राफेल सौदा पर राहुल गांधी के सारे दावे झूठे हैं?

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डॉ मनीष कुमार

जिस तरह सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी राफेल डील को लेकर तमाशा कर रही है ठीक ऐसा ही विरोध 2003-04 में हुआ था. मुद्दा भी एक जैसा ही है. इस वक्त राफेल की कीमत को लेकर कांग्रेस पार्टी सवाल उठा रही है तो उस वक्त वाजपेयी सरकार के खिलाफ सोनिया गांधी ने कारगिल युद्ध के दौरान खऱीदे गए कॉफिन यानि ताबूत की कीमत को लेकर बवाल मचाया था. वो वक्त तहलका और एनडीटीवी का था तो ताबूत घोटाला को जबरदस्त तरीके से उठाया गया. सोनिया गांधी संसद नहीं चलने दी. जॉर्ज फ़र्नांडिस जैसे ईमानदार नेता पर घोटाला करने का आरोप लगाया. उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया था.

2004 के चुनाव में सोनिया गांधी घूम घूम कर वायजेयी सरकार पर कफन चोर होने का आरोप लगाती रही. ये एक बेहद भावनात्मक मामला था. देशवासियों की भावनाएं बुरी तरह आहत हुईं. कांग्रेस चुनाव तो नहीं जीती लेकिन सरकार बनाने में कामयाब हो गई. जब यूपीए की सरकार आई तो सीबीआई को इसके पीछे लगाया गया. सोनिया गांधी ने आसमान जमीन एक कर दिया. लेकिन, नतीजा क्या निकला? न सिर्फ जार्ज फ़र्नांडिस सारे आरोपों से बरी हुए बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई घोटाला नहीं हुआ. नैतिकता का तकाजा तो यही है कि सोनिया गांधी को जॉर्ज फ़र्नांडिस से माफी मांगनी चाहिए. लेकिन, कांग्रेस पार्टी से ये उम्मीद करना ही मूर्खता है.

अब वही तमाशा कांग्रेस पार्टी राफेल के साथ कर रही है. शायद कांग्रेस पार्टी को ये पता नहीं है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती. अब न तो वाजपेयी हैं और न ही अब 2004 की भारतीय जनता पार्टी है. और न ही अब कांग्रेस द्वारा पोषित मीडिया है. न ही इनकी अब कोई साख बची है कि वो घोटाले का नैरेटिव खड़ा कर सकें. जैसा कि फर्जीवाड़ा ताबूत घोटाले में इन लोगों ने किया था. वैसे भी मां बेटे दोनों नेशनल हेराल्ड केस में बेल पर हैं. यूपीए के दस के शासनकाल में इन लोगों ने ऐसे ऐसे घोटाले किए हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का नैतिक अधिकार सोनिया-राहुल की कांग्रेस खो चुकी है. लेकिन, मोदी विरोध में विपक्ष इतना अंधा हो चुका है वो अपनी जिम्मेदारी तो भूला ही है साथ ही देश हित को भी दांव पर लगाने को तैयार है.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या राफेल सौदा कोई घोटाला है? अगर कोई घोटाला हुआ है तो विपक्ष को बताना चाहिए कि क्या इसमें कोई दलाली हुई है? दलाल कौन है? पैसा किसे दिया गया? कितना पैसा दिया गया? मंत्री न बन पाने के बाद बीजेपी से दरकिनार कर दिए गए नेता तो बड़े ज्ञानी लोग हैं.. कम से कम उन्हें बताना चाहिए. जैसा कि बोफोर्स घोटाले में देश क्वात्रोकी को जानता है. आरोप लगाने वालों के पास न तथ्य है.. न सबूत है.. न ही कोई नाम है. जो लोग राफेल के नाम पर छाती पीट रहे हैं उन्हें बताना चाहिए कि क्या दो देशों के बीच हुए समझौते को क्या घोटाला कहा जा सकता है?

राजनीतिक अपरिपक्वता की पराकाष्ठा देखिए, राहुल गांधी ने लोकसभा में फ्रांस के राष्ट्रपति को भी घसीट लिया. वो भी झूठ बोलकर. राहुल ने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने खुद उन्हें बताया था कि इस सौदे का विवरण गोपनीय रखने की कोई शर्त नहीं है. संसद में बवाल मचा तो फ्रांस की तरफ से राहुल गांधी के दावों को खारिज किया गया. झूठ पकड़े जाने के बाद राहुल गांधी में जरा भी फर्क नहीं आया. ये एक गैरजिम्मेवार नेता होने का सबसे बड़ा सबूत है. भारत खुद को एक न्यूक्लियर पावर के रुप में स्थापित करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है.. फ्रांस खुद भी काफी जोखिम मोल कर भारत की मदद कर रहा है. लेकिन, इन बातों से विपक्ष को क्या लेना देना है? इनकी समझ में तो ये बात आएगी नहीं कि इनकी वजह से पूरे विश्व में यही संदेश जा रहा है कि भारत एक भरोसेमंद पार्टनर नहीं है.

