रैगिंग : प्रभुत्व स्थापित करने की विकृत मानसिकता

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प्रो. एस. के. सिंहraging in school

सिंधिया स्कूल में घटित रैगिंग की घटना से देश में एक नई बहस प्रारंभ हो गई है, कि अब उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों की तरह स्कूलों में भी रैगिंग को लेकर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। सूचनाओं के तेज प्रवाह एवं समय से पहले युवा होने एवं दिखने वाले बच्चों पर भी लगातार निगरानी रखनी होगी, जिससे फिर किसी आदर्श को इस तरह का आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़े।
मौखिक शब्दों द्वारा अपमानित करना, शारीरिक शोषण, शारीरिक कष्ट, नये छात्रों का किसी भी रूप में उत्पीडऩ, उनके साथ दुव्र्यवहार एवं ऐसा कोई भी कारण जिससे नये छात्र के मन-मस्तिष्क एवं आत्मविश्वास पर विपरीत प्रभाव पड़े, रैगिंग के अंतर्गत आता है। स्पष्ट है कि रैगिंग एक विकृत मानसिकता है जिसका प्रयोग नये छात्रों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए किया जाता है। रैगिंग में वरिष्ठ छात्र अथवा छात्रों का समूह अपनी वरिष्ठता को आधार बनाकर नये छात्रों को ऐसा कार्य करने के लिये विवश करते हैं, जिससे उनमें लज्जा की भावना उत्पन्न हो, पीड़ा हो, घबराहट हो अथवा उन पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विपरीत प्रभाव पड़े। दूसरे शब्दों में ऐसे किसी भी कार्य को करने के लिए कहना जो नया छात्र सामान्य स्थिति में न करे, रैगिंग के दायरे में आयेगा।
माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार ”विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के उच्चतर शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के अधिनियम -2009” के अनुसार संस्था में निम्न समितियॉं गठित की जायेंगी: रैगिंग निरोधक समिति (एण्टी रैगिंग समिति), रैगिंग निरोधक दस्ता (एण्टी रैगिंग स्क्वेड) तथा यदि विश्वविद्यालय है तो विश्वविद्यालय स्तरीय समिति। रैगिंग निरोधक समिति का दायित्व रैगिंग से संबंधित कानून का अनुपालन कराना तथा रैगिंग निरोधक दस्ते के रैगिंग रोकने संबंधी कार्यों को देखना है। रैगिंग निरोधक दस्ते का यह दायित्व होगा कि वह छात्रावास तथा रैगिंग की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों का औचक निरीक्षण करे। रैगिंग निरोधक दस्ते का यह दायित्व भी होगा कि वह संस्थाध्यक्ष अथवा अन्य किसी संकाय सदस्य अथवा किसी कर्मचारी अथवा किसी छात्र अथवा किसी माता-पिता, अभिभावक द्वारा सूचित की गई रैगिंग की घटना की जॉंच घटना स्थल पर जाकर करे तथा जॉंच रिपोर्ट संस्तुति सहित रैगिंग निरोधक समिति को कार्यवाही हेतु सौंपे। रैगिंग निरोधक दस्ता इस प्रकार की जॉंच निष्पक्ष एवं पारदर्शी विधि से सामान्य न्याय के सिद्धान्त का पालन करते हुए करेगा। रैगिंग निरोधक समिति, रैगिंग निरोधक दस्ते द्वारा निर्धारित किये गये अपराध के स्वरूप और गम्भीरता को देखते हुए दण्ड का निर्धारण करेगी। विश्वविद्यालय स्तरीय समिति का कार्यक्षेत्र संस्था एवं विश्वविद्यालय से संबंद्ध कालेज होंगे। यह समिति रैगिंग निरोधक समिति एवं रैगिंग निरोधक दस्ते से रैगिंग गतिविधियों की सूचना प्राप्त करेगी तथा जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय रैगिंग निरोधक समिति के संपर्क में रहेगी।
