दानवों से ऋषि मुनियों और मानवों को मुक्ति दिलाकर जब रावण वध करके भगवान राम अयोध्या वापस आये थे तो अयोध्यावासियों ने घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था जिसे हम आज भी दीपावली के रूप में मनाते हैं। अपने पिता राजा दशरथ द्वारा माता कैकयी को दिये गये वचन को निभाने के लिये राम चौदह बरस के वनवास में चले गये थे। जिस भाई भरत को राजपाठ दिलाने के लिये माता कैकयी ने राम को वनवास भेजा था उसी भाई भरत ने चौदह सालों तक राम की खड़ॉंऊ राज सिंहासन पर रख कर राज चलाया था। जब राम अयेध्या वापस आये तो भरत ने उनका राज उन्हें सौंप कर एक मिसाल कायम की थी।
राम की रावण पर जीत सत्य की असत्य पर,प्रकाश की अंधकार पर और सदाचार की अत्याचार पर जीत थी। हर साल प्रतीक के रूप में रावण का दहन तो हम कर रहें हैं लेकिन आसुरी प्रवृत्तियों का अंत होना तो दूर वे बढ़ती दिखायी दे रहीं हैं। राम ने जिन आर्दशों को स्थापित किया था वे विलुप्त होते जा रहें हैं। भरत ने जिस भाईचारे की मिसाल कायम की थी वो कहीं गुमते जा रही हैं। राम का नाम लेकर रामराज्य स्थापित करने की बातें भाषणों में तो सुनायी देती हैं लेकिन राज सत्ता मिलते ही राम की जगह रावण सा आचरण ना जाने क्यों नेताओं का हो जाता हैं? सोने की लंका जीतने के बाद विभीषण को सौंपने वाले भगवान राम के कलयुगी भक्त राजपाठ मिलते ही खुद के लिये सोने की लंका बनाने के लिये क्यों जी जान से जुट जाते हैं? यदि कोई एक ईमानदार है तो वह अपने अलावा पूरे देश को बेईमान क्यों मानने लगता है? क्या ऐसा सब करते हुये हम विश्व गुरू बनने का लक्ष्य हासिल कर सकतें है?
इन ज्वलंत प्रश्नों पर विचार करना आज समय की मांग है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि हम पुन: उन सामाजिक मूल्यों की स्थापना करने पर विचार करें जिनके कारण भारतीय संस्कृति का समूची दनिया में गौरवपूर्ण स्थान था। इसमें व्यक्ति धन और सत्ता के बजाय गुणों के कारण पूजा जाता था। आज आवश्यक्ता राम का नाम लेने के बजाय उनके आदर्शों पर चलने की है। रावण के पुतले का दहन करने के बजाय जरूरत इस बात की हैं कि हम आसुरी प्रवत्तियों को समूल नष्ट करने का प्रयास करें।
विश्वास हैं कि हम ऐसा कुछ कर सकेंगें। यही दीपावली के पावन पर्व पर हमारी अपेक्षायें हैं।
आशुतोष वर्मा
क्या यहि है राम राज
जिसमे मनुश्य मनुश्य हॊते हुये भी ,हिन्दु हॊते हुये भी हिन्दु की तरह सिर् उथा के नहि जी सकता है,
क्यॊ???????
बन्द् करॊ ये बकवास्
अरे जॊ हिन्दु हॊते हुये हिन्दुऒ के बीछ् मे नहि रह् सकता और् उसके धर्म बदलने पर् बखेदा खरा करते हॊ
त्यौहार मनाने का मुख्य उद्देश्य हम भूल चुके हैं .. संकेतों से कुछ नहीं सीखते .. एक तोते की तरह रटते भी जाते हैं .. फंसते भी जाते हैं !!