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, विद्वानों, व्यापारियों, उद्योगपतियों के साथ-साथ अन्य कई लोगों द्वारा व्यापक रूप से आंकड़े उपयोग में लिये जाते हैं। जनगणना को आंकड़ों का एक व्यापक स्रोत माना जाता है। इसके अन्तर्गत ही किसी मुल्क की जनसांख्यिकी लाभांश के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाती है। जो मुल्क की नीति निर्माण को पूर्वानुमान की सटीकता के समीप ले जाती है। किसी भी मुल्क के साक्ष्य आधारित निर्णयों में जनगणना के आंकड़ों का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। किसी भी जनगणना में जुटाए आंकड़े शासन-प्रशासन, योजनाओं और नीतियों के निर्माण के साथ-साथ इनके प्रबंधन में भी बेहद सहायक होते हैं।‌ किसी क्षेत्र विशेष के विकास के लिए आवश्यक निर्णयन में जनगणना से प्राप्त आंकड़ों की भागीदारी बढ़ जाती है। जनगणना के आंकड़ों का महत्त्व इसलिए भी है, क्योंकि ‌समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को ध्यान में रखते हुए सरकारी कार्यक्रमों के संचालन और उनकी सफलता को सुनिश्चित किया जाता है। जनगणना के आंकड़ों का उपयोग अनुदान के निर्धारण में भी किया जाता है। देश के सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व उसकी जनसंख्या के अनुपात में देने का जिम्मा जनगणना के आंकड़ों के इर्द-गिर्द केन्द्रित है। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है।

यदि हम भारतीय जनगणना के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें, तो पाएंगे कि सबसे पहले जनगणना का उल्लेख प्राचीन साहित्य ‘ऋग्वेद’ में मिलता है। उसके बाद के अध्ययनों से सामने आया कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जनगणना का जिक्र किया गया है। मध्य काल के भारत की आइन-ए-अकबरी में भी जनगणना के बारे में उल्लेखनीय आंकड़ों का विश्लेषण सामने आता है। यदि हम ब्रिटिश भारत की बात करें, तो सबसे पहली जनगणना 1872 में मेयो के शासनकाल में की गई थी। उसके ठीक बाद 1881 में पहली बार पूरे मुल्क में एक साथ जनगणना कराई गई। इसके बाद से ही लगातार दशकीय आधार पर जनगणना होती आई है। इस बार की जनगणना-2021 अब तक की 16 वीं (1872 से) और मुल्क की आजादी (1947 से) के बाद से 8 वीं जनगणना होगी।

लेकिन मौजूदा वक्त में कोरोना मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़ा नासूर बना हुआ है। ऐसे में, जनगणना-2021 को अपने तय समय पर करवाना संभव न हो सका। इसमें देरी होना तो तय हो गया है। कोरोना महामारी के कारण हम अभी 2021 का करीब आधा सफर तय करने को है, लेकिन जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने का फिलहाल कोई संकेत नहीं है। बता दें, कि जनगणना-2021 की प्रक्रिया का निष्पादन दो चरणों में होने की बात सामने आई थी। जिसके पहले चरण में जनगणना-कर्मी वर्ष 2020 के अप्रैल से सितम्बर माह के मध्य घर-घर जाकर घरों और उनमें उपलब्ध सुविधाओं से संबंधित जानकारी इकट्ठा करने को कहा गया था। वहीं, दूसरे चरण में 9 से 28 फरवरी की मध्यावधि में देश की जनसंख्या का कार्य यानी लोगों की गिनती का कार्य संपन्न किये जाने की बात कही गई थी। लेकिन कोरोना महामारी के कारण अभी तक एक भी चरण शुरू नहीं किया जा सका।

गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सितंबर 2019 में इस बात का ऐलान किया था कि जनगणना-2021 पूरी तरह से मोबाइल फोन एप्लिकेशन के माध्यम से आयोजित की जाएगी। 2021 की जनगणना को 16 भाषाओं में करने की बात कही थी।‌ वहीं, 2021 में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में इस बात की पुष्टि की थी कि 2021 की जनगणना भारत में पहली बार की डिजीटल जनगणना होगी। वित्त मंत्री ने भारत के 2021 के केंद्रीय बजट में जनगणना करने के लिए रुपए 3,768 करोड़ आवंटित किए थे। जनगणना-2021 में देरी कोरोना महामारी के चलते हो चली है। ऐसे में यह देरी बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरेगी।

मौजूदा वक्त में हर एक भारतीय के मन और मस्तिष्क में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या जनगणना-2021 को टाला जाना संभव है? जैसा कि विदित होगा, वर्ष 2026 में वर्तमान परिसीमन अवधि समाप्त हो जाएगी। ऐसे में लोकसभा में राजनीतिक संतुलन का बदलना तय है। यदि वर्ष 2021 में जनगणना नहीं होती है, तो जनसंख्या प्रबंधन के सबसे खराब रिकार्ड वाले राज्यों में मुख्यत: उत्तरी भारत की संसद में प्रतिनिधित्व में बड़े पैमाने पर वृद्धि होगी। इसके विपरित दक्षिण और पश्चिम भारत को नुकसान होगा। इसके अलावा, वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण पर मार्गदर्शन प्रदान करता आया है।‌ जीएसटी के बाद से कर के वितरण के आधार अधिक विवादास्पद रूप ले चुके हैं। किंतु जनसंख्या इस मामले में निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में, जनगणना-2021 को टाला जाना अनुचित कदम साबित होने वाला है।‌ हालांकि दशकीय जनगणना भारत द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा डेटा संग्रह करने का काम होता है। तथा यह न केवल जनसंख्या की वृद्धि के आकलन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है, बल्कि पेयजल, स्वच्छता, आवास और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के आकलन के लिए भी अहम है। जनगणना को राजनीतिक फैसलों, आर्थिक निर्णयों एवं विकास लक्ष्यों के लिहाज से भी जरूरी समझा जाता है। ऐसे में, इसे टाला जाना दूर की कोड़ी साबित होगी, लेकिन इसमें होने वाली देरी बहुत भारी पड़ने वाली है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here