राम के नाम पर,राम के ‘कोप’ का शिकार भाजपा

2
225

निर्मल रानी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों से पूर्व निकाली गई जनचेतना यात्रा की असफलता के बाद तथा इस यात्रा के बावजूद चुनावों का सामना कर रहे उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,पंजाब,मणिपुर व गोवा में भाजपा के पक्ष में कोई सकारात्मक माहौल बनता न देख एक बार फिर भाजपा ने अपना पुराना ‘रामराग’ अलाप दिया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि एक ओर तो भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में भगवान श्री राम के नाम के मंदिर निर्माण किए जाने को पूरे देश के हिंदुओं की भावनाओं से जुड़ा विषय बताती है तो दूसरी ओर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे का उल्लेख पार्टी द्वारा केवल उत्तर प्रदेश में जारी किए गए चुनाव घोषणा पत्र में ही किया जाता है। गोया पार्टी स्वयं यह महसूस करती है कि यह मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति का नहीं अथवा अन्य राज्यों से इस का फिलहाल वास्ता नहीं बल्कि यह मुद्दा वर्तमान समय में केवल उत्तरप्रदेश के मतदाताओं को वरगलाने तथा राज्य में धर्म आधारित ध्रुवीकरण कराए जाने का ही है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जहां तमाम लोकलुभावनी बातें की हैं वहीं धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण किए जाने की गरज़ से घोषणा पत्र में दो बातों को मुख्य रूप से शामिल किया गया है। पार्टी ने राममंदिर निर्माण के सिलसिले में जहां यह कहा है कि ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राष्ट्र की अस्मिता, गौरव तथा गरिमा के प्रतीक हैं मगर अन्य राजनैतिक दलों की छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा उनके द्वारा की जाने वाली वोट बैंक की राजनीति के कारण इसका विरोध हो रहा है। सत्ता में आने पर भारतीय जनता पार्टी मंदिर निर्माण के रास्ते पर आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए वचनबद्ध है।’ वहीं पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग के कोटे में अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिए जाने का विरोध करते हुए भाजपा ने कहा है कि-‘पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षित कोटे में अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 प्रतिशत के आरक्षण कोटे को समाप्त कर दिया जाएगा।’ भारतीय जनता पार्टी का इस प्रकार का चुनावी घोषणा पत्र निश्चित रूप से एक समुदाय को निशाना बनाने तथा बहुसंख्य समुदाय को खुश करने का ही एक प्रयास है। कहा जा सकता है कि पार्टी राज्य के विकास अथवा अपनी उपलब्धियों व योग्यताओं के बल पर वोट मांगने के बजाए धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोट मांगना अधिक बेहतर समझ रही है।

 

हालांकि भाजपा हमेशा यही कहती रही है कि वह भव्य राममंदिर का निर्माण करना चाहती है। पार्टी अपने चुनावों के दौरान तथा लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा निकाली गई उनकी पहली विवादित रथयात्रा के दौरान बार-बार यह कहती रही है कि पार्टी सत्ता में आने पर मंदिर निर्माण कर के ही दम लेगी। जबकि दूसरी ओर राजनैतिक विशषक व टिप्पणीकार हमेशा से यही कहते आ रहे हैं कि मंदिर निर्माण तो महज़ एक बहाना है भाजपा का असली मकसद तो सिर्फ राम के नाम पर सत्ता पाना है। इस बात का प्रमाण उस समय मिल भी चुका है जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के गठन के समय 180 से अधिक सीटें जीतकर आने के बावजूद भाजपा द्वारा केवल अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार का गठन करने के मकसद से राममंदिर निर्माण मुद्दे को दरकिनार कर दिया गया। केवल राममंदिर ही नहीं बल्कि धार्मिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण कराए जाने के मकसद से भाजपा ने राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने व समान आचार संहिता का गठन किए जाने जैसे वे मुद्दे भी किनारे रख दिए जिन्हें कि मुख्य आधार बनाकर भाजपा देश के मतदाताओं को धर्म के आधार पर वरगलाया करती थी। पूरे देश ने साफतौर पर यह देखा कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन इसी आधार पर हुआ कि राम मंदिर निर्माण सहित यह तीनों मुद्दे सरकार की प्राथमिकताओं से अलग कर दिए जाएं। उसी समय यह साफ हो गया था कि भाजपा के लिए राममंदिर निर्माण या दूसरे भावनात्मक व भडक़ाऊ मुद्दों पर अमल करना चुनाव हो जाने के बाद उतना ज़रूरी नहीं है जितना कि सत्ता हासिल करना। उस समय भाजपा यह राग अलापने लगी थी कि जब हम पूर्ण बहुमत में आएंगे तब राम मंदिर बनाएंगे।

