राष्ट्र निर्माण के अद्वितीय योद्धा राजीव गांधी

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-अरविंद जयतिलक

देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मन में राष्ट्र को सामथ्र्यवान बनाने की सर्जनात्मक जिद् थी। लिहाजा सत्ता का लगाम थामते ही उन्होंने आतंकवाद के फन को कुचलना शुरु कर दिया। कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर में आतंकवाद से निपटने के लिए उन्होंने जोरदार रणनीति बनायी और आतंकवादियों को दूम दबाना पड़ा। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचार से प्रभावित राजीव गांधी ने आतंकवाद प्रभावित राज्यों के गुमराह नौजवानों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने का आह्नान किया और भरोसा दिया कि उनके हित के लिए सरकार ठोस पहल करेगी। देखा भी गया कि उनकी सरकार ने रोजगार सृजित किए और आतंकवाद प्रभावित राज्यों को विशेष आर्थिक पैकेज दिया। उनका स्पष्ट मानना था कि आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों के पीछे ढ़ेर सारे कारण है जिसमें से एक कारण आर्थिक विपन्नता भी है और इसे दूर किए बिना आतंकवाद और अलगाववाद पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। राजीव गांधी ने भारत को महानतम देशों की कतार में शुमार करने के लिए आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक तकनीकी के ज्ञान पर बल दिया। युवा राजनीति में भी आगे बढ़े इसके लिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में अधिक से अधिक युवाओं की भागीदारी बढ़ायी। विकास को लेकर उनका स्पष्ट मानना था कि देश का विकास तभी संभव है जब गांवों का विकास होगा। देश की असल ताकत गांव है और राष्ट्र की समृद्धि के लिए गांवों का समृद्ध होना जरुरी है। उनकी सरकार ने गांवों के विकास के लिए कई नीतियां बनायी। राजीव गांधी की सरकार के एजेंडे में शिक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता में था। वे तकनीकी शिक्षा के जरिए गांव के नौजवानों को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे। इसके लिए उनकी सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू की और देश भर में हजारों की संख्या में जवाहर नवोदय विद्यालय खोले गए। उनकी सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों की संख्या भी कई गुना बढ़ायी गयी। देश के विभिन्न हिस्सों में तकनीकी विद्यालय खोले। इसका असर यह हुआ कि शहरों के साथ-साथ गांव के युवाओं में भी तकनीकी शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा। उनकी सरकार ने देश से गरीबी और भूखमरी मिटाने के लिए सकारात्मक पहल की। बेरोजगारी दूर करने के लिए कई योजनाएं बनायी। विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए जिसका फायदा युवाओं को मिला।। राजीव गांधी का स्पष्ट मानना था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और उद्योग एवं कृषि का समान रुप से विकास होना चाहिए। कृषि के विकास के लिए उनकी सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। मसलन किसानों को कम ब्याज दर पर कृषि ऋण एवं कृषि उपकरण उपलब्ध कराए। किसानों को उनके फसल की उचित कीमत मिले इसके लिए उनकी सरकार ने समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की। कम उपजाऊ एवं ऊसर भूमि को उर्वर बनाने के लिए आधुनिक तकनीकी को बढ़ावा दिया। किसानों को समय पर उन्नत बीज एवं उर्वरक मिले इसके लिए ठोस पहल की। गांवों में स्थापित सहकारी समितियों को सुचारु ढंग से चलाने के लिए धन उपलब्ध कराया। उन्होंने पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा गन्ना उत्पादन वाले विशेष क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में चीनी मिलें खुलवायी। नगदी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जिससे धीरे-धीरे गांवों की शक्ल बदलने लगी। जवाहर रोजगार योजना के तहत गांवों का विकास हुआ और हजारों लोगों को रोजगार मिला। वे अच्छी तरह जानते थे कि किसानों और कृषि को मजबूत किए बिना देश को तरक्की की राह पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। उन्होंने सिंचाई के उचित प्रबंध के लिए कई प्रमुख परियोजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी सरकार ने इंदिरा आवास योजना के माध्यम से गरीबों के लिए छत मुहैया करायी। गांवों को शहरों से जोड़ने की दिशा में पहल करते हुए सड़कों का निर्माण कराया। उनका मकसद यह था कि किसान अपने पैदावार को बेचने के लिए शहरों तक आसानी से जाएं और