परिपक्त दिखने को कांगे्रस के युवराज राहुल के टोटके

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राहुल गांधी का पप्पू से ट्विटर तक का सफर

संजय सक्सेना

समय के साथ कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी चाल, चेहरा और चरित्र बदलते रहते हैं.कांगे्रस की बागडोर जब से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके हाथों में आई है पार्टी एक के बाद एक तमाम राज्यों में सत्ता से बाहर होती जा रही है.लेकिन तारीफ करनी होगी राहुल गांधी और उन तमाम कांग्रेसियों की जिन्हें राहुल गांधी में कोई कमी नहीं दिखती है.कभी वह गुजरात की हार को जीत मानकर जश्न मनाते हैं तो कभी राजस्थान के उप-चुनाव में छोटी सी जीत को बड़ा बनाकर पेश करते है. करीब दो दशकों से उन्हंे कांगे्रसी भावी पीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हंै.
अपनी हार में भी जीत और दूसरे की जीत में हार तलाश लेने में महारथ हासिल रखने वाले राहुल गांधी दुनिया के एक मात्र ऐसे नेता होंगे जो दूसरों पर अपनी बात थोपने तक ही सीमित रहते हैं. विरोधियों के किन्हीं सवालों का वह जबाव नहीं देते हैं तो अपने ऊपर चल रहे मुकदमों को अनदेखा करते हैं. वह यह तो बताते हैं कि मोदी सरकार नाकारा है. लेकिन यह नहीं बताते हैं कि कांगे्रस देश की दुर्दशा के लिये क्यों जिम्मेदार नहीं है. उसने 55 वर्षो तक देश पर राज किया है.अगर कांगे्रस शासनकाल में सब कुछ ठीकठाक हुआ होता तो आज देश के हालात ऐसे नहीं होते,देश की बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,जातिवाद का जहर, किसानों की दुर्दशा, नक्सलवाद, पाकिस्तान समस्या कांगे्रस की ही देन है. जनता लोकसभा से लेकर तमाम विधान सभा चुनावों में उनको नकार रही है.लेकिन लगता है राहुल को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है. चुप्पी का आलम यह है कि राहुल लोकसभा में बोलने का साहस नहीं जुटा पाते हैं. किसी संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लेते नहीं हैं. अगर कभी मीडिया उनके गले की फांस बन जाता है तो उसके सवालों का जवाब देने की बजायेे रट्टू तोते की तरह अपनी बात कहकर निकल जाते हैं.गलत बयानी के कारण राहुल पर मानहानि का केस और राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस आया है.
तमाम मौंको पर यह भी देखने में आया है कि एक तो राहुल किसी गंभीर मुद्दे पर किसी चर्चा का हिस्सा बनते ही नहीं हैं और अगर बनते भी हैं तो हल्की से हल्की बात को इतनी गंभीरतापूर्वक कहते हैं मानों दुनिया की सबसे बड़े रहस्य से वह पर्दा उठाने जा रहे हों.‘अगर मैं बोला तो भूचाल आ जायेगा,’ ‘बीजेपी वाले मुझे बोलने नहीं देते हैं.’ जैसे तमाम जुमले राहुल अक्सर हवा में उछालते रहते हैं. हद तो तब हो जाती है जब विजिटर बुक में दो लाइन लिखने के लिये भी उन्हें अपने मोबाइल से नकल करनी पड़ती है.
राहुल की काबलियत पर अक्सर उंगली उठती रहती है. कभी पार्ट टाइम सियासत करने वाले राहुल गांधी की पूरी राजनीति मोदी विरोधी धुरी पर घूमती रहती है. वह भले ही मोदी की बातों को जुमला बता कर कटाक्ष करते रहते हों, लेकिन उनकी सोच भी कभी जुमलों से आगे नहीं बढ़ पाई। उनके चार-छहः जुमले तो बिल्कुल फिक्स हैं, जो मोदी के सत्ता संभालने से लेकर चार वर्ष बाद तक लगातार सुनने को मिल रहे हैं. मोदी सरकार पर जब भी हमलावर होते हैं तो उनके जुमलों की सुंई एक ही जगह फंस कर मोदी को उल्हाना देने लगती है. ‘मोदी सरकार, सूट-बूट की सरकार है.‘चार-पांच उद्योगपतियों की सरकार है.’ जीएसटी को वह जुमलों में ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहते हैं तो ‘विकास पागल हो गया है’ जैसे जुमले भी बोलते हैं.जीडीपी पर वह ‘ग्रास डिविसिट पाॅलिटिक्स’ बता कर तंज सकते हैं. मोदी सरकार की नीतियों पर ही नहीं वह नेताओं पर निजी हमला करने से भी नहीं चुकते हैं. वित्त मंत्री अरूण जेटली के नाम का वह इंग्लिस में तर्जुमा करते हैं और ट्विटर पर लिखते हैं,‘ डियर मिस्टर जेटलाई. जिस पर उनके खिलाफ विशेषधिकारी का नोटिस मिलता है तो वह कहते हैं कि उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता है.’ उनके चाटुकार राहुल को सही राह दिखाने की बजाये उनकी हाॅ में हाॅ मिलाते रहते हैं. जहां चुनावी सरगर्मी होती है वहां राहुल ‘बरसाती मेंढक’ की तरह पहुंच जाते हैं.चुनाव बाद फिर तलाशने पर भी नहीं मिलते हैं. यहां तक की अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी उनका आना-जाना काफी कम रहता है।
