रामलीलाएं और भव्य कवि सम्मेलन

सुरेश नीरव

भारत एक लीला प्रधान देश है। वर्षभर यहां किसिम-किसिम के विविधभारती जलसे होते ही रहते हैं। इसलिए ही इसे भारतवर्ष भी कहा जाता है। जलसे… राजनैतिक आंदोलनों से लेकर भगवती जागरण तक। देश एक लीलाएं अनेक। भक्तजनों ने अभी-अभी गणपति बब्बा मोरिया को सीऑफ किया है कि रामलीला के तंबू-बंबू गढ़ने शुरु हो गए। हिचकोले खाती अर्थव्यवस्था के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर मुद्रास्फीति की फटी धोती पहने,कंगाली की लठिया के सहारे चलती बुढ़िया मंहगाई ने जब ये जेब-विदारक सीन देखा तो उसके पोपले मुंह के पोखर से डॉयलाग का एक मेढक उछलकर बाहर फुदका- आमदनी का पाजामा ढीला और उस पर ये रामलीला। सनातन कहानी..सदियों पुरानी.. जय हो केकैयी महारानी। न राजा दशरथ से तुम राम के वनवास का ये दिव्य वरदान मांगतीं और न होती ये भव्य रामलीलाएं। रामलीला और स्त्रीविमर्श का यदि सीरियसली शोध किया जाए तो संपूर्ण रामलीला स्त्री सशक्तीकरण का ही दिलचस्प धारावाहिक है। जिसमे करुणामयी, आनंदमयी मां केकैयी हैं तो पतिव्रता मां सीता हैं,जो रामजी को स्वर्णमृग लाने का स्त्री हठ करती हैं और कहानी के छोर को एक ही एपीसोड से लंका तक पहुंचा देती हैं वहीं दूसरी ओर बिंदास ब्यूटी क्वीन शुर्पणखा है जोकि लक्ष्मण हो या राम मुझे तो शादी से काम की तर्ज़ पर अपनी खुद की शादी की सुपारी स्वयं ही उठा लेती है। धर्मपरायण यह रक्षसुंदरी प्लास्टिक सर्जरी को महा पाप कर्म मानती है। लक्ष्मण ने भले ही स्त्री की नाक काटने का पाप कर्म किया हो मगर इस सुंदरी ने प्लास्टिक सर्जरी कराने का पाप कर्म हरगिज़ नहीं किया। अगर वह ऐसा कर देती तो मामला यूं ही रफा-दफा हो जाता और रामायण लिखने जैसा महान धार्मिक कार्य हमेशा के लिए मौलिक एवं अप्रकाशित रह जाता। और फिर कहां और कैसे होती रामलीलाएं। कितने रावण आजन्म सीता-हरण को तरसते रह जाते। और फिर हलवाई,गुब्बारेवाले,आइसक्रीमवाले, चाटवाले,फूलवाले न जाने कितने अखंड-प्रचंड आर्यपुत्र भक्तिरस में डुबकी लगाने से वंचित रह जाते। धर्म की कितनी हानि होती इसकी रपट यदि कैग सामने ले आता तो धरती फट जाती और सरकार अपने पूरे केबिनेट के साथ धरती में समा जाती। भला हो शुर्पणखा का जिसने कि नाककटवाई के कल्याणकारी लोकपाल से यह महा अधर्म होने से रोक लिया। और हम शान से रामलीला मनाते चले आ रहे हैं। आज की रामलीला इंडस्ट्री में रावण की हैसियत किसी सलमान खान से कम नहीं होती। सबसे ज्यादा पेमेंट इसी का होता है। रामचंद्रजी की स्थिति अमिताभ बच्चनवाली है। हॉलीवुड की तर्ज़ पर रामलावुड में भी फीमेल करेक्टर पुरुष नायकों-खलनायकों की पसंद पर ही तय होते हैं। हां जो चुनकर इस बिगबॉस के घर में एंट्री पा गए उनकी 10-12 दिन की दिहाड़ी पक्की। हां जिन बेचारों को लंकेश की फौज या वानर सेना तक में जगह नहीं मिल पाती दिल तोड़ना किसी का ये जिंदगी नहीं है की धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर रामलीला इंडस्ट्रीवाले सांत्वना पुरस्कार की तर्ज़ पर एक दिन भव्य कविसम्मेलन भी करा देते हैं। जिसमें लोकल स्तर के अनेक ग्लोबल आर्टिस्ट-कम-कवि आते हैं और एक दिन की दिहाड़ी पर भरपेट राम की महिमा गाते हैं। यूं भी राम का गुणगान आजकल पारिश्रमिक राशि के समानुपाती ही हो गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here