फांसी पर सवाल ?

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संदर्भ- मेमन की फांसी पर सलमान ने न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा किया

 

प्रमोद भार्गव

 

सलमान खान जैसे अभिनेता जो खुद हिट एंड रन मामले में सजायाफ्ता हैं और काला हिरण शिकार मामले में विचाराधीन आरोपी हैं,वे देश की निश्पक्ष न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा करने की बेवाक बयानबाजी कर रहे हैं। सलमान ने मुंबई धमाकों के आरोप में मौत की सजा पाए याकूब मेमन को निर्दोष बताते हुए एक साथ 14 ट्वीट किए हैं। जबकि मेमन विस्फोट में मारे गए 257 लोगों की हत्या के षड्यंत्र में शामिल था और टाडा अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी सजा बहाल रखी है। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद शीर्ष अदालत उसकी सुधारात्मक याचिका खारिज कर चुकी है। बावजूद चालाकियां बरतते हुए मेमन ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को फांसी माफ करने की अर्जी लगा दी और सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से मौत की सजा पर रोक लगाने की गुहार लगा दी। चूंकि अभी तक अदालत ने न्यायिक आदेश पर रोक नहीं लगाई है,इसलिए मेमन को 30 जुलाई को फांसी दी जाना फिलहाल तय है।

टाडा अदालत ने 2007 में याकूब को फांसी की सजा सुनाई थी। चूंकि इस अदालत की अपील उच्चतम न्यायालय में करने का प्रावधान नहीं है,इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में ही टाडा से सजा पाए अपराधियों की अपील की जा सकती है और अपील पर निराकरण के बाद दया याचिका लगाई जा सकती है। याकूब की दया और सुधारत्मक याचिका पर दो बार सुनवाई करके शीर्ष न्यायालय ने यह साफ कर दिया है कि आरोपी याकूब को न्याय के अधिकार के सभी विकल्प मुहैया कराए जा चुके हैं।

याकूब मेमन ने याचिका में दया की गुजारिश करते हुए कहा था कि वह पिछले 21 साल से जेल में है और मुबंई धमाकों का मुख्य साजिशकर्ता नहीं है,इसलिए उसे राहत दी जाए। हालांकि वह अपने कबूलनामे और टाडा अदालत को दिए बयान में पहले ही स्वीकार चुका था,कि वह सजिश में शामिल जरूर रहा है,लेकिन मुख्य मास्टरमांइड नहीं है। किंतु पुलिस तफ्तीष में पाया गया कि वह न केवल मुख्य साजिशकर्ता था,बल्कि उसके घर में ही बम बनाए गए और उन्हें उसी की कार में ले जाकर घनी आबादी वाले इलाकों में भी रखा गया। जब ये बम 13 विस्फोटों में बदले तो पूरी मुंबई दहल गई थी। इस देशघाती हमले में 257 लोग मारे गए थे और 712 जख्मी हुए थे। साथ ही कई करोड़ की चल-अचल संपत्ति नष्ट हो गई थी। यही नहीं देश में यह ऐसा पहला हमला था जिसमें पहली बार देश के भीतर आरडीएक्स और एके-57 तथा एके-47 जैसे घातक विस्फोटक व हथियारों का इस्तेमाल हुआ था।

इतना बड़ा देशद्रोही होने के बावजूद सलमान खान ने याकूब को निर्दोष ठहराते हुए न केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं,बल्कि मुंबई धमाकों के असली अपराधी टाइगर मेमन और दाऊद को न पकड़ पाने पर केंद्र सरकार को भी आड़े हाथ लिया है। सलमान ने ट्वीट में लिखा है कि याकूब की बजाय उसके भाई टाइगर को पकड़कर फांसी देनी चाहिए,चूंकि याकूब निर्दोष है,इसलिए निर्दोष को फांसी देना मानवता की हत्या के समान है। दूसरे ट्वीट में लिखा है टाइगर कहीं छिपा बैठा है,जबकि उसकी करतूतों के लिए भाई को फांसी की सजा हो रही है। इन ट्वीटों से जो अर्थ झलक रहे हैं,वे याकूब को बेगुनाह तो साबित करते ही हैं,अलबत्ता न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा करते है,इसलिए न्यायपालिका की अवमानना भी हैं। जबकि सलमान को न्यायपालिका पर भरोसा जताने की जरूरत थी।

