त्वरित अन्वीक्षा : एक स्वप्न

एडवोकेट मनीराम शर्मा

भारत में न्यायिकतंत्र इससे जुड़े पेशेवरों के लिए स्वर्ग है| मामलों के शीघ्र निपटान की ओर देश के कर्णधारों, न्यायविदों, वकीलों या पुलिस अधिकारियों का कभी भी गंभीर ध्यान नहीं गया है| मात्र कुछ विचार मंचों पर लुभावने भाषणों के अतिरिक्त इस महान देश ने स्वतंत्रता के 64 वर्षों में शायद ही कोई ठोस कार्य किया होगा| मामलों के निपटान के लिए समय सीमा की चर्चा करते ही न्यायविद व वकील तुरंत रक्षा पंक्ति में खड़े हो जाते हैं और ऐसा लगता है मानों कुछ कडवा पेय पीने से उनके मुंह का जायका बदल गया हो और वे कहते हैं कि न्यायालयों के लिए समय सीमा निर्धारित करना लगभग असंभव कार्य है क्योंकि न्यायालय तो सर्वोपरि हैं| शायद भारत के इन कर्णधारों और प्रबुद्ध जनों को ज्ञात नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में “त्वरित अन्वीक्षा अधिनियम” 1974 में ही पारित कर दिया गया है और सफलतापूर्वक कार्यरत है|

 

अमेरिका के उक्त अधिनियम और उसके अधीन बनाये गए नियमों में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट कानून में नियत समय सीमा की अनुपालना पर बल देगा और किसी अच्छे हेतुक को छोड़कर यदि अभियुक्त अभिरक्षा में है तो 10 दिन व जमानत पर होने पर 20 दिन के भीतर प्रारम्भिक सुनवाई करेगा| मामलें में अन्य सूचना (आरोप) गिरफ़्तारी या तामिल के 30 दिन के भीतर प्रस्तुत किये जायेंगे| फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए कि अभियुक्त को अनावश्यक भागदौड़ नहीं करनी पड़े 30 दिन की न्यूनतम अवधि निर्धारित की गयी है| अतः अधिनियम में 1979 में संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गयी है कि यदि अभियुक्त लिखित में सहमति नहीं देता तो 30 दिन से पूर्व अभियोजन प्रारंभ नहीं होगा|

 

एक अभियुक्त पर आरोपण निम्न में से अंतिम के आधार पर 14 दिन के भीतर किया जायेगा :

 

1. वह तिथि जब सूचना या आरोप दाखिल किया गया,

2. वह तिथि जब सीलबंद आरोप की सील खोली गयी,

3. अभियुक्त का प्रथम बार न्यायाधीश के समक्ष रक्षार्थ उपस्थित होना

 

यदि किसी न्यायाधीश को मामला सौंपने पर यह प्रतीत होता है कि निर्धारित समय सीमा की अनुपालना संभव नहीं होगी तो न्यायाधीश इस बात कि व्यवस्था करेगा कि इस प्रयोजनार्थ मामले को न्यायालय के किसी अन्य सदस्य को अंतरित कर दिया जाय| यदि अन्यथा आदिष्ट न किया जाय तो आरोपण के 11 दिन के भीतर अन्वीक्षा पूर्व प्रस्ताव लाया जायेगा और विरोधी पक्षकार को 5 दिन का समय जवाब देने के लिए दिया जायेगा| संतोषजनक कारण के अभाव में न्यायालय समय सीमा के बाहर दायर किये गए प्रस्ताव का विचारण करने से मना कर सकता है| दोषारोपण के 3 सप्ताह के भीतर प्रत्येक मामले में स्थिति को जानने के लिए एक सम्मेलन किया जायेगा और इसमें लोक अभियोजक, बचाव पक्ष व उसका वकील उपस्थित रहेंगे| मामला स्थानांतरित होने की स्थिति में आरोपण उस दिन फ़ाइल माना जायेगा जिस दिन कागजात लिपिक को प्राप्त हो जाते हैं| प्रत्येक मामले में कलेंडर बनाया जायेगा ताकि प्रत्येक आपराधिक अन्वीक्षण मूल सेटिंग के अनुसार चल सके| सरकारी या रक्षा पक्ष के वकीलों का समय सारिणी से टकराव कोई आधार नहीं होगा| सरकारी वकील समस्त न्यायालयों की समय अनुसूची को ध्यान में रखेंगे ताकि वह कार्यक्रम की घोषणा पर तैयार रहे| बाल अपचारियों के लिए विशेष प्रावधान हैं और एक बाल अपचारी का परीक्षण 30 दिन के भीतर प्रारंभ किया जायेगा| एक रक्षार्थी को सामान्यतया दोषसिद्ध होने के 45 दिन के भीतर दण्डित किया जायेगा| न्यायलय क्लर्क का यह दायित्व है कि वह समय सीमा की अनुपालना की मोनिटरिंग करे| जब रक्षार्थी (अभियुक्त) निश्चित तिथि को न्यायालय में उपस्थित नहीं होता और उसका कोई समुचित कारण दिखाई नहीं देता तो बेंच वारंट जारी किया जायेगा| यह वारंट जारी होने के पर 5 दिन के भीतर मार्शल (पुलिस) को अभियोजक वह सब सूचनाएँ देगा जो अभियुक्त को ढूंढने के लिए सहायक हैं| 30 दिन के भीतर अभियोजक न्यायालय को अभियुक्त को ढूंढने के प्रयासों के विषय में लिखित में सूचित करेगा| तत्पश्चात यदि आवश्यक हुआ तो वह कलेंडर समिति को प्रत्येक 90 दिन बाद सूचित करता रहेगा|

 

यदि कोई वकील जानबूझकर मामले का यह प्रकट किये बिना अन्वीक्षण हेतु लगाना अनुमत करता है जबकि उसे ज्ञात है कि मामले का महत्वपूर्ण गवाह अनुपलब्ध है, तुच्छ व गुणहीन प्रस्ताव दाखिल करता है जिसका उद्देश्य मात्र विलम्ब करना है, स्वेच्छापूर्वक अन्वीक्षण को आगे बढ़ाने में विफल रहता है ऐसे वकील को न्यायालय नियमानुसार दण्डित कर सकता है| अधिनियम में समय सीमा के उल्लंघन पर आरोप निरस्त करने की भी अनुमति है| यद्यपि न्यायालय ने टेलर के मामले में यह पाया कि कोई छोटा उल्लंघन अभियुक्त के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता और नशीले पदार्थों के गंभीर आरोप में इस आधार पर अभियोजन निरस्तीकरण को उचित नहीं ठहराया जा सकता| एक रक्षार्थी का त्वरित अन्वीक्षा का अधिकार संवैधानिक और विधिक अधिकार त्वरित अन्वीक्षा अधिनियम के अतिरिक्त है| एक रक्षार्थी पर अन्वीक्षार्थ मामला शीघ्र नहीं लाए जाने पर न्यायालय को मामला निरस्त करने का विवेकाधिकार है| यहाँ तक कि यदि एक मामला निर्धारित समय सीमा के भीतर हो तो भी अभियुक्त यह दर्शित कर सकता है कि आरोपण से पूर्व के विलम्ब से उसके उचित प्रक्रिया के अधिकार का हनन हुआ है| इस आधार पर मामला निरस्त करवाने के लिए अभियुक्त को यह साबित करना पड़ेगा कि सरकार ने चतुराईपूर्ण लाभ उठाने के लिए साशय विलम्ब किया है और उससे वह प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है|

अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिए कि क्या विलम्ब से अभियुक्त के अधिकारों का अतिक्रमण हुआ है, चार बिंदुओं का परीक्षण निर्धारित किया है| इसमें विलम्ब की अवधि, रक्षार्थी के द्वारा विलम्ब का आरोपण, विलम्ब का कारण और परिणाम स्वरुप पूर्वाग्रह की उपस्थिति या अनुपस्थिति| अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा समर्पित भाव से अभियोजन में तत्परता के अभाव में किसी पूर्वाग्रह के प्रमाण के अभाव में भी साढ़े आठ वर्ष के असाधारण विलम्ब को त्वरित अन्वीक्षा के अधिकार का अतिक्रमण माना है|

एडवोकेट मनीराम शर्मा सरदारशहर

 

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर लेख है.
    आधे से अधिक केस तो इस पर खत्म हो जायेंगे यदि शपथ पत्र झूठे पाए जाएं तो परजुरी का केस उन पर हो.
    एडवोकेट एक्ट भी अब बदलना चाहिए. जब यह बना था तो जज आदि सब अंग्रेज होते थे और उनको अपने वफादारों की जरूरत थी आज की जरूरत समाज में सौहार्द लाने की है और निपटारे मामलों के जल्दी होने में हैं सिवा गलीच व्यक्तियों के जो डेरी चाहते हैं

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