मानव निर्मित है रामसेतु

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संदर्भः अमेरिकी वैज्ञानिकों एवं पुरावेत्ताओं ने रामसेतु सेतु को मानव निर्मित माना

प्रमोद भार्गव

 

दुनिया भर के वैज्ञानिक और पुरावेत्ता अब यह मानने को मजबूर हो रहे है कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थिित रामसेतु अर्थात ‘एडम्स ब्रिज‘ मानव निर्मित है। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल रामेश्वरम के निकट स्थित पमबन और श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच 50 किमी लंबे पुल की अद्भुत सरंचना किसी अन्य जगह से लाए गए पत्थरों व अन्य सामग्रियों से बनी है। अमेरिकी पुरातत्व वेदताओं ने विज्ञान चैनल डिस्कवरी के एक शो में यह शोध प्रस्तुत किया है। इस कार्यक्रम में अंतरिक्ष से नजर आने वाले रामसेतु की तस्वीर दिखाई गई है। इस तस्वीर का विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया है कि सैटेलाइट में दिखने वाली यह आकृति दरअसल गहरे समुद्र में तैरते छिचले और सपाट चूना-पत्थर है। 83 किमी लंबाई में फैले चूना पत्थर की यह चट्टाने मानव निर्मित हैं, जो पुलनुमा है। यह खुलासा अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी आॅफ नाॅर्थ वेस्ट, यूनिवर्सिटी आॅफ कोलोराडो और सर्दन ओरीगन यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में किया है। इन्होंने पुल की चट्टानों को 7000 साल पुराना और उसके ऊपर बिछी बालू की परत को 4000 साल पुरानी बताई है। रामसेतु प्राकृतिक है या मानव निर्मित, इस गुत्थी को सुलझाने की घोषणा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद ने  भी किया था, लेकिन इस दिषा में कोई उल्लेखनीय पहल करने से पहले ही अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु को मानव निर्मित ठहरा दिया।

रामसेतु का मुद्दा यूपीए की डाॅ मनमोहन सिंह सरकार के समय से ही गर्माया हुआ है। इस दौरान सेतु-समुद्रम परियोजना के चलते रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट गहराया गया था। रामायणकालीन इस सेतु को मार्ग के लिए बाधा बताकर इसे तोड़ने की तैयारी थी। इस सिलसिले में यूपीए-1 सरकार ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को शपथ-पत्र देकर यह दावा किया था कि भगवान राम और रामसेतु मिथक हैं, इनका कोई अस्तित्व नहीं है। न्यायालय में इस हलफनामे के दायर होते ही संसद में भाजपा और शिवसेना ने हंगामा बरपा दिया था, जिसके फलस्वरूप सरकार को पीछे हटना पड़ा था।

इस परियोजना का उद्देश्य रामसेतु के बीच से मार्ग बनाकर भारत के दक्षिणी हिस्से के इर्द-गिर्द समुद्र में जहाजों की आवाजाही के लिए रास्ता बनाना है। यह रास्ता नौवहन मार्ग (नाॅटिकल मील) 30 मीटर चौड़ा, 12 मीटर गहरा और 167 किमी लंबा होगा। इतनी बड़ी परियोजना को वजूद में लाने के लिए पौराणिक काल में अस्तित्व में आए रामसेतु को क्षति तो पहंुचेगी ही, करोड़ों मछुआरों की आजिविका भी प्रभावित होगी। दरअसल भारतीय समुद्र की तटवर्ती पट्टी 5 हजार 660 किमी लंबी है। गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडू, पश्मिबंगाल राज्यों और केंद्र शासित राज्य गोवा, पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के तहत ये विशाल तटवर्ती क्षेत्र फैले हैं। रामसेतु की विवादित धरोहर रामेश्वरम् को श्रीलंका के जाफना द्वीप से जोड़ती है। यह मन्नार की खाड़ी में स्थित है। यहीं जो रेत, पत्थर और चूने की दीवार सी 30 किमी लंबी पारनुमा सरंचना है, उसे ही रामसेतु का अवशेष माना जा रहा है। 2007 में अमेरिका की विज्ञान संस्था नासा ने इस पुल के उपग्रह से चित्र लेकर अध्ययन करने के बाद दावा किया था कि मानव निर्मित यह पुल दुनिया की सबसे पुरानी सेतु संरचना है। इस नाते भगवान राम ने यदि इस सेतु का निर्माण नहीं भी किया है तो भी इस धरोहर को सुरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि बाल्मीकि रामायण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण और अग्नि पुराण में इस सेतु के निर्माण और इसके ऊपर से लंका जाने के विवरण हैं। इन ग्रंथों के अनुसार राम और उनके खोजी दल ने रामेश्वरम् से मन्नार तक जाने के लिए वह मार्ग खोजा, जो अपेक्षाकृत सुगम होने के साथ रामेश्वरम् के निकट था। जहां से राम व उनकी वानर सेना ने उपलब्ध सभी 65 रामायणों के अनुसार लंका के लिए कूच किया था। माना जाता है कि 500 साल पहले तक यहां पानी इतना कम था कि मन्नार और रामेश्वरम् के बीच लोग सेतुनुमा टापूओं से होते हुए पैदल ही आया जाया करते थे। वैसे इस क्षेत्र में ऐसे कम दबाव वाले बालुई पत्थर भी पाए जाते हैं, जो पानी में नहीं डूबते। नल और नील ने जिन पत्थरों का उपयोग सेतु निर्माण में किया, शायद ये उन्हीं पत्थरों के अवशेष हों जो आज भी धार्मिक स्थलों पर देखने को मिल जाते हैं।

इन सब साक्ष्यों के आधार पर इसके संरक्षण के लिए जनहित याचिकाएं शीर्ष न्यायालय में दायर की गईं, जिससे इस सेतु को हानि न हो। तमिलनाडू की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता ने इस परियोजना को विधानसभा में   रोकने का प्रस्ताव लाकर सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग केंद्र सरकार से की थी। यदि रामसेतु के प्रसंग को छोड़ भी दिया जाए तो जैव संसाधनों की दृष्टि से भी विश्व बाजार में इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा समृद्ध क्षेत्र माना जाता है। इसकी जैविक और पारिस्थिकी विलक्षणता के चलते ही इसे ‘जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया हुआ है।

इस क्षेत्र का रामसेतु के बहाने न केवल  पुरातत्वीय दृष्टि से बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी है। मोती के लिए प्रसिद्ध रहा यह क्षेत्र शंख के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। दरअसल मन्नार की खाड़ी राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय महत्व की एक जीवित प्रयोगशाला है। यहां लगभग 3700 प्रकार के जीव व वनस्पतियों की जीवंत हलचल है। जिसमें कछुओं की 17 प्रजातियां हैं। मूंगे की 117 किस्में हैं। इस क्षेत्र में पाए जाने वाला दुर्लभ मैंग्रोव वृक्ष कार्बन डाइ आॅक्साइड का शोषण कर बढ़ते तापमान को कम करते हैं। बड़ी मात्रा में प्रबाल (शैवाल) भित्ति भी हैं। इसी विविधता के कारण भारत को जैविक दृष्टि से दुनिया में संपन्नतम समुद्री क्षेत्र माना जाता है।

समुद्र में उपलब्ध शैवाल (काई) भी एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है। शैवाल में प्रोटीन की मात्रा भी ज्यादा होती है। लेकिन इसे खाने लायक बनाए जाने की तकनीकों का विकास हम ठीक ढंग से अब तक नहीं कर पाए हैं। लिहाजा इसे खाद्य के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए तो परंपरागत शाकाहारी लोग भी इसे आसानी से खाने लगेंगे। शैवाल में अच्छे किस्म की चाॅकलेट से कहीं ज्यादा ऊर्जा होती है। आयुर्वेद औषधियों तथा आयोडीन जैसे महत्वपूण तत्व भी इसमें होते हैं। ये शैवाल भित्तियां उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में न केवल खाद्य संसाधनों, बल्कि जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। तटीय क्षेत्रों मे ये लहरों का अवरोध बनकर कटाव को बाधित करती हैं। 750 प्रकार की मछलियों के आहार व प्रजनन का भी यही काई प्रमुख साधन है। गोया, सेतु समुद्रम परियोजना के लिए इस सेतु को तोड़ा जाना बेहद नुकसानदायी है।

समुद्री तूफानों के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ डाॅ. टैड मूर्ति के अनुसार 26 दिसंबर 2004 को आए सुनामी तूफान के दौरान रामसेतु देश के दक्षिण हिस्से के लिए सुरक्षा कवच साबित हुआ था। इस अवरोध के परिणामस्वरूप सुनामी लहरों की प्रबलता शिथिल हुई और केरल सहित दक्षिणी इलाके  भारी तबाही से बचे रहे। इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद यदि फिर सुनामी लहरें उफनती हैं तो रामसेतु के अभाव में लहरें बड़ी तबाही का कारण बन सकती हैं। ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है तो वैज्ञानिक व पर्यावरणविदों का मानना है कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले थोरियम के बड़े भण्डार नष्ट हो जाएंगे। विश्व का 30 प्रतिशत थोरियम भारत में ही मिलता है, जो यूरेनियम बनाने के काम आता है। समुद्र की गहराई बढ़ने से समुद्र में उच्च दबाव वाले ज्वार-भाटे की आशंका भी बढ़ेगी।

इस परियोजना के प्रभाव में आने वाले पांच जिलों की करीब 2 करोड़ की आबादी के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। क्योंकि मन्नार की खाड़ी एवं पाक जलडमरूमध्य के किनारों पर आबाद मछुआरों के परिवार मुख्य रूप से मछलियों के कारोबार पर ही जिन्दा हैं। कुछ मछुआरे समुद्री शैवाल, शंख और मूंगे के व्यापार से भी जीवनयापन करते हैं। प्राकृतिक संपदा के अटूट भण्डार सागर पर ही आश्रित होने के कारण उनकी जीवन शैली, संस्कृति और सामाजिक जीवन का तानाबाना उसी अनुरूप विकसित हुआ है। इसलिए जरूरी हो गया है कि मछुआरों और तटवर्ती किसानों को पुश्तैनी व्यवसायों से जोड़े रखने, समुद्री जीव-जन्तुओं को बचाए रखने और तटवर्ती वन एवं वनस्पतियों को पर्यावरणीय विनाश से मुक्त बनाए रखने के लिए इस सेतु समुद्रम परियोजना को रोका जाए।

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