रामदेव के मुद्दे से भटकाने के रचे जा रहे हैं षड्यंत्र

भूपेन्द्र धर्माणी

रामलीला मैदान प्रकरण से मुख्‍यत दो बातें उभरकर सामने आईं। एक सत्तापक्ष कांग्रेस की दमनकारी प्रवृत्ति तथा बाबा रामदेव की बड़े स्तर पर आयोजित सत्याग्रह व आंदोलन के प्रबंधन में अपरिपक्वता। बाबा के सत्याग्रह के जो भी परिणाम हुए हों उसके देश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव अवश्यंभावी हैं। कांग्रेस की यह सोच की बाबा को चित्त कर उन्होंने अपना पलड़ा भारी सिध्द कर दिया, बड़ी भूल होगी। देशभर में एक स्वर से रामलीला मैदान प्रकरण व बाबा रामदेव द्वारा उठाये कालेधन की वापसी व भ्रष्टाचार जैसे अहम् मुद्दों से भटकाने के कांग्रेस के कुप्रयास की सर्वत्र आलोचना हुई। इस अहम् मुद्दे पर कांग्रेस संगठन में बैठे पदाधिकारी व पार्टी के सत्ता के उच्च पदों पर बैठे मंत्रियों के बयानों से समाज में दोनों पक्षों में विरोधाभास दर्शाने का एक विचित्र प्रयास हुआ। इस कड़ी में कांग्रेसी यह भूल गए कि इस बात को आम जन किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करता कि जिस सरकार का प्रधानमंत्री ही दल की अध्यक्षा के रिमोट से नियंत्रित होता हो उस सरकार के मंत्री और संगठन की कार्य प्रणाली में अंतर कैसे संभव है?

ऐसी चर्चाएं अब चल रही है कि इस सत्याग्रह को पहले ही दबा देने का नियोजित प्रयास था। निहत्थे सोते हुए सत्याग्रहियों पर आधी रात में पुलिस कार्यवाही का निर्णय भी अचानक नहीं हुआ। हालांकि कुछ आलोचक इसे कांग्रेस का अंतर्द्वंद्व बताते हैं लेकिन ऐसा संभव नहीं कि संगठन का एक वरिष्ठ महासचिव बाबा रामदेव को ठग बताए और उन पर गम्भीर आरोप लगाए उनकी सम्पत्ति पर प्रश्नचिह्न लगाए और केन्द्रीय मंत्रीमण्डल के चार वरिष्ठतम मंत्री उसके सामने गिड़-गिड़ाते नजर आएं। लगभग यही स्थिति अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान नजर आई। अन्ना द्वारा लोकपाल विधेयक के प्रारूप को लेकर वर्तमान में दिए जा रहे बयान मनमोहन सरकार के मंत्रियों की विश्वसनीयता पर तो प्रश्न चिह्न लगा ही रहे हैं। साथ ही भ्रष्टाचार और कोलधन के मुद्दे पर कांग्रेस और मनमोहन सरकार की प्रतिबद्धता को भी उजागर कर रहे हैं।

इस सम्पूर्ण संघर्ष में बाबा रामदेव वाक्शक्ति चाहे दिखाते रहे हों परंतु कूटनीति में कांग्रेस से पिछड़ गए। इसी नीति के तहत कांग्रेस ने एक तीर से दो शिकार किए। पहला भ’ष्टाचार विरोधी तथा विदेशों में जमा कालाधन देश में वापिस लाने की आवाज को कमजोर करना तथा इस संवेदनशील मुद्दे पर बन रहे जोरदार आंदोलन की हवा निकाल उसे अस्थिर करना। विदेशों में कालाधन वापिस लाना आम भारतीय नागरिक के लिए अति संवेदनशील मुद्दा है। इस मुद्दे से हर राजनीतिक पार्टी, अफसरशाही प्रभावित होती। सरकार की नींव तक हिला सक ने का समर्थ रखने वाली इस मुद्दे मोड़कर बाबा रामदेव की सम्पत्ति पर एक के बाद एक भ्रमित कथन जारी किए गए। जल्दी में बाबा रामदेव ने अपनी सम्पत्ति का हवाला दे दिया परन्तु इससे भी संतुष्ट न हो कांग्रेस नेता एवं मीडिया भी उनकी कम्पनियों द्वारा अर्जित मुनाफे को निशाना बनाती रही।