बहरहाल, गत् दिनों उत्तर प्रदेश में जारी किए गए भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र के बाद उत्तर प्रदेश चुनाव की भाजपा की ओर से बागडोर संभालने वाली नेत्री साध्वी उमा भारती ने साफ तौर से यह स्वीकार किया कि यदि राजग के समय मंदिर बनाने की कोशिश की गई होती तो सरकार गिर जाती। उमा भारती का अपना वक्तव्य इस निर्णय पर पहुंच पाने के लिए काफी है कि भाजपा ने उस समय भी सरकार को गिरने से बचाए रखने को ज़्यादा अहमियत दी जबकि राम मंदिर निर्माण को प्राथमिकता देना कतई ज़रूरी नहीं समझा। बजाए इसके पांच वर्ष के लिए इस मुद्दे का त्याग करने में पार्टी ने अपनी भलाई समझी। उमा भारती ने साथ ही साथ यह भी बड़ी स्पष्टवादिता के साथ स्वीकार किया कि राजग के सत्ता से जाने के बाद राम जी के कोप से पार्टी पुन: सत्ता में ही नहीं आई। अब ज़रा उमा भारती की इस स्वीकारोक्ति को देश के आम अमनपसंद व धर्मनिरपेक्ष लोगों की नज़रों से भी देखिए। जब-जब भाजपा ने या इनके फायरब्राण्ड नेताओं ने राम मंदिर के मुद्दे को जनता के बीच उछालकर देश के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाडऩे की कोशिश की है, तब-तब देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने भाजपा के इस प्रयास की घोर निंदा की है तथा भाजपा के सत्ता तक पहुंचने के लिए अपनाए जाने वाले इस रक्तरंजित रास्ते पर अपनी चिंता व्यक्त की है। तमाम बुद्धिजीवियों ने राम मंदिर निर्माण को लेकर की जाने वाली विद्वेषपूर्ण राजनीति को भगवान राम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताया। राम के नाम पर देश में राम राज्य लाने का सपना दिखाने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को देश के लेखकों, साहित्यकारों तथा बुद्धिजीवियों ने बार-बार तरह-तरह से यह समझाने की कोशिश की है कि उनके सत्ता की सीढ़ी चढऩे के इस खूनी खेल से न तो भगवान राम प्रसन्न होंगे न ही दुनिया इसे ठीक समझेगी। भाजपा को अयोध्या में अमन-शांति के लिए भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास पर जाने का उदाहरण भी दिया गया तथा अयोध्या के शाब्दिक अर्थ अ+युद्ध अर्थात् वह स्थान जहां युद्ध न हो के अर्थ तक समझाए गए। परंतु सत्ता हासिल करने के नशे में चूर भाजपा को सिवाए अपनी कुर्सी तक पहुंचने के और कुछ नज़र नहीं आया। और भाजपा के इन्हीं नापाक प्रयासों की परिणति कभी 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में उस समय होती देखी गई जबकि इसी पार्टी के सिपहसालारों ने देश के संविधान की धज्जियां उड़ाईं तथा पूरी दुनिया में देश को कलंकित किया। गुजरात में 2002 में हुए साम्प्रदायिक दंगे जिससे पूरा देश शर्मसार हो उठा था, वह भी भारतीय जनता पार्टी द्वारा बोए गए नफरत के इन्हीं बीजों का परिणाम थे।

अत: उमा भारती द्वारा पार्टी पर भगवान राम के कोप का स्वीकार किया जाना दरअसल एक वास्तविकता है जो संभवत: उमा भारती जैसी स्पष्टवादी साध्वी के मुंह से भले ही सुनाई दे गई परन्तु पार्टी के अन्य राजनैतिक महारथी उमा भारती की इस स्वीकारोक्ति को शायद ही पचा सकें। यदि उमा भारती ने अपने अन्तर्मन से पार्टी के भगवान राम के कोपभाजन होने की बात स्वीकार की है तब तो अब उन्हें ऐसे उपाय तलाशने चाहिएं जिससे कि भविष्य में उन्हें राम जी के कोप का सामना न करना पड़े। उन्हें वास्तविक राम राज्य की बात करनी चाहिए। भगवान राम के बताए गए प्रेम, सद्भाव, त्याग, तपस्या आदि के रास्ते पर चलते हुए, मानवता का संदेश देते हुए राम राज्य लाने की कल्पना करनी चाहिए। लाखों बेगुनाह लोगों की लाशों पर निर्मित किया गया भगवान राम के नाम का मंदिर न तो भगवान राम को स्वीकार्य होगा, न ही दुनिया के लोग उस स्मारक को यादगार, धार्मिक तथा लोकप्रिय स्मारक के रूप में देखेंगे। निश्चित रूप से अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण अवश्य होना चाहिए। परंतु इस मुद्दे का राजनीतिकरण हरगिज़ नहीं किया जाना चाहिए।

भगवान राम केवल भाजपा से जुड़े हिन्दुओं के ही भगवान या अराध्य नहीं हैं बल्कि देश के सभी हिन्दू उन्हें अपने अराध्य मानते हैं। केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि भगवान राम के चरित्र को देखकर सिख, मुसलमान, इसाई समुदायों के तमाम लोग उनके भक्त व प्रशंसक हैं। ऐसे में किसी एक राजनैतिक पार्टी द्वारा राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को अपनी जागीर बनाया जाना या इस मुद्दे का निजीकरण किया जाना सर्वथा अनुचित व अनैतिक है। इस पूरे प्रकरण में एक और हैरतअंगेज़ बात यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने कथित रूप से मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हुए 6 दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश के जिस मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर बाबरी मस्जिद विध्वंस कराया था, आज वही कल्याण सिंह स्वयं यह कह रहे हैं कि भाजपा कभी भी मंदिर निर्माण के लिए गंभीर नहीं थी बल्कि वह तो केवल सत्ता पाने के लिए इस मुद्दे को उछालती व भुनाती रहती है। लिहाज़ा भाजपा अब एक बार स्वयं अपने ही नेताओं के वक्तव्यों द्वारा बेनकाब हो चुकी है और स्वयं स्वीकार कर चुकी है कि उसके लिए राम मंदिर निर्माण महज़ एक मुद्दा मात्र है, असल मकसद तो सत्ता हासिल करना ही है। अत: अब देश की जनता को स्वयं यह निर्णय लेना चाहिए कि वह ऐसे भावनात्मक मुद्दों का शिकार हो या उनसे बचने का प्रयास करे।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here