उल्टा पड़ता राहुल का हर दांव

सिद्धार्थ शंकर गौतम

राहुल गाँधी के लिए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव सत्ता का सेमीफाइनल बन गए हैं जहां उन्हें हर कीमत पर जीतना ही होगा वरना उनकी राजनीति पर प्रश्नचिन्ह लगना तय है| गाँधी-नेहरु परिवार का वारिस होने के चलते शायद वे सत्ता के शीर्ष तक भी पहुँच जायेंगे मगर इतिहास उन्हें हमेशा आयातित नेता ही पुकारेगा| युवा राजनीति और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राहुल ने जो आक्रामक राजनीति की शुरुआत की थी, उसमें मानो अब जंग लग गई है| राहुल की विकास एवं सुशासन की राजनीति नेताओं पर व्यंग-बाण छोड़ने तक सीमित रह गई है| उत्तरप्रदेश में राहुल अपनी चुनावी सभाओं में विपक्षी दल के शीर्ष नेताओं पर जमकर आरोप लगा रहे हैं मगर जब केंद्र सरकार से जुड़े किसी मुद्दे पर उनकी राय मांगी जाती है तो वे बगलें झांकना शुरू कर देते हैं| हमेशा मायावती के कुशासन पर आँखें तरेरने वाले युवराज का निशाना इन दिनों भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती पर लग रहा है| उमा के बाहरी होने के मुद्दे को उन्होंने यह सोचकर उठाया था कि इससे बुंदेलखंड की जनता उमा को नकार देगी जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा| मगर राजनीति में अपरिपक्व युवराज यहाँ भी मात खा बैठे| उमा ने राहुल पर ज़बर्दस्त पलटवार करते हुए उन्हें हिदायत दे डाली और जाने-अनजाने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे को भी नया रंग दे दिया| उमा के पलटवार से युवराज निःसंदेह असहज महसूस कर रहे होंगे| इतना ही नहीं उमा के बारे में आपत्तिजनक टिप्पड़ी करना भी युवराज को भारी पड़ने लगा है| बुंदेलखंड एवं पूर्वांचल की कई सभाओं में उन्हें काले झंडे दिखाए गए तो भाजपा महिला मोर्चा की पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने राहुल का पुतला फूंक डाला|

राहुल गाँधी पता नहीं क्या सोचकर ऐसे उलटे-सीधे बयानों में उलझकर अपनी छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं? जहां तक राज्य में कांग्रेस की संभावनाओं की बात है तो राहुल अच्छी तरह जानते हैं कि ३० प्रतिशत बाहरी प्रत्याशियों को टिकट बांटकर वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल रहे हैं जिसके नुकसान का उन्हें आभास भी है| २००९ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भले ही अप्रत्याशित सफलता मिली हो मगर विधानसभा चुनाव में पुनः इसकी पुनरावृति असंभव ही जान पड़ती है| ऐसा नहीं है कि राजनीति में विवादों से फायदा न होता हो मगर राहुल से ऐसी अपेक्षा किसी को नहीं है| उन्हें राजनीति विरासत में मिली है जिससे उनकी आगे की राह आसान होती गई है| यहाँ राहुल की तारीफ़ तो करनी होगी कि उन्होंने इस बात को कभी नहीं झुठलाया कि यदि वे गाँधी-नेहरु परिवार के न होते तो शायद राजनीति में इतना आगे नहीं जा पाते| मगर मीडिया ने उन्हें जितनी हाईप दी, उसके मुकाबले उन्होंने अभी तक ऐसा कोई करिश्मा नहीं किया है जिससे राहुल को राजनीति में परिपक्व माना जाए|

प्रदेश की दुर्दशा पर आक्षेप लगाने से पहले राहुल को केंद्र सरकार की कारगुजारियों पर नज़र डालनी चाहिए| राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम है मगर जब आप किसी पर आरोप लगाते हैं तो पांच उंगलियाँ आप पर भी उठती हैं और तब आपको उनका प्रतिउत्तर देना ही पड़ता है| आप अपना पलड़ा नहीं झाड सकते| राहुल यहीं चूक जाते हैं| वे दूसरों पर जुबानी हमले तो करते हैं मगर जब उनपर शब्दों के बाण चलते हैं तो वे चुप हो जाते हैं| यह राजनीति में उनकी अपरिपक्वता दर्शाता है| कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि राहुल से देश को बहुत उम्मीद है| हो सकता है मगर राहुल ने उस उम्मीद के लिए अब तक क्या किया? काला धन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी; क्या खत्म कर पाए राहुल अब तक? वे तो अघोषित रूप से सरकार के मुखिया हैं, फिर क्यूँ कुछ नहीं कर पाते? देश के कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार है| क्या ये सभी राज्य खुशहाल हैं? क्या यहाँ कोई समस्या नहीं है? सब जानते हैं कि राजनीति के लिए यह सब करना पड़ता है और राहुल यदि यह कर रहे हैं तो कुछ गलत नहीं कर रहे मगर यदि मीडिया उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित करने पर तुला हुआ है तो राहुल को इस तरह की ओछी राजनीति शोभा नहीं देती|

पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश तथा बुंदेलखंड में समस्याओं की भरमार है| ऐसे कई ज्वलंत मुद्दे हैं जिन्हें अब तक किसी ने नहीं उठाया है| राहुल के पास तो सुनहरा मौका है कि वे इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाएं ताकि जनता को यह विश्वास हो सके कि यही है वह जो हमारी दुःख-तकलीफों को खत्म कर सकता है| उमा भारती के बाहरी होने या न होने से जनता को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| ऐसा भी नहीं कि राहुल यह न बताते तो जनता नहीं जान पाती| मगर जनता को उसका हमदर्द चाहिए जो उसे किसी में नहीं मिला| राहुल के लिए अभी भी समय है कि वे केंद्र सरकार की खामियों को स्वीकार कर जनता के दरबार में जाएँ और अपनी कमियों को जनभागीदारी से दूर करने का विश्वास जनता में पैदा करें| तभी राहुल सत्ता के सेमीफ़ाइनल को जीत फ़ाइनल खेलने का ख्वाब पालें वरना तो उनका हारना तय है|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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