रामलीला मैदान कांड: अदालती निर्णय पर होती राजनीति

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तनवीर जाफरी

दिल्ली के रामलीला मैदान में गत् वर्ष 4 व 5 जून 2011 की मध्यरात्रि में हुए लाठीचार्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया है। जस्टिस बी एस चौहान तथा जस्टिस स्वतंत्र कुमार की संयुक्त पीठ ने गत् वर्ष जून में बाबा रामदेव के समर्थकों पर हुई बर्बर पुलिस कार्रवाई को गलत ठहराते हुए इस कार्रवाई की आलोचना की तथा यह कहा कि वह पुलिस कार्रवाई मौलिक थी तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन थी। अदालत ने कहा कि धारा 144 शांति भंग होने से रोकने हेतु लगाई जाती है न कि शांति भंग करने के लिए। इसके अतिरिक्त भी अदालत ने दिल्ली पुलिस की इस हिंसक कार्रवाई के विरूद्ध कई सख्त टिप्पणियां कीं। अदालत ने इस पुलिस कार्रवाई के बाद घायल हुई बाबा रामदेव की समर्थक हरियाणा निवासी महिला राजबाला की तीन माह बाद हुई मौत के लिए उनके परिजनों को 5 लाख रूपये मुआवज़ा देने,गंभीर रूप से घायलों को 50 हज़ार रूपये दिए जाने तथा अन्य घायलों को 25-25 हज़ार रूपये का मुआवज़ा दिए जाने का आदेश दिया।

इस अदालती फैसले का एक अहम पहलू यह भी रहा कि अदालत ने जहां दिल्ली पुलिस को जल्दबाज़ी करने और ज़रूरत से अधिक बल प्रयोग किए जाने का दाषी पाया वहीं बाबा रामदेव को भी इस बात के लिए जि़म्मेदार ठहराया कि उन्होंने भी उस क्षेत्र में धारा 144 लगे होने के बावजूद अपने समर्थकों को वापस जाने के लिए नहीं कहा। इसके बजाए उन्हें उकसाया। और बाबा रामदेव की इसी गैरजि़म्मेदारी के कारण अदालत द्वारा घोषित कुल मुआवज़े का 25 प्रतिशत भुगतान बाबा के ट्रस्ट द्वारा किए जाने भी आदेश दिया गया। इस अदालती फैसले से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि निश्चित रूप से पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर ज़ुल्म ढाया। परंतु साथ-साथ बाबा रामदेव भी इस आयोजन के गैरजि़म्मेदाराना पहलू के आरोप से बरी नहीं हो सके। इस अदालती फैसले के बाद एक बार फिर रामदेव के समर्थन की आड़ में भारतीय जनता पार्टी सरकार के विरुद्ध खुलकर आ गई है। दरअसल भाजपा किसी भी प्रकार से रामलीला मैदान में हुए पुलिस ज़ुल्म का जि़म्मेदार कांग्रेस पार्टी,सोनिया गांधी, डा. मनमोहन सिंह तथा पी चिदंबरम को ठहराना चाह रही थी। इसका कारण केवल राजनैतिक लाभ उठाना मात्र था। परंतु अदालत ने अपने फैसले में कहीं भी गृहमंत्री,गृहमंत्रालय अथवा केंद्र सरकार का उल्लेख न कर सरकार विरोधियों की सभी आशाओं पर पानी फेर दिया। और तो और अदालत द्वारा बाबा रामदेव को भी घटना का संयुक्त रूप से जि़म्मेदार ठहराए जाने पर भी यह शक्तियां तिलमिला उठीं।

स्वयं को बाबा रामदेव के समर्थन में दिखाकर राजनीति करने वाले इस फैसले के तकनीकी व कानूनी पहलूओं को नज़र अंदाज़ कर केवल जन भावनाओं को कुरेदने के लिए भावनात्मक वक्तव्यों का सहारा ले रहे हैं। गोया माननीय सर्वाच्च न्यायालय के स्पष्ट व संतुलित निर्णय सुनाने के बावजूद रामदेव के सर्मथकों विशेषकर भाजपाईयों द्वारा रामदेव को बेगुनाह बताने व सारा कुसूर केंद्र सरकार व गृहमंत्री पर मढऩे का प्रयास किया जा रहा है। कई ऐसे बुनियादी प्रश्र हैं जिनका सीधा उत्तर देने के बजाए या तो उन पर लीपापोती की जा रही है अथवा उन प्रश्रों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर बाबा रामदेव ने रामलीला मैदान में योग शिविर लगाने हेतु इजाज़त ली थी। ऐसे में योग शिविर के बजाए वहां हर समय सरकार विरोधी उत्तेजनात्मक भाषण होते रहे। योग शिविर के नाम पर किए गए इस आयोजन को राजनीति का अखाड़ा बनाया गया। दूसरी बात यह कि इस शिविर में पांच हज़ार तक लोगों के आने की बात बाबा रामदेव के ट्रस्ट द्वारा आयोजन की अनुमति लेते समय की गई थी जबकि पचास हज़ार से अधिक लोग इस कार्यक्रम में शरीक हुए। इस प्रकार की क़ानूनी व तकनीकी गलतियों का जवाब देने के बजाए केवल एक ही बात दोहराई जा रही है कि गृहमंत्री के इशारे पर तथा केंद्र सरकार की मंशा के तहत ही निहत्थे बाबा समर्थकों पर जु़ल्म ढाया गया।

दरअसल बाबा रामदेव विदेशी बंैकों में जमा काले धन को अपने देश में वापस लाए जाने हेतु आंदोलन चला रहे थे। उनकी यह मांग निश्चित रूप से बिल्कुल सही है। बेशक विदेशों में जमा भारतीय काला धन अपने देश में वापस आना चाहिए। तथा इसे बाबा रामदेव के कथनानुसार राष्ट्रीय संपत्ति भी घोषित करना चाहिए। परंतु यहां बाबा रामदेव द्वारा इस मांग को उठाए जाने से पहले और भी कई सवाल खड़े होते हैं। एक तो यह कि योग सिखाते-सिखाते अचानक बाबा रामदेव को काले धन का मुद्दा क्यों सूझ गया? लोगों के स्वास्थय की चिंता करते-करते अचानक काला धन के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेडऩे की बात उनके दिमा$ग में कहां से आई? किन परिस्थितियों ने उन्हें इस योग्य बनाया कि वे इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से टकराने का साहस जुटा सके? दरअसल यदि हम इसकी पृष्ठभूमि में झांक कर देखें तो हमें यही नज़र आएगा कि बाबा रामदेव को ‘नेता रामदