राम जन्मभूमि की मुक्ति का अर्थ

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मनोज ज्वाला
भा
रत के राष्ट्रीय नायक अर्थात राष्ट्र-पुरुष राम की जन्मभूमि वर्षों तक राज-सत्ता के अधीन रहने के बाद अब मुक्त हो चुकी है। राम को परम ब्रह्म परमात्मा का अवतार मानने वाला हिन्दू-समाज अयोध्या की उस भूमि पर उनकी मंदिर बनाने जा रहा है जो राम मंदिर कहलाएगा। राम केवल उन्हीं लोगों के नहीं हैं जो उन्हें भगवान मानते हैं। राम तो उनके भी पूर्वज हैं जो उन्हें भगवान या भगवान का अवतार नहीं मानते हैं। राम इस देश के इतिहास-पुरुष हैं। इस तथ्य के सत्य से अब कोई इनकार नहीं कर सकता है। देश के शीर्ष न्यायालय ने ऐतिहासिक-पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर इस सत्य को स्थापित कर दिया है। तभी तो उसने ‘रामलला विराजमान’ के पक्ष में अपना यह निर्णय दिया है कि उक्त विवादित भूमि के वास्तविक स्वामी स्वयं रामलला हैं। वही रामलला जो सृष्टि रचने वाले ब्रह्मा की 39वीं पीढ़ी के महापुरुष हैं। राम जिस कुल के महापुरुष हैं उसकी गाथा बहुत ही गौरवशाली रही है। उस कुल में एक से बढ़कर एक महापुरुष हुए। महर्षि अरविन्द का यह कहना कि भारत की राष्ट्रीयता सनातन धर्म है, अनायास नहीं है। उनके इस कथन का आधार यह भी है कि भारत राष्ट्र एक सनातन राष्ट्र है और यह सनातन तत्व वास्तव में धर्म ही है जिसके रक्षण-संवर्द्धन की एक समृद्ध परम्परा आदि काल से ही रही है। उस परम्परा में एक से एक राष्ट्रीय नायक होते रहे हैं। राम एक ऐसे ही राष्ट्रीय नायक हैं जो वैवस्वत मनु के दस पुत्रों- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबलि, शर्याति व पृष्ध से सम्बद्ध हैं।

राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। रामायण  में राम के कुल का वर्णन इस तरह से क्रमवार किया गया है- ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए तो विवस्वान के पुत्र हुए वैवस्वत मनु। मनु के जीवन-काल में जल-प्रलय हुआ था। मनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु है। महाराजा इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाई थी। इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र हुए बाण और बाण के पुत्र- अनरण्य। अनरण्य के बाद उनके पुत्र पृथु इस देश के राजा हुए। पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र हुए धुंधुमार हुए। धुंधुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए। मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत कहलाये। भरत के पुत्र हुए असित और असित के पुत्र सगर। सगर के पुत्र का नाम असमंज हुआ और असमंज के पुत्र हुए अंशुमान। अंशुमान के पुत्र दिलीप थे। दिलीप के पुत्र हुए भगीरथ। भगीरथ ने ही गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारने का महान काम किया जिसकी कथायें-गाथायें धर्मशास्त्रों में पाई जाती हैं। ऐसे महान तपस्वी व प्रतापी राजा भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र हुए रघु। वही रघु जिनके कुल की वचनबद्धता व महानता के बारे में कहा जाता है कि ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई।’ रघु इतने तेजस्वी व पराक्रमी हुए कि उनके बाद इस राजवंश का नाम रघुवंश हो गया।दशरथ-राम का कुल रघुकुल कहलाया। जाहिर है रघु का पराक्रम राम से भी ज्यादा था। तभी तो राम के बाद के राजाओं को भी रामकुल का नहीं बल्कि रघुकुल का होना ही बताया जाता है। तो उन रघु के पुत्र हुए प्रवृद्ध और प्रवृद्ध के पुत्र हुए शंखण। शंखण के पुत्र सुदर्शन कहलाये और उनके पुत्र हुए अग्निवर्ण। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए और उनसे जन्में मरु। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक हुए और उनके पुत्र हुए अम्बरीष। राजा अम्बरीष के पुत्र नहुष हुए और नहुष के पुत्र हुए ययाति। ययाति के पुत्र हुए नाभाग। नाभाग से जन्में अज। अज के पुत्र हुए दशरथ और उन्हीं दशरथ के चार पुत्र हुए- राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न। आगे राम के दोनों पुत्रों लव और कुश को तो सभी जानते हैं किन्तु उनके बाद की वंशावली अज्ञात है। 

अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने रामलला पक्ष से उत्सुकतावश जब एक सवाल पूछा था कि क्या राम का कोई वंशज है? तब एक नहीं कई दावेदार सामने आए। राजस्थान  की एक भाजपा-सांसद व जयपुर की पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी ने दावा पेश किया कि वह श्रीराम के पुत्र कुश की वंशज हैं। दीया ने एक पत्रावली के जरिये इसके सबूत भी पेश किए जिस पर अयोध्या के राजा श्रीराम के सभी पूर्वजों का क्रमवार नाम लिखा हुआ है। उसमें 209वें वंशज के रूप में सवाई जयसिंह और 307वें वंशज के रूप में महाराजा भवानी सिंह का नाम लिखा हुआ है। इसी तरह से राजस्थान के मेवाड़ राजघराने की ओर से भगवान श्रीराम के वंशज होने का दावा किया गया है। महेंद्र सिंह मेवाड़ ने दावा किया कि मेवाड़ राजपरिवार भगवान राम के पुत्र लव का वंशज है। मेवाड़ के पूर्व राजकुमार लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने दावा करते हुए बताया कि कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में जिक्र किया है कि श्रीराम की राजधानी अयोध्या थी और उनके बेटे लव ने ही लाहौर नगर बसाया था। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपने दावे में कहा कि मेवाड़ का राज प्रतीक सूर्य है। सूर्यवंशी श्रीराम शिव के उपासक थे और मेवाड़ परिवार भी भगवान शिव का उपासक है। सिख वंश-परंपरा में गुरु नानक देव जी का एक वक्तव्य मिलता है कि वह भगवान राम के वंशज हैं।

2017 में हरियाणा के कुछ मुसलमानों ने भी दावा किया था कि वे भगवान राम के वंशज हैं। उनका कहना था कि दहंगल गोत्र से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान असल में रघुवंशी हैं जिन्हें मुगलकाल में धर्म परिवर्तन करना पड़ा था। लेकिन ये लोग आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं। राजस्थान के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों में ऐसे कई मुस्लिम हैं जो खुद को राम का वंशज मानते हैं।ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अब ‘रामलला विराजमान’ के पक्ष में फैसला आ जाने का अर्थ यह है कि राम महज कोई धार्मिक पात्र मात्र नहीं हैं, अपितु भारत राष्ट्र के इतिहास-पुरुष हैं। अतएव राम-जन्मभूमि पर भारत की राष्ट्रीयता अर्थात सनातन धर्म को आकार प्रदान करने वाला मंदिर का निर्माण तो हो ही, किन्तु वह मंदिर केवल पूजा-पाठ का भवन बनकर न रह जाए। बल्कि, भारत के वैभवशाली प्राचीन इतिहास का बोध कराने वाला स्मारक भी कहलाये। ऐसा होने से उसकी सार्थकता बढ़ जाएगी क्योंकि तब वह निर्माण भारत के गैर-हिन्दुओं को भी उनकी अस्मिता की वास्तविकता और भारत राष्ट्र की सनातनता व अक्षुण्णता का बोध कराएगा।

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