वाड्रा की शैली से कांग्रेस पर सवाल

सुरेश हिन्दुस्थानी
लगता है कि कांग्रेस के बुरे दिन समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहे। कांग्रेस कुछ संभलने का प्रयास भर करने का साहस जुटाती है कि कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है कि जिससे कांग्रेस पुन: उसी अवस्था को प्राप्त कर लेती है। कांग्रेस पार्टी की पेचीदगियां उसकी खुद की देन है। गांधी परिवार के हर सदस्य को कांग्रेस द्वारा संचालित सरकारों पर पूर्ण अधिकार होता है। कभी कभी तो लगता है कि उनके एक छोटे से संकेत पर बड़े बड़े खेल हो जाते हैं। अभी एक और पुराना घोटाला सामने आया है जिसमें कांग्रेस की पूर्ववर्ती हरियाणा सरकार ने कलात्मक राजनीति करते हुए कांग्रेस के दामाद यानि रावर्ट वाड्रा को एक ही झटके में करोड़ों का मालिक बना दिया। पूरा देश इस सत्य को जानता है कि रावर्ट वाड्रा कांग्रेस में कुछ भी नहीं है, फिर भी पूरी कांग्रेस उनके बचाव में ऐसे खड़ी हो जाती है जैसे वे ही उनके भगवान हैं।
अभी ताजा मामला यह है कि हरियाणा के जमीन घोटाले में आरोपी माने जाने वाले रावर्ट वाड्रा से जब एक विद्युतीय प्रचार तंत्र के संवाददाता ने सवाल किया तो उन्होंने जिस प्रकार से प्रतिक्रिया दी, उससे ऐसा ही लगा जैसे वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की ताकत को दबाना चाहते हैं। इससे सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या इससे पहले भी पत्रकारिता की आवाज को दबाने या खरीदने का ऐसा प्रयास किया गया, अगर ऐसा किया गया है तो यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत ही खतरनाक कदम है। जिस पर कांग्रेस को गंभीरता से चिन्तन करना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने चिन्तन करना तो दूर उलटे पूर्ववर्ती कामों में निरंतरता रखी है। इस बात से एक और सवाल पैदा होता है कि कांग्रेस के अन्य नेता तो धीरे धीरे यह समझने लगे हैं कि हम सत्ता से दूर हो गए हैं, लेकिन गांधी परिवार के सदस्यों के रूप में प्रचारित हो चुके सोनिया, राहुल से लेकर रावर्ट वाड्रा अभी तक यही समझने की भूल कर रहे हैं कि हम ही भारत के असली मालिक हैं। वास्तव में यह लोकतांत्रिक पद्धति नहीं कही जा सकती। रावर्ट वाड्रा को भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सम्मान करने का भाव अपने मन में लाना चाहिए।
यहां का अध्ययन करना बहुत ही आवश्यक लग रहा है कि जब से हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है तबसे ही रावर्ट वाड्रा अचानक सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं। इस सबके पीछे कौन से कारण हो सकते हैं, यह वाड्रा भली भांति जानते हैं, लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने अपनी चार कंपनियों को बन्द किया है उससे तो पुख्ता रूप से यही संकेत मिलता है कि दाल में काला अवश्य है। इतना ही अब तो जिस जमीन घोटाले में वे घिरते जा रहे हैं उन जमीनों को बेचने का मन भी बना चुके हैं। ऐसा करके वे निश्चित ही शक की सुई को अपनी ओर मोड़ रहे हैं। अभी तो केवल सरकार द्वारा जांच करने की बात कही है, इतनी बात पर ही वे जमीन बेचने की तैयारी करने लगें, यह किसी गहरे रहस्य की कहानी तैयार करता नजर आने लगा है। खैर सच क्या है यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा।