रैगिंग में शामिल छात्रों के लिए कई तरह के दण्ड का प्रावधान किया गया है। इनमें से सबसे प्रमुख संस्था द्वारा छात्र को दिये जाने वाले संस्था छोडऩे के प्रमाण-पत्र एवं चरित्र प्रमाण-पत्र में छात्र के सामान्य चरित्र एवं व्यवहार के अतिरिक्त रैगिंग का उल्लेख किया जाना है। स्पष्ट है कि रैगिंग, कोई हिंसक अथवा दूसरे को हानि पहुंचाने वाले किये गये कार्य का उल्लेख छात्र के इन अभिलेखों पर करना एण्टी रैगिंग की दिशा में उठाया गया सबसे प्रभावी कदम साबित हो सकता है। रैगिंग की सूचना प्राप्त होने पर संस्थाध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना होता है, कि यदि कोई अवैध घटना हुई है तो वह सूचना प्राप्ति के 24 घण्टे के भीतर प्राथमिकी दर्ज कराये। संस्था में कार्यरत सभी अधिकारियों, कर्मचारियों (स्थायी एवं अस्थायी) अथवा जो भी संस्था की सेवा कर रहा हो, उसका यह दायित्व होगा कि वह रैगिंग की घटनाओं को रोके। रैगिंग की सूचना देने वाले कर्मचारियों को अनुशंसा पत्र दिया जाये एवं इसका उल्लेख उनकी सेवा पुस्तिका में भी किया जाना चाहिए।
शैक्षणिक संस्थानों में अकादमिक एवं स्वस्थ माहौल बनाये रखने के लिए रैगिंग जैसी घटनाओं को पूरी तरह से रोकना होगा, क्योंकि जब कभी भी किसी संस्थान में इस तरह की घटना घटती है तो केवल उस संस्थान में ही नहीं बल्कि उस घटना का नकारात्मक प्रभाव बहुत दूर तक देखने को मिलता है। शिक्षा के मन्दिरों में पढ़ाई-लिखाई एवं अन्य किसी भी उपयोगी गतिविधि की तुलना में छात्रों को भय-मुक्त एवं रैगिंग-मुक्त वातावरण प्रदान करना पहली प्राथमिकता होना चाहिए। दबाव एवं अप्र्राकृतिक माहौल में एक स्वस्थ मस्तिष्क के विकास की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। अत: सभी शैक्षणिक संस्थानों में अनुशासन बहाल करने के लिए इस तरह की स्थायी व्यवस्था की जाना चाहिए, जिसमें जिम्मेदार व्यक्ति सतत् रूप से इसी कार्य में लगे रहें। ऐसे जिम्मेदार व्यक्तियों को अन्य कार्यों से मुक्त रखें, जिससे वे अपना पूरा समय इस महत्वपूर्ण कार्य में दे सकें। सत्र की शुरूआत में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, लेकिन स्कूलों में तो लगातार पूरे वर्ष निगरानी रखनी पड़ेगी। इस कार्य में मीडिया आपकी बहुत मदद कर सकती है। वर्तमान समय में मीडिया को संस्थान में प्रवेश न देने की सोचना अथवा दूर रखने की कोशिश करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। मीडिया का दूरगामी प्रभाव हमेशा सकारात्मक ही होता है। जो शैक्षणिक संस्थान धनबल अथवा अन्य किसी प्रभाव से मीडिया को दूर रखकर अपने आपको सफल समझ रहे हैं वास्तव में वे संस्थान अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं। रैगिंग के इस अधिनियम में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि संस्था मीडिया से यह अनुरोध करे कि वह रैगिंग रोकने के नियमों का प्रचार-प्रसार करे साथ ही रैगिंग में लिप्त छात्रों को दिये जाने वाले दण्ड को भी बिना भेद-भाव एवं भय-मुक्त होकर प्रचारित एवं प्रसारित किया जाये।
माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के कारण नि:सन्देह एण्टी रैगिंग की दिशा में क्रान्तिकारी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है, लेकिन चूंकि रैगिंग के संबंध में ‘जीरो टॉलरेन्स पॉलिसी’ पर कार्य करना है, अत: रैगिंग से संबंधित किसी भी घटना को बर्दाश्त नहीं किया जाना है। शैक्षणिक संस्थानों में स्थित छात्रावासों में विशेष निगरानी की आवश्यकता है। सिंधिया स्कूल की इस घटना से सभी द्रवित हैं एवं इस घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया है। इस घटना को लेकर लोगों में नाराजगी एवं आक्रोश व्याप्त है। अभिभावकों एवं विभिन्न संगठनों द्वारा यह आक्रोश किसी न किसी रूप में रोज देखने को मिल रहा है।
अब स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को रैगिंग के दुष्परिणामों से अवगत कराना बहुत जरूरी है, साथ ही उन्हें यह समझाना भी बहुत जरूरी है कि संस्थान में कोई जूनियर एवं कोई सीनियर नहीं है, सिर्फ आपकी कक्षायें अलग हैं। आपस में किसी भी तरह का विभेद करना अथवा उसके बारे में सोचना अपराध की श्रेणी में आयेगा। रैगिंग से लडऩा सभी की जिम्मेदारी है, जब सभी मिलकर अपने दायित्व का निर्वहन करेंगे तभी रैगिंग के संबंध में हम ‘जीरो टॉलरेन्स पॉलिसी’ का पालन कर पायेंगे।

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