हालांकि याकूब की फांसी पर कई राजनैतिक हस्तियों के बयान भी आए हैं,किंतु वे अदालत के फैसले को न तो गलत ठहराते हैं और न ही अदालत को चुनौति देने वाले लगते हैं। आॅल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी राजनीति पर सांप्रदायिक रंग चढ़ाने की दृष्टि से सिर्फ इतना कहा है कि मेमन को फांसी महज इसलिए दी जा रही है,क्योंकि वह मुस्लिम धर्म से जुड़ा है। जबकि राजीव गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बेअंत सिंह के हत्यारों को अभी तक फांसी के फंदे पर नहीं लटकाया गया है। हालांकि ओवैसी ने मुंबई घमाकों को आयोघ्या के विवादित बाबरी मस्जिद के ध्वंस का बदला लेने वाला दुर्भाग्यपूर्ण बयान भी दिया है। बावजूद न्यायप्रक्रिया पर सवाल नहीं उठाए हैं। इसके अलावा खुफिया एजेंसी राॅ के पूर्व अधिकारी बी रामन का एक अप्रकाशित लेख उनकी मृत्यु के बाद 2013 में उनके भाई द्वारा सार्वजनिक किया गया है। जिसमें उन्होंने अदालत द्वारा याकूब को फांसी दिए जाने पर इसलिए खेद जताया है,क्योंकि उसने जांच एंजेसिंयों की मदद की थी। रामन इस समय राॅ की पाकिस्तान डेस्क के प्रमुख थे। किंतु महज मदद कर देने भर से देशद्रोह जैसे जघन्य अपराध से जुड़े अपराधी का अपराध कम नहीं हो जाता। दरअसल आतंकवादी स्थानीय लोगों की मदद से ही अपनी खूनी हरकतों को अंजाम तक पहुंचाने में सफल होते हैं। ऐसे में यदि याकूब को फांसी नहीं दी जाती तो न्याय की इस प्रकिया से प्रेरित होकर मददगारों को शह मिलती और वे अधिक निश्चिन्तता से मदद करने लग जाते ? इसलिए रामन का बयान कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

सीपीएम ने भी याकूब को मृत्युदंड की बजाय आजीवन करावास की मांग राष्ट्रपति से की है। इस मांग-पत्र में महेष भट्ट और शत्रुधन सिन्हा जैसे फिल्मकारों के भी हस्ताक्षर हैं। हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इसी आशय से जुड़ी याकूब की दया याचिका पहले ही निरस्त कर चुके हैं। मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने की ये मांगे मृत्युदंड को नए सिरे से बहस का मुद्दा बना रहे हैं। जबकि भारतीय दंड संहिता में जब तक मौत की सजा का प्रावधान है,तब तक जघन्य अपराधों में अदालत मौत की सजाएं देती रहेंगी। दरअसल हमारे देश में तथाकथित बौद्धिक तबके मृत्युदंड को खत्म करने की पैरवी ऐन उस वक्त करते हैं जब किसी खुंखार हत्यारे को संपूर्ण कानूनी प्रक्रियाओं की खानापूर्ती कर लिए जाने के बाद फांसी के फंदे पर लटकाने का समय बिल्कुल करीब आ जाता है। जबकि  इस सजा को खत्म करने का अधिकार केवल संसद को है और संसद एकमत से हत्या की  धारा 302 और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की धारा 121 को विलोपित करने का विधेयक दोनों सदनों से पारित करा ले,ऐसी उम्मीद निकट भविष्य में संभव नहीं है। अलबत्ता याकूब मेमन भारत देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोपी था। इसी प्रकृति के संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू और मुंबई हमले के पाकिस्तानी हमलावर अजमल आमिर कसाब को मृत्युदंड के बाद फांसी के फंदे पर लटकाया जा चुका है। ये तीनों  ही मामले दुर्लभतम होने के साथ देश की संप्रुभता को चुनौती देने की राष्ट्रद्रोही मुहिम से जुड़े थे। लिहाजा ऐसे दूर्लभतम अपराधियों के प्रति किसी भी तरह की उदारता की मांग मानवता और राष्ट्रियता के विरुद्ध है।

यहां यह भी गौरतलब है कि खालिस्तान समर्थक आतंकी देविदंर पाल सिंह भुल्लर का अपराध भी याकूब, अफजल और कसाब की प्रकृति का है, इसीलिए भुल्लर मामले में 12 अप्रैल 2013 को अदालत ने कहा भी था कि दया याचिका पर फैसले में देरी फांसी की सजा माफ करने का आधार नहीं बन सकती है। दरअसल जघन्य से जघन्यतम अपराधों में त्वरित न्याय की तो जरूरत है ही, दया याचिका पर भी जल्द से जल्द निर्णय लेने की जरूरत है। शीर्ष न्यायलय ने कहा भी था कि दया याचिका पर तुरंत फैसला हो, लेकिन राष्ट्रपति के लिए क्या समय सीमा होनी चाहिए,यह सुनिश्चित नहीं नही है। लिहाजा अकसर राष्ट्रपति दया याचिकाओं पर निर्णय को या तो टालते हैं या फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल देते हैं। हालांकि महामहिम प्रणब मुखर्जी इस दृष्टि से अपवाद हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद अफजल गुरू, अजमल कसाब और याकूब की दया याचिकाएं उन्होंने ही खारिज करते हुए,इन देशद्रोहियों को फांसी के फंदे पर लटकाने का रास्ता साफ किया था। जबकि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने या तो दया याचिकाएं टालीं या मौत की सजा को उम्र कैद में बदला। यहां तक कि उन्होंने महिला होने के बावजूद बलात्कार जैसे दुष्कर्म में फांसी पाए पांच आरोपीयों की सजा आजीवन कारावास में बदलीं थीं।

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