एक बार कांग्रेस उपाध्यक्ष ने नरेंद्र मोदी पर तंज करते हुए कहा था, “मोदीजी का चुनावी नारा था, ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ लेकिन आजकल हर जगह एक ही नारा चल रहा है,‘हर हर मोदी, अरहर मोदी’। इससे पहले बीते साल गर्मियों में राहुल गांधी ने ‘फेयर एंड लवली’ वाला बहुचर्चित जुमला देते हुए कहा था, “मौजूदा एनडीए सरकार ने काले धन को सफेद बनाने के लिए एक ‘फेयर एंड लवली’ योजना शुरू की है।“ गौरतलब है हाल ही में अरूण जेटली द्वारा बजट पेश किया गया. बजट के बाद बाजारों में निराशा का माहौल देखने को मिला। एक तरफ सेंसेक्स 850 अंक लुढ़का तो वहीं, निफ्टी में भी 255 अंकों की गिरावट देखी गई। खास बात यह है कि बजट से बाजारों में दिखी मायूसी से निवेशकों के 4.6 लाख करोड़ रुपये डूब गए। इसी पर राहुल गांधी ने गंभीरता दिखाने की बजाये तंज कसते हुए ट्वीट किया,‘संसदीय भाषा में, सेंसेक्स में 800 अंकों की बड़ी गिरावट मोदी के बजट के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव है।’ उन्होंने अपने ट्वीट में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए आगे लिखा,‘ बस एक और साल.
यह सच्चाई है कि कांग्रेस और राहुल गांधी भले ही बीजेपी और पीएम मोदी की खिंचाई करते हुए उन्हें जुमलों वाला पीएम कहते हों,लेकिन जुमले राहुल गांधी को भी खूब रास आते हैं.जुमलों की महत्ता को समझते हुए कांगे्रस ने पहली बार गुजरात चुनाव में इसे पूरी गंभीरता से लिया था। कहा जा सकता है कि ये कांग्रेस की न्यू मीडिया टीम ही है जिसने राहुल गांधी को फिर से चर्चाओं में ला दिया है और जिस सोशल मीडिया पर उनका भयंकर मजाक उड़ता था, उसमें राहुल गांधी द्वारा विकास पागल हो गया है से लेकर गब्बर सिंह टैक्स जैसे जुमलों का तड़का भी गुजरात चुनाव में देखने को मिला. ये जुमले कहां से आ रहे हैं, कैसे इन जुमलों पर बीजेपी और कांग्रेस समर्थक सोशल मीडिया में भिड़ रहे हैं और जाने-अनजाने उन्हें विरोध या समर्थन के चक्कर में वायरल कर रहे हैं। साफ है कि चुनाव में डिजिटल वॉर का घमासान शुरू हो चुका है, इसमें जो आगे रहेगा, उसे चुनाव में फायदा मिलना तय है।
बहरहाल, राहुल की तेजी ने बीजेपी की धड़कने बढ़ा रही हैं। अब बीजेपी राहुल गांधी को अनदेखा नहीं कर पा रहे हैं. राहुल गांधी चार-छह महीने पहले तक सोशल मीडिया पर भी कम ही दिखाई देते थे. लेकिन आजकल उनका ट्विटर हैंडिल खूब सुर्खिंया बटोर रहा है. राहुल अपने जिस ‘ज्ञान का दर्शन’ लोकसभा में बहस ,मीडिया से मुलाकात या संवाद कार्यक्रमों में नहीं करा सके,उसका दर्शन वह ट्विटर पर खूब करा रहे हैं.
लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी के पप्पू से ट्विटर बाबा बनने तक में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. पहले वह बोलते नहीं थे.अब ट्विटर पर जो लिखते और बोलते हैं,वह उनके ही विचार हैं, यह कोई मानने को तैयार नहीं है. इसकी वजह भी है. राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों पर ऐसे गंभीर मुद्दों पर बोलने की योग्यता का प्रदर्शन नहीं करते हैं तो फिर ट्विटर पर बैठते ही उनमें कैसे इतनी योग्यता आ जाती है, ऐसा लगता हैं कि ट्विटर के माध्यम से राहुल को एक बेहतर और समझदार नेता दर्शाने की मुहिम चलाई जा रही है. ताकि वह पप्पू की छवि से उभर सकें,इसी चक्कर में राहुल ट्विटर बाबा बन गये हैं,मगर ऐसे प्रयास ज्यादा समय तक जनता की आंखों मेे धूल नहीं झांेक सकते हैं.

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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