राहुल गांधी ने राफेल के मामले पर संसद में झूठ बोल कर अपनी अज्ञानता का भी परिचय दिया है. उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा है कि ये सौदा दो देश की सरकारों के बीच हुआ है. इसमें क्वात्रोची जैसा कोई दलाल शामिल नहीं है. दरअसल, राहुल जो कह रहे हैं उसका मतलब यही निकलता है कि इस घोटाले में भारत के साथ साथ फ्रांस की सरकार भी शामिल है. एक ऐसा देश, जो भारत के सबसे घनिष्ठ देशों में से एक है. जो आपको एक न्यूक्लियर प्लैटफॉर्म दे रहा है. उसके ही राष्ट्राध्यक्ष के बारे में राहुल ने गलतबयानी कर दी. उन्हें घरेलू राजनीति में घसीटने की बेवकूफी की है.

हैरानी की बात ये है कि राहुल गांधी और विपक्ष का रिकार्ड एक ही जगह अटका हुआ है. ये लोग ज्यादा कीमत ज्यादा कीमत की रट लगा रहे हैं. पिछले दो साल से राहुल गांधी न कोई सबूत दे पाए हैं न ही कोई खुलासा किया है. राहुल कही-सुनी बातों पर देश की साख पर बट्टा लगाने पर आमादा हैं. क्योंकि उनका ये दावा बिल्कुल ही झूठा है कि मोदी सरकार ने राफेल को करीब तिगुनी कीमत दे कर खऱीदा है.

हकीकत ये है कि इस सौदे में कीमत में कोई इजाफा नहीं किया गया है. यहां यह समझना जरुरी है कि एक प्लेन के युनिट यानि इकाई मूल्य और कॉन्ट्रैक्ट यानि अनुबंध मूल्य अलग होता है. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर आप किसी कार का बेस मॉडल लेते हैं तो कीमत देनी पड़ती है जबकि वही टॉप मॉडल लेंगे तो कीमत लगभग दोगुनी हो जाती है. जबकि दोनों कार में बाहर से कोई फर्क नहीं होता. जब किसी फाइटर प्लेन को लिया जाता है तो इकाई की कीमत तो एक ही होती है.

लेकिन फर्क तब पड़ता है जब आप इसके साथ अलग अलग हथियारों के डेलीवेरी सिस्टम को जोड़ते हैं. इसका कम्युनिकेशन सिस्टम, प्रशिक्षण, स्पेयर्स, रखरखाव और बुनियादी ढांचा से भी कीमत में इजाफा हो जाता है. इसके अलावा जब आप बहुत सारी चीजें एक ही प्लेन में लगाना चाहते हैं तो ये भी तय करना पड़ता है कि सिंगल इंजन हो या डबल इंजन हो.. इसके अलावा हर देश अपनी जरुरत के मुताबिक इसमें कुछ तब्दीलियां करना चाहता है. इससे भी कीमत बढ़ जाती है. ज्यादा पैसा यह सुनिश्चित करने के लिए लगाया जाता है कि यह बेहतर काम करे. कई एक्सपर्ट साथ ही वायु सेना अध्यक्ष भी ये कह चुके हैं कि भारत जो राफेल फ्रांस से ले रहा है कि वो दुनिया के बेहतरीन प्लेन में से एक होगा. इतना ही नहीं, जो राफेल फ्रांस के एयर फोर्स के पास है उससे भी बेहतर होगा.

लेकिन इसमें एक ट्विस्ट है. हमने क्या तब्दीलियां की है.. इसमें क्या क्या वीपन सिस्टम है.. इसका स्पेशिफिकेशन क्या है.. ये दुनिया को बताया नहीं जा सकता है. वो इसलिए क्योंकि दुश्मन देश को ये सब पता चल जाएगा तो वो इससे बहेतर प्लेन की जुगत में जुट जाएगा. जैसा कि कांग्रेस शासन के दौरान होता रहा. हम मिग और मिराज में फंसे रह गए और पाकिस्तान जैसे देश ने F-16 का जखीरा तैयार कर लिया.

राहुल गांधी और विपक्ष क्या चाहता है कि हम दुनिया के सामने सबकुछ उजागर कर दें? क्या राहुल गांधी पाकिस्तान और चीन के एजेंट बन गए हैं? और तो और इसके उजागर होते ही फ्रांस की भी मुसीबत बढ़ सकती है कि आखिर उसने हिंदुस्तान को इस तरह के प्लेन क्यों दिए और इसे बनाने की भी इजाजत कैसे दे दी? फ्रांस सीधे परमाणु अप्रसार संधि (अनुच्छेद 1) के उल्लंघन का दोषी बन सकता है. साथ ही फ्रांस के राष्ट्रीय कानूनों के तहत भी मुसीबत में पड़ सकता है.

हकीकत ये है कि राफेल सौदा भारत के लिए सबसे उल्लेखनीय और विशिष्ट रूप से उसकी जरुरतों के अनुकूल बनाया गया है और अब तक का यह पहला उदाहरण है. समस्या इसे सार्वजनिक करने में है. लेकिन विपक्ष क्या आरोप लगा रहा है वो उसे भी ठीक से पता नहीं है. उनकी मांगें क्या है ये भी साफ नहीं है. हर दो दिन के बाद उनकी मांगे बदल जाती है. देश का गैरजिम्मेदार विपक्ष की मांग और आरोप मूर्खतापूर्ण हैं. वो ये चाहते हैं कि फ्रांस की सरकार औऱ मोदी सरकार उस बात को कबूल कर लें, जो है ही नहीं.

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