अयोध्या राम मंदिर निर्माण और भगवान श्रीराम की जन्मपत्री

ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव 

हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान श्रीराम जी के कुंडली का सुंदर रुप में चित्रण किया गया है। तुलसीदासकृत वाल्मीकि रामायण में एक स्थान पर भगवान श्रीराम के जन्म समय की जानकारी मिलती है- कि

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥

भावार्थ-

पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देनेवाला था।

इस प्रकार बनाई गई कुंड्ली का कर्क लग्न था। लग्न भाव में उच्चस्थ गुरु और चंद्र स्थित हैं। लग्न में उच्चस्थ गुरु ने भगवान श्रीराम को सत्कर्मी, निष्कलंक और यशस्वी बनाया। गुरु के साथ चंद्र की स्थिति इन्हें समृद्ध, सुसंस्कृत, न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ, क्षमाशील और विद्वान बना रही है। गुरु-चंद्र युति के फलस्वरुप भगवान श्रीराम भाग्यशाली रहें तथा इन्होंने जीवन में उच्च स्थान प्राप्त कर, देश-विदेश में सम्मान प्राप्त किया। संपूर्ण जीवन भगवान श्रीराम सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय रहें और उनका व्यवहार मृदु रहा। लग्न भाव में उच्चस्थ गुरु के प्रभाव से ही राम जी जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हर प्रकार का बलिदान करते रहें। लग्नस्थ गुरु इनके लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करता रहा।

भगवान राम की कुंडली के चतुर्थ भाव में उच्चस्थ शनि हैं जिन्हें दशम भाव में स्थिति उच्चस्थ सूर्य की दॄष्टि प्राप्त हो रही हैं। इस प्रकार चतुर्थ भाव पीड़ित हो रहा है। चतुर्थ भाव के पीड़ित होने के कारण इन्हें घर एवं माता का सुख कम ही प्राप्त हुआ, जीवन के अधिकतर समय इन्हें घर से दूर ही रहना पड़ा।

भगवान राम की कुंडली में मंगल के सप्तम भाव में उच्चस्थ होने के कारण उनका विवाह माता सीता जैसी दिव्य कन्या से हुआ। कुंडली में मंगल स्थित राशि मकर का स्वामी शनि भी उच्चस्थ है तथा शनि स्थित राशि का स्वामी शुक्र भी उच्चस्थ है। शुक्र पत्नी का प्रतिनिधि ग्रह है। अतः भगवान राम का माता सीता जैसी दिव्य कन्या से विवाह होना स्वाभाविक है। भगवान राम की जन्मकुंडलीमें मंगल सप्तम भाव में होने से मंगलीक है। किंतु उसके उच्च राशिस्थ होने से उसका दोष निष्प्रभावी तो रहा किंतु सप्तम् भाव एवं उसके कारकेश शुक्र पर राहु की दृष्टि और केतु की स्थिति तथा सप्तम् भाव में विध्वंसक मंगल की स्थिति के कारण पत्नी वियोग का दुख झेलना पड़ा।

शनि, मंगल व राहु की दशम् भाव एवं सूर्य पर दृष्टि पिता की मृत्यु का कारण बनी। शनि की चतुर्थ भाव में स्थिति और चंद्र एवं चंद्र राशि कर्क पर दृष्टि के कारण माताओं को वैधव्य देखना पड़ा। छोटे भाई का प्रतिनिधि ग्रह मंगल सप्तम् भाव में उच्च का है और उस पर गुरु की दृष्टि है, जिसके फलस्वरूप छोटे भाइयों ने भगवान राम की पत्नी अर्थात माता सीता को माता का आदर दिया। उच्च के ग्रह से हंस योग, शनि से शश योग, मंगल से रुचक योग और चंद्र के लग्न में होने के फलस्वरूप गजकेसरी योग है। गुरु और चंद्र के प्रबल होने के कारण यह गजकेसरी योग अत्यंत प्रबल है। पुनर्वसु के अंतिम चरण में होने से चंद्र स्वक्षेत्री होने के कारण वर्गोंतम में है। अतः भगवान श्री राम के सामने जो भी कठिनाइयां आईं उनका उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया।

