रेडियो श्रोता क्लब/संघ

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radioबी एन गोयल

रेडियो प्रसारण की बात करते समय हैं हम प्रायः कार्यक्रमों, मशीन, टेप, रेकार्डिंग, आलेख, इंजिनियर, उद्घोषक, निदेशक, प्रशासन आदि की बात करते हैं लेकिन हमारे ज़ेहन में अंतस्तल में बैठा जो एक व्यक्ति होता है वह है हमारा श्रोता. मूलतः आकाशवाणी का प्रत्येक केंद्र अपने क्षेत्र के निवासियों की सेवा करने के लिए होता है. क्षेत्र विशेष की कला और संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन इन का मुख्य कार्य होता है. इसी में हमें भारतीय संस्कृति की समग्रता के दर्शन होते हैं. इस कारण से आकाशवाणी के सभी कार्यक्रमों का चयन  और  निर्धारण समाज के विभिन्न वर्ग के व्यक्तियों की रूचि, आवश्यकता और मनोरंजन को ध्यान में रख कर किया जाता है. इन के प्रसारण का समय भी इन श्रोतावर्गों की सुविधा को देख कर निर्धारित किया जाता है जैसे महिलाओं का कार्यक्रम दोपहर में, बच्चों का रविवार की सुबह, वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीसरे पहर, युवाओं का सांय काल, ग्रामीण श्रोताओं के लिए रात्रि से पहले पहर. इसी प्रकार अन्य कार्यक्रम शहरी नागरिकों के लिए अथवा चुनमुन के लिए, साहित्यिकी हो अथवा वैज्ञानिक, खेल कूद अथवा लोक संगीत अथवा शास्त्रीय संगीत, – इन सब के मूल में लक्षित श्रोता ही होता है.

श्रोताओं की फरमाइश पर आधारित फ़िल्मी संगीत का कार्यक्रम हर एक केंद्र से प्रसारित होता है. इसका अपना एक बहुत बड़ा श्रोता समूह होता है. मैंने इस से पहले एक लेख में लिखा था कि इस के लिए हमें अनेक रंगों में सजे, सुन्दर अक्षरों में लिखे ढेरों पत्र मिलते हैं. इसी प्रकार अन्य कार्यक्रमों में भी उन के श्रोताओं पत्र आते हैं. फरमाइश के लिए सेकंडों की संख्या में पत्र आते हैं तो महिला कार्यक्रमों में बहुत कम और चुन मुन में बिलकुल भी नहीं.

प्रारम्भ में इन श्रोताओं की कभी कोई संगठित अथवा व्यवस्थित संघ या संस्था नहीं थी, लेकिन साठ/ सत्तर के दशकों – अर्थात रेडियो सीलोन और झूमरी तलैय्या के दिनों में देश के अनेक शहरों में श्रोताओं के क्लब बन गए थे. ये स्वैच्छिक होते थे. एक मित्र ने एक संदेह जगाया है कि शायद फिल्म निर्माता ही अपनी फिल्म की लोकप्रियता बढाने के लिए थोक में केन्द्रों को पत्र भिजवाते होंगे. शायद हाँ – इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता. लेकिन केंद्र पर पत्र डाक से ही आते हैं. इन श्रोता क्लबों के बारे में क्या कहेंगे जो अपने ही बल बूते पर रेडियो क्लब बनाते और अपने ही खर्च से उन्हें चलाते थे.

मुझे इलाहाबाद के संगम रेडियो क्लब की याद आ रही है. यह क्लब नियमित रूप से हिंदी में एक पाक्षिक पत्र निकालता था. बहुत ही व्यवस्थित और सुलझे हुए ढंग से. यह बाकायदा एक समाचार पत्रके रूप में पंजीकृत था. इस को निकालने वाले प्रबुद्ध, शिक्षित और साहित्य प्रेमी श्रोता थे. ये अपने समाचारपत्र को आकाशवाणी के सभी हिंदी भाषी केन्द्रों को (निदेशकों और सभी उद्घोषकों को नाम से) डाक से भेजते थे. इस में हिंदी केन्द्रों के विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा भी करते. 15 दिनों में घटित रेडियो प्रसारण सम्बन्धी हर खबर को उस में छापते थे. ये कुछ केन्द्रों जैसे इलाहाबाद, लखनऊ, रोहतक, शिमला को तो अपना ही केंद्र मानते थे.

 

आकाशवाणी के हार्डवेयर (हमारा अभियांत्रिकी विभाग) और सॉफ्टवेर (हमारे अधिकारी और उद्घोषक) तथा अन्य सभी पूरी जानकारी इस क्लब के संचालकों के पास होती थी. ये हमारे इंजिनियर और उद्घोषकों को प्रायः सम्मानित करते थे. ऐसा करने में इन्हें गौरव का अनुभव होता था. ऐसे क्लब भारत के हर छोटे बड़े शहरों जैसे रेवाड़ी, पानीपत, जबलपुर, आदि में भी होते थे. रेवाड़ी का एक नाम था याद के सुगंध. आकाशवाणी के व्यक्तियों को ये लोग पूरा मान सम्मान देते थे.