वर्तमान में कांग्रेस नेताओं के बयानों को सुनकर तो ऐसा ही लगता है कि जैसे वे बेहोशी की हालत में बयान दे रहे हैं। लगता है कांग्रेस के नेताओं ने अप्रत्याशित पराजय के बाद भी कोई सबक नहीं लिया। जिन कांग्रेसियों को इस पराजय का बोध हुआ है, वह कांग्रेस की वर्तमान हालात को देश के सामने रख देते हैं, लेकिन कांग्रेस को बपौती मान बैठे गांधी परिवार के सदस्य अपने कानों पर पत्थर रख लेते हैं, या उनकी सारगर्भित बात को अनसुना कर देते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिदम्बरम ने यहां तक कह दिया कि गैर गांधी भी बन सकता है कांग्रेस का अध्यक्ष। कांग्रेस की राजनीति में भले ही इस बात पर खुली चर्चा नहीं हुई हो, लेकिन कहीं न कहीं खुसर पुसर अवश्य ही हो रही है। यह खुसर पुसर ही कांग्रेस में बहुत बड़े विस्फोट का कारण बन सकती है। सारे देश को संभवत: इस बात का भान हो चुका है कि कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों ने की थी, आज भी अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस पर भारतीय अग्रेजों का ही राज है। सवाल यह आता है कि अंगे्रजों द्वारा स्थापित कोई पार्टी भारत का कैसे भला कर पाएगी। कांग्रेस के इतिहास पर नजर डाली जाए तो एक बात यह भी सामने आती है कि कांग्रेस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी। यह भारत का एक सामूहिक अभियान था। जिसके तहत देश को आजाद कराना था। जब देश आजाद हुआ तब महात्मा गांधी ने साफ कहा था कि अब कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। सत्ता के मोह में फंसे कांग्रेस के नेताओं ने महात्मा गांधी के शब्दों को ही अनसुना कर दिया। शायद गांधी जी को यह आभास हो चुका था कि भविष्य की कांग्रेस देश को गलत रास्ते पर ले जा सकती है।
अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों से यह लगने लगा है कि भारत की जनता खुद ही कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण करना चाह रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है, उसका अहसास स्वयं कांग्रेस को भी नहीं रहा होगा। आज दोनों प्रदेशों में मुख्य विपक्षी दल बनने लायक सीट भी उनके खाते में नहीं हैं। इससे पूर्व लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह से सिमट गई और लोकसभा में विपक्ष का दर्जा भी हासिल न कर सकी। क्या इस बात से यह प्रमाणित नहीं होता कि कांग्रेस खुद ही शर्मनाक स्थिति प्राप्त करने की ओर कदम बढ़ाती हुई दिख रही है। देश में जितने भी घोटाले हुए उसे कांग्रेस ने ऐसा प्रचारित करने का प्रयास किया जैसे यह सामान्य जीवन का हिस्सा हो। हो सकता है कांग्रेस के लिए यह सामान्य बात हो, लेकिन जनता इस बात से कतई सरोकार नहीं रखती।
हरियाणा में रावर्ट वाड्रा के जमीन घोटाले का आखिर सच क्या है? ये तो जाँच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन ये चमत्कार नहीं तो और क्या है? कि रावर्ट वाड्रा ने एक ऐसी कंपनी से कर्ज लिया जो खुद घाटे में चल रही है, वह किसी को बिना वजह 65 करोड़ रुपये क्यों देगी? अगर आंकड़ों की माने तो डीएलएफ कंपनी जून 2012 में 25060 करोड़ रुपये की कर्ज से दबी थी। ऐसे में कंपनी द्वारा वाड्रा को बिना ब्याज के लोन देने, सस्ते दर पर अपनी प्रापर्टी बेचने के क्या कारण हो सकते हैं? इतने कम समय में वाड्रा 50 लाख से 300 करोड़ के मालिक कैसे बन गये? आरोपों के बीच फसे वाड्रा के बचाव में पूरी कांग्रेस पार्टी उमड़ पड़ी है। ऐसे में ये बात सोचने पर विवश करती है की वाड्रा जो एक आम आदमी हैं उनके बचाव में पूरी कांग्रेस क्यों खड़ी हो गई?
एक परिवार को ही अपना सब कुछ मान चुकी कांग्रेस के अन्य नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को दफन करने की असहनीय वेदना अब उजागर होती दिख रही है। अगर अब भी उजागर नहीं हुई तो जीवन भर कांग्रेस के अन्य नेताओं को आगे आने के लिए आमरण प्रयास करना होगा, फिर भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उन्हें अपनी वरिष्ठता के हिसाब से सम्मान प्राप्त हो जाए, क्योंकि गांधी परिवार के अंधभक्त कांग्रेसी अभी से यह मांग करने लगे हैं कि प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस की कमान सौंपी जाए। इसके बाद आठ दस साल बाद इनके बच्चे भी तैयार हो जाएंगे।

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