 उनकी जन्मकुंडली में राहु की स्थिति तृतीय भाव कन्या राशि में होगी क्योंकि तृतीय भाव का राहु जातक को पराक्रमी एवं प्रतापी बनाता हैं। इसके अनुसार केतु नवम् भाव में उच्च के शुक्र से युत है। इसी शुक्र के कारण भगवान राम के पराक्रमी एवं प्रतापी बनने में उनकी पत्नी माता सीता माध्यम एवं कारण बनीं। पंचमेश मंगल के पंचम से तीसरे स्थान पर होने के कारण भगवान राम के पुत्र भी अत्यंत पराक्रमी हुए।

लग्नेश भाग्येश का योग और उन पर पंचमेश, सप्तमेश और दशमेश की दृष्टि से प्रबल राजयोग बना। उच्च का सुखेश शुक्र भाग्य स्थान में है और उस पर भाग्येश गुरु की दृष्टि है। इन्हीं योगों के कारण भगवान चक्रवर्ती सम्राट बने। चतुर्थेश शुक्र के उच्च होने के कारण भगवान राम सांसारिक हुए।

अयोद्या राममंदिर निर्माण और वर्तमान ग्रह गोचर 

गॄहनिर्माण के ज्योतिषीय योग

गॄहनिर्माण का कारक ग्रह शनि है। चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और कारक शनि यदि तीनों शुभ प्रभाव से युक्त और अशुभ प्रभाव से मुक्त हों तो व्यक्ति कम आयु में ही घर बनाने में सफल होता है। घर भौतिक संसाधनों से युक्त होगा या नहीं इसके लिए शुक्र की स्थिति का विचार किया जाता है। चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और शुक्र के अच्छी स्थिति में होने पर व्यक्ति को अपनी गृह संपत्ति का अच्छा सुख मिलता है और चतुर्थ भाव व शुक्र के पीड़ित या कमजोर होने पर व्यक्ति को अपनी गृह संपत्ति की प्राप्ति के बहुत परिश्रम और संघर्ष करना पड़ता है। चतुर्थ भाव में शनि की स्थिति गॄहनिर्माण में संघर्ष की स्थिति देती है।

भगवान श्रीराम की जन्मपत्री में चतुर्थ भाव सूर्य के प्रभाव और शनि स्थिति से पीड़ित है, चतुर्थेश शुक्र नवम भाव मे राहु/केतु अक्ष में होने से कमजोर हो गया हैं। चतुर्थेश शुक्र का नवम भाव में राहु /केतु प्रभाव आने से राम मंदिर निर्माण को कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है। चतुर्थ भाव पर गोचर में शनि की दॄष्टि भवन निर्माण अर्थात गॄहनिर्माण कराती है।

इस समय गोचर में शनि धनु राशि में गोचर कर इनके छ्ठे भाव पर हैं। यहां से शनि जन्मराहु को तो प्रभावित कर रहे हैं परन्तु चतुर्थ भाव को सक्रिय नहीं कर पा रहे हैं। जनवरी, 2020 में जब शनि मकर राशि में गोचर करेंगे उस समय गोचरस्थ शनि जन्म समय को दॄष्टि देंगे और चतुर्थ भाव के फल भी सक्रिय होंगें। ऐसे में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अवश्य होगा। मार्च 2019 में गोचर में शनि गोचर के राहु को देखेंगे, इस स्थिति में इस विषय में सिर्फ राजनीति होगी, परिणाम सामने नहीं आ पायेंगे। शनि न्याय प्रक्रिया के कारक ग्रह हैं, गुरु ग्रह धर्म स्थलों का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रह हैं। 29 मार्च 2019 को शनि-गुरु युति हो रही हैं और राहु/केतु प्रभाव भी प्राप्त हो रहा हैं, अत: धर्म स्थलों के निर्माण की अटकलों को इस समय में हवा मिलने वाली है। परन्तु अंतत: होगा कुछ नहीं, मंदिर का निर्माण 2020 में ही हो पाएगा। 

जय श्रीराम 

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