दलितों के राम थे पासवान

  • श्याम सुंदर भाटिया

पिता जी का दबाव था, बेटा रामविलास पासवान पुलिस अफसर बनें। पिता की ख़्वाहिश की खातिर डीएसपी की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन दोस्तों से पूछा- सर्वेंट बनना है या गवर्नमेंट। उन्होंने इस सवाल का शब्दों में तो तत्काल कोई  जवाब नहीं दिया, लेकिन उन्होनें दोस्तों और देश को अपनी अविस्मरणीय सियासी पारी से हैरत में डाल दिया। इस दलित का नेता आजीवन चुनवी रण बिहार का हाजीपुर संसदीय क्षेत्र रहा तो संसद की मार्फ़त कर्मभूमि पूरा देश। हाजीपुर की जनता उन्हें बेपनाह मुहब्बत करती थी, जिसके बूते वह आठ बार सांसद चुने गए, लेकिन 1984 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या और 2009 में वहां की जनता ने उन्हें पराजय का स्वाद चखाया। बावजूद इसके वह हाजीपुर को अपनी माँ मानते थे। धरती गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास सरीखा नारा इसकी तस्दीक करता है। 1977 में उन्होंने हाजीपुर का दामन थामा तो अंत तक हाजीपुर को नहीं छोड़ा। उन्होंने ईमानदारी, जनसेवा के संकल्प और समर्पण के बूते सियासत में नए मुहावरे गढ़े। संसदीय चुनाव में जीत के बड़े अंतर के चलते दो बार गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हुआ। महज 23 साल की उम्र में एमएलए की ताजपोशी हुई। अंबेडकर जयंती पर सार्वजानिक अवकाश से लेकर वन नेशन-वन कार्ड उनकी उपलब्धियों में शुमार हैं। गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान में उनका अहम रोल रहा है। सियासी गलियारों में उन्हें मौसम विज्ञानी कहते थे। यह सच है, सियासी पिच के वह पारखी थे। 1996 से अब तक वह केंद्रीय सरकारों में तमाम मलाईदार मंत्रालयों में रहे, लेकिन छवि हमेशा बेदाग रही। सियासी पिच काई भरी होती है। कोई विरला ही होगा, जो 50 बरस राजनीतिक मैदान पर डटा रहे। उन्होंने पांच प्रधानमंत्रियों की केबिनेट को शुशोभित किया। सभी दलों से उनके रिश्ते मित्रवत रहे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की विनम्र श्रद्धांजलि ग़ौरतलब है -यह दु:ख शब्दों से परे है, मैंने अमूल्य दोस्त खो दिया है। 

निश्चित ही रामविलास पासवान के निधन से देश और खासकर बिहार की राजनीति में बड़ा शून्य पैदा हुआ है। रामविलास उन नेताओं में से थे, जिन्होंने अपनी मेहनत से सालों तक मेहनत कर बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर बड़ी जगह बनाई थी। वह इस समय केंद्र सरकार में मंत्री थे। उन्होंने अपने दल लोक जनशक्ति पार्टी की कमान बेटे चिराग को सौंप दी थी। अध्यक्ष बने चिराग पासवान ही पार्टी से जुड़े सभी फैसले लेते हैं। हाल ही चिराग ने बिना बीजेपी और जेडीयू से मिलकर अकेले ही चुनाव लड़ने जैसा बड़ा और चौंकाने वाला फैसला किया था। न सिर्फ लोक जनशक्ति पार्टी बल्कि बिहार की राजनीति और लोगों को भी यह स्वीकार करने में समय लगेगा कि रामविलास अब नहीं रहे। कमी खलती रहेगी। रामविलास ने बिहार की राजनीति में बेहद संघर्ष कर जगह बनाई थी। रामविलास का जन्म बिहार के जिला खगड़िया के शहरबन्नी गाँव में 5 जुलाई 1946 में हुआ। पिता का नाम जामुन पासवान और मां का नाम सीया देवी था। रीना पासवान से शादी के बाद तीन बच्चे हुए। राजनीतिक विरासत सँभालने वाले चिराग पासवान इनमें से एक हैं। एमए, एलएलबी, डी. लिट करने वाले रामविलास पासवान ने 1969 में चुनावी राजनीति में कदम रखा और पहली बार विधायक बने। तब उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी। 1977 में रामविलास ने लोकसभा चुनाव लड़ा। और जीतकर सांसद बने। ये कोई आम जीत नहीं थी। वह हाजीपुर लोकसभा सीट से 4, 24, 545 वोटों से जीते। पहली बार जब वह सांसद बने थे, तब उम्र 31 साल ही थी। यह इतनी बड़ी जीत थी कि इसे ‘गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दर्ज किया गया।1969 से लेकर वह अब तक सक्रिय रहे और सत्ता के केंद्र में रहे। वह कई बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहे। उन्होंने यूपीए और एनडीए सरकारों में वह कोयला-खनन मंत्री, रेल मंत्री, श्रम एवं कल्याण मंत्री सहित कई मंत्रालय संभाले। इस समय वह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद थे। देश के अग्रणी दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने वाले रामविलास कई दलों में रहे। वह 1970 में बिहार की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े। लोकदल बिहार, जनता पार्टी, जनता दल से जुड़े रहे। 2000 में उन्होंने लोकजनशक्ति पार्टी बनाई, जिसकी जिम्मेदारी अब बेटे चिराग के हाथ में हैं।

पासवान को हाजीपुर संसदीय सीट से 2009 में हार से झटका जरुर लगा था, लेकिन उन्होंने खुद को हाजीपुर से जोड़े रखा। हार के बाद हाजीपुर के मीनापुर में पासवान की पहली सभा हुई थी, जहां पासवान की आंखों में आंसू छलक आए थे। उन्होंने उस समय कहा था कि लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, बच्चे से गलती हो जाती है तो थप्पड़ मार देना चाहिए, लेकिन इतनी बड़ी सजा नहीं देनी चाहिए। मैंने हाजीपुर को अपनी मां माना है और इस धरती एवं यहां के लोगों का कर्ज वे मरते दम तक नहीं चुका पाएंगे। इसी का नतीजा था कि 2014 के चुनाव में उन्होंने हाजीपुर से एक बार फिर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। इस तरह से उन्होंने अपने आखिरी वक्त तक हाजीपुर से अपने आपको जोड़े रखा। पासवान में राजनीतिक माहौल भांपने की गजब की काबिलियत थी। अपनी इसी काबिलियत के कारण अक्सर राजनीतिक गलियारे में उन्हें मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पासवान के राजनीति में आने की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है। बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में जन्मे रामविलास पासवान यूपीएससी की परीक्षा क्लीयर कर डीएसपी के पद पर चयनित भी हो हुए थे। इस बात से उनके परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं रहा था, लेकिन उनके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। समाजवादी नेता राम सजीवन से संपर्क में आने के बाद पहली बार 1969 में रामविलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने इसके बाद वह राजनीति में कुछ इस कदर चमके कि लगभग हर मंत्रिमंडल में वो मंत्री पद पर रहे। रामविलास पासवान पहले जनता दल का हिस्सा थे फिर वह नीतीश कुमार के साथ जेडीयू में आए। लेकिन इस दौरान बिहार में सियासी तस्वीर बहुत तेजी से बदल रही थी और साल 2000 में रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी के नाम से अपना पार्टी का गठन किया। दलितों की सियासत करने वाले पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन भी बनाया था।

पासवान का जीवन कड़वे और मीठे अनुभवों से भरा रहा। चार नदियों से घिरे दलितों के गांव की ज्यादातर उपजाऊ जमीन बड़ी जातियों के लोगों के कब्जे में थी, जो यहां खेती करने और काटने आते थे। ऐसा नहीं था कि पासवान को मूलभूत जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ा था लेकिन आसपास ऐसे हालात देखने को खूब थे। पिताजी के मन में बेटे को पढ़ाने की ललक ऐसी कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार। पहला हर्फ गांव के दरोगा चाचा के मदरसे में सीखा। तीन महीने बाद ही तेज धार वाली नदी के बहाव में मदरसा डूब गया। फिर दो नदी पार कर रोजाना कई किमी दूर के स्कूल से थोड़ा पढ़ना लिखना सीख गये। जल्दी ही शहर के हरिजन छात्रवास तक पहुंच बनी, फिर तो वजीफे की छोटी राशि से दूर तक का रास्ता तय कर लिया। पढ़ाई होती गई और आगे बढ़ने का मन भी बढ़ता गया। खैर पढ़ाई पूरी होने लगी तो घर से नौकरी का दबाव भी बढ़ने लगा। दरोगा बनने की परीक्षा दी पर पास न हो सके। लेकिन कुछ ही दिन बाद डीएसपी की परीक्षा में पास हो गए। घर में खुशी का माहौल था लेकिन पासवान के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। पासवान के गृह जिला खगड़िया के अलौली विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना था और वह घर जाने की बजाए टिकट मांगने सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर पहुंच गए। उस वक्त कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए कम ही लोग तैयार हुआ करते थे। सो टिकट मिल भी गया और वे जीत भी गए। पिताजी का दबाव पुलिस अफसर बनने पर था लेकिन दोस्तों ने कहा- सर्वेंट बनना है या गवर्नमेंट, ख़ुद तय करो। नतीजा सामने है। लंबी राजनीतिक यात्र रही। कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

रामविलास पासवान का शानदार व्यक्तित्व देश की युवा पीढ़ी के राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ साथ देश के सभी वर्गों के लिए लिए लंबे समय तक प्रेरणादायी बना रहेगा। बाबा संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त दलित नेता बाबू जगजीवन राम के बाद देशवासी राष्ट्रीय स्तर का दलित नेता मानते थे। भारतवर्ष के लोगों में दलित नेता के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को सामान्य रूप से काम करने एक अलग पहचान थी। वह सिर्फ दलितों के ही नहीं समाज के हर वर्ग की भलाई चाहते थे। आरक्षण के लिए आरक्षण के लिए मंडल आयोग की सिफारिश करने सवर्णों को भी 15 फीसदी आरक्षण देने की आवाज उठाई थी। बिहार के वर्तमान राजनीतिक हस्तियों में रामविलास पासवान सबसे पहले विधानसभा पहुंचे और संसदीय जीवन में प्रवेश किया। रामविलास पासवान 1969 में ही विधायक बन गए जबकि लालू प्रसाद को विधायक बनने का सौभाग्य 1980 में हासिल हुआ। हालांकि वह इसके तीन साल पहले जेपी लहर में ही लालू प्रसाद 1977 का लोकसभा चुनाव जीते थे। पहली बार विधानसभा में सोनपुर से किस्मत आजमाने वाले लालू प्रसाद को 45 हजार से ज्यादा मत मिले और 9167 वोट से वे चुनाव जीते थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संसदीय जीवन 1985 में शुरू हुआ जब वह पहली बार नालंदा के हरनौत से चुनाव जीतकर एमएलए बने थे।

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