इसी शोरगुल में यह सोच डूब गई कि जिस धन का ब्यौरा हम राजनीतिक पार्टियों, अफसरों से लेने की बात सोचते हैं वहीं इस देश में अनेकों अनेक ऐसे संत भी हैं जो अपनी सत्ता एवं जागीरें स्थापित कर चुके हैं। जब बाबा रामदेव से उनके धन के स्रोतों के बारे में पूछा जा रहा था तो कहीं यह स्वर नहीं उठा कि सभी धार्मिक गुरुओं एवं प्रतिष्ठानों से उनकी आय और व्यय का हिसाब मांगा जाए। वह चाहे हिंदु विचारधारा के हों, चाहे मुस्लिम या इसाई। ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस समय तथा परिस्थिति के अनुसार अपना राग अलापती रही है। क्या राजनेताओं द्वारा बनाए गए ट्रस्टों की जांच नहीं होनी चाहिए? राजीव फॉउंडेशन का मामला भी इसी श्रेणी में क्यों नहीं आ सकता? सत्ता गठबंधन की प्रमुख की संपत्ति व उनके ट्रस्टों की जांच को लेकर आवाज क्यों नहीं उठी? कहीं तो कांग्रेस पार्टी तथा सरकार के मुखिया फूलमालाएं अर्पित करते हैं और कहीं अपने मंत्रियों द्वारा सत्ता अस्थिर होते देख आरोपों की झड़ियां लगा देते हैं।

इस बीच एक बार भी कांग्रेस के नेताओं ने उन आम लोगों के बारे में न सोचा न कुछ कहा जिन्होंने उस रात अनंत पीड़ा सही। सारा सार्वजनिक संताप एवं संभाषण बाबा रामदेव पर केन्द्रित था और समाचार-पत्रों में पीड़ितों की आवाज बीच के पन्नों की कुछ कहानियों तक दबकर रह गई। इस आंदोलन के दौरान दमनकारी नीति अस्पतालों तक भी नजर आई और बहुत से मीडियाकर्मियों को पीड़ितों से मिलने अथवा बातचीत का मौका नहीं दिया गया। भारत के हिंदुवादी संत जब राष्ट्रीय स्वाभीमान के लिए संघर्षरत बाबा रामदेव को जूस पिला रहे थे तब कांग्रेस की चुप्पी आश्चर्यजनक थी। वह उन संतों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रायोजित कहने से चूक गई या फिर इन संतों के वोट-बैंक को कांग्रेस नाराज नहीं करना चाहती थी। कांग्रेस भ्रष्टाचार एवं विदेशों में काले धन के मुद्दों पर संवेदनशील है या नहीं इस महत्वपूर्ण बिंदू पर आज तक स्पष्ट रूप से सत्तादल कांग्रेस के किसी भी नेता ने बयान नहीं दिया है और न ही मनमोहन सरकार के किसी मंत्री ने इस पर कोई ठोस आश्वासन आम जनता को दिया है। देश की गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे करोड़ों परिवार और करदाता वास्तव में जानना चाहते हैं कि आखिर भ्रष्टाचार नियंत्रण और विदेशों में पड़े इस गरीब देश के अरबों रुपये के कालेधन को वापस लाने के लिए समयबध्द ठोस कार्ययोजना का खुलासा क्यों नहीं किया जा रहा? राजनेता इस मुख्‍य मुद्दे से हटकर एक दूसरे की संपत्ति एक दूसरे के उपर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर आखिर कब तक इस देश की भोली जनता को भ्रमित कर सकेंगे?

3 COMMENTS

  1. वाकई षड्यंत्र रचे जा रहे है. वर्तमान सरकार कभी नहीं चाहेगी की कभी कोई नया कानून बने. हमाम में सब नंगे. चोर चोर मोसेरे भाई. अंधेर नगरी चौपट रजा, – हर स्तर पर – अँधा बांटे रेवाड़ी चीन्ह चिन्ह कर देय.

  2. कांग्रेस नीत संप्रग २ सरकार का चेहरा एक घटना से स्पष्ट हो जाएगा. अप्रेल २००९ में लन्दन में हुई जी-२० शिखर वार्ता में काले धन व टैक्स हवेन के बारे में एक गंभीर प्रस्ताव पास करके उन टैक्स चोरी के पनाह्गारों लो चेतावनी की मुद्रा में कहा गया की बैंकिंग कानूनों की गोप्नियता की आड़ में अब काले धन का धंदा नहीं चलेगा और सभी बैंकों को उनके यहाँ जमा विदेशी नागरिकों के बारे में सम्बंधित देशो की सरकारों को जानकारी देनी होगी. एक सात सदस्यीय समिति का भी गठन किया गया जिसमे भारत को भी शामिल किया गया. लेकिन हमारे ‘भोले भाले’ प्रधानमंत्री ने कहा की हम ‘फिशिंग exercise नहीं कर सकते और केवल ठोस सबूत होने पर ही जानकारी प्राप्त हो सकेगी. प्रधानमंत्री ने इस मामले को हल्का करने वाला बयां क्यों दिया वाही जाने.पिछले दो वर्षो में इस मुद्दे पर दुसरे देशों में बहुत कुछ हो रहा है लेकिन भारत में कुछ होना तोदूर इस बारे में आवाज़ उठाने वालों पर रात में सोते हुए लाठी चार्ज किया जाता है.
    एक खबर के अनुसार जिस दिन बाबा रामदेव ने अनशन तोडा उसी रात को मैडम सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी(रौल विन्ची), प्रियंका( विंका), रोबेर्ट वाड्रा विन्सेंट जोर्जे तथा एक दर्जन से अधिक वित्तीय सलाहकार विशेषज्ञ एक निजी जहाज से स्वित्ज़रलैंड गए हैं जहाँ उनके द्वारा अपने अकूत काले धन को ठिकाने लगाने का प्रयास किया जा रहा है. इन्टरनेट पर यह खबर मुंबई के इम्मिग्राशन अधिकारीयों के हवाले से जारी की गयी है. इ डी , डी आर आई रा व अन्य संगठन देख रहें हैं ना? अब सबको सुब्रमण्यम स्वामी जी के द्वारा १५ जुलाई के बाद केस दाखिल करने का इंतजार है.

  3. बात बिलकुल सही है बाबा रामदेव कूटनीति में पीछे रह गए उन्होंने कूटनीतिज्ञों की टीम बनानी चाहिए थी , क्यों की कांग्रेस अति कुटिल पार्टी पुरे देश मैं नहीं है ,स्वामी जी ने कांग्रेस जैसी पार्टीयों के साथ लड़ने की हिम्मत दिखा दी , ताकत दिखा दी पर उनके जैसा गाग पण नहीं दिखा पाए ,धोका देने मैं कांग्रेस का कोई हाथ बही पकड़ सकता है , रही बात मुद्दों से भटकने की वो बात बुल्कुल सत प्रतिशत सही है कांगेस जानबुज कर जनता को मुद्दों से बातका रही है कांग्रेस जैसे कामिनी पार्टी दुनिया मैं नहीं है लादेन की हिम्मत तो दिखा दी पर कमीना पण भी लाना चाहिए राजनीती के लिए भी जरुरी है , भगवान श्रीकृष्ण ने भी धर्म को जितने के लिए अधर्म का मार्ग भी अपनाया था

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here