उन्हें उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिले। गरीबों तक अनाज पहुंचाने के लिए उनकी सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त किया। राजीव गांधी ने रोजगार सृजन और तरक्की की राह को और आसान बनाने के लिए अनेकों कल-कारखानों की स्थापना की। आज उसी की नींव पर बुलंद भारत की नयी तस्वीर रची जा रही है। उनका वैज्ञानिक खोजों एवं तकनीकी विकास के क्षेत्र में गहरी अभिरुचि थी। वे चाहते थे कि उसका इस्तेमाल कृषि कार्यों में हो। औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और उद्योगपतियों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी सरकार ने विशेष आर्थिक छूट प्रदान की और लाइसेंस राज को खत्म किया। विकास की राह में रोड़ा बने बिचैलियों की भूमिका समाप्त की। राजीव गांधी देश की सुरक्षा को लेकर भी बेहद गंभीर थे। उन्हें कतई पसंद नहीं था कि पड़ोसी व विदेशी ताकतें देश की संप्रभुता को चुनौती दें। इसलिए उन्होंने परंपरागत विदेश नीति को एक नया आयाम दिया। पड़ोसी देशों से मधुर संबंध बनाए रखना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में था और आसपास की चुनौतियों को लेकर भी सतर्क थे। उनकी सरकार की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता-अतर्राष्ट्रीय मसलों को पारस्परिक बातचीत से हल करना और सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखना था। इसके लिए उन्होंने दक्षिण एशिया में शांति की ठोस पहल की। आग में जल रहे पड़ोसी देश श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए शांति सेना भेजी। लेकिन श्रीलंका में पसरे आतंकियों को यह रास नहीं आया और वे एक सुनियोजित साजिश रचकर 21 मई, 1991 को मद्रास के निकट पेराम्बुदूर में आत्मघाती हमला कर उनकी हत्या कर दी। संपूर्ण विश्व स्तब्ध रह गया। लेकिन उनकी शहादत रंग लायी और अंततः आतंकी शक्तियों को पराजित होना पड़ा। 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने। तथ्य यह भी कि देश में पीढ़ीगत बदलाव के महायोद्धा राजीव गांधी को अब तक का सबसे बड़ा जनादेश प्राप्त करने का गौरव भी हासिल है। राजीव गांधी स्वभाव से बेहद गंभीर और धैयवान थे। आधुनिक सोच व विचारों से लबरेज राजीव गांधी में निर्णय लेने की अदभुत क्षमता थी। वे भारत को दुनिया की उच्च तकनीकों से लैस देखना चाहते थे। उन्होंने सत्ता में रहते हुए ही इक्कीसवीं सदी के भारत के निर्माण का रोडमैप खींच दिया। यहीं कारण है कि देश आज भी राजीव गांधी के विचारों और उनके आदर्शों से प्रभावित और अभिभूत है। गौर करें तो समाज में व्याप्त विषमता से उत्पन जिस हलाहल को पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी और लाल बहादूर शास्त्री ने पीया और जीया उसी पीड़ा को वर्षों बाद राजीव गांधी को भी पीना पड़ा। बहरहाल उन्होंने पूरी ताकत से समाज के गुणसूत्र को बदलने की ठान ली। उन्होंने सामाजिक गैर-बराबरी को समाप्त करने लिए परंपरागत मूल्यों और मान्यताओं को हथियार बनाने के बजाए उसे ही निशाने पर रखा। पुरातनपंथी धारणाओं पर तीव्रता से हमला बोला और व्यवस्था की सामंती ढांचे को उखाड़ फेकने के लिए राजनीति को हथियार बनाया। राजीव गांधी का संघर्ष सदैव समतामूलक समाज के निर्माण, राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और समानता की दिशा में काम करने के रुप में याद किया जाएगा। दबे-कुचले वंचितों, शोषितों एवं पीड़ितों के लिए उनका सामाजिक-राजनीतिक योगदान एवं सर्वजन की चेतना को मुखरित करने की उनकी कमाल की क्षमता नई पीढ़ी के लिए मिसाल है। राजीव गांधी को समझने के लिए तत्कालीन समाज की बुनावट, उसकी स्वीकृतियां, विसंगतियां एवं धारणाओं को भी समझना होगा। इसलिए और भी कि उन्होंने समय की मुख्य धारा के विरुद्ध खड़ा होने और उसे बदलने के बदले में अपमानित और उत्पीड़ित करने वाली हर प्रवृत्तियों के ताप को सहा लेकिन कुंदन की तरह निखर कर दुनिया के सामने आए। वे भारत की धर्मनिरपेक्षता और भारत की जातीय एवं सांस्कृतिक मान्यताओं व विभिन्नताओं को लेकर बेहद सतर्क थे। उन्होंने सत्ता में रहते हुए कभी ऐसा निर्णय नहीं लिया जिससे उनपर सांप्रदायिक पक्षपात का आरोप लगे। उनका स्पष्ट मानना था कि भारत के विकास लिए सभी लोगों को मिलजुलकर साथ रहना होगा। राजीव का मानवीय पक्ष अत्यंत उदार और समावेशी था। लिहाजा उनकी सरकार और उन्होंने स्वयं देशवासियों में निर्धनों और अछूतों के प्रति सामाजिक चेतना पैदा की और सफलता हासिल की।

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