कहने का तात्पर्य यह कि रेडियो प्रसारण में मुख्य भूमिका श्रोता की ही होती है. इस सन्दर्भ में मुझे एक घटना याद आरही है. आकाशवाणी अहमदाबाद की. यहाँमैंइतना कहना चाहूँगा कि आकाशवाणी अहमदाबादमेरे रेडियो जीवन की पाठशाला जैसा है क्योंकि यहाँ पर रह कर मैंने काफी कुछ सीखा. यहाँ पर विभिन्न क्षेत्रों की महान हस्तियों को नज़दीक से देखने और मिलने का अवसर मिला.

 

आकाशवाणी भवन से लगा हुआ गुजरात विद्यापीठ – यहाँ उस समय देश के उप प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री मोरारजी देसाई हर वर्ष गाँधी जयंती के अवसर पर एक महिना रहते थे. इस के अतिरिक्त भी वे प्रायः यहाँ आते रहते थे और आकाशवाणी पर उन की रेकार्डिंग अवश्य होती थी. 1969 गाँधी शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया गया था. उन दिनों में मोरार जी देसाई के अतिरिकत अन्य नेता जो वहां आये उन में खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमान्त गाँधी) भी थे. श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित भी आयी चूँकि हिंदी भाषा के कार्यक्रम मैं देखता था अतः मुझे इन से बात करने का अवसर मिला. के के शाह का सू प्र मंत्री होने के कारण आकाशवाणी पर एक प्रकार का अधिकार था. साहित्यकारों में उमा शंकर जोशी का नाम सर्वोपरि था. ISRO और PRL होने के कारण देश के शीर्ष वैज्ञानिक यहाँ थे. केंद्र भी उस समय देश के सर्वोत्तम केन्द्रों में एक समझा जाता था. साठ के दशक की बात है.

 

एक दिन कार्यक्रममीटिंग में जब पहले दिन प्रसारित एक प्रोग्राम पर चर्चा चल रही थी तो उस पर एक कनिष्ठ अधिकारी (A)ने अपना कुछ सुझाव दिया ‘यदि इस प्रोग्राम में ऐसा करते तो यह और अच्छा होता’ यह बात प्रोग्राम निर्माता (B) को अच्छी नहीं लगी और वे नाराज़ हो गए. क्रोध में बोले कि एक कनिष्ठ व्यक्ति एक वरिष्ठ व्यक्ति के प्रोग्राम को ‘खराब’ कैसे कह सकता है अथवा अपनी टिप्पणी कैसे दे सकता है.’A ने विनम्रता से कहा ‘मैंने ख़राब नहीं कहा वरन मैंने एक सुझाव दिया है  यदि ऐसा करते तो और अच्छा हो सकता था. आप को ख़राब लगता है तो क्षमा चाहता हूँ’. लेकिनB साब नाराज़ रहे और वे मीटिंग से उठ कर चले गए. बात केन्द्र निदेशकतक गयी. सब की बात सुन ने के बाद केन्द्रनिदशकनेनिर्णय दिया –

 

(1) A के सुझाव देने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह उन की अपनी राय है आवश्यक नहीं कि हम इसे स्वीकार करें.

(2) केवलA ही नहीं वरन केंद्र का कोई छोटे से छोटा कर्मचारी भी केंद्र केकिसी भी प्रोग्राम पर अपना सुझाव/राय  दे सकता है.

(३) जब हम पत्रोत्तर कार्यक्रम करते हैं हम पूरी सदाशयता से कहते हैं “पत्रलिखने के लिए आप का धन्यवाद”. क्या हमें मालूम होता है कि यह पत्र लिखने वाला श्रोता कौन है– कोई कनिष्ठ है अथवा वरिष्ठ, बाहर सड़क पर लारी पर चाय बेचने वाला है अथवा कोई अधिकारी. हमारे लिए वह हमारे प्रोग्राम का एक श्रोता है.

 

केन्द्र निदशक नेइस निर्णयको पूरे सन्दर्भ के साथ केंद्र के सभी कर्मचारियों को सर्कुलर के तौर पर वितरित किया और सभी कर्मचारियों को अपने सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया. केन्द्र निदेशक उस समय स्व० ए आर शिंदे थे जो बाद में महानिदेशक बने. इस प्रकरण के कहने से मेरा अभिप्रायः है कि आकाशवाणी के लिए एक श्रोता कितना महत्वपूर्ण होता है. ०००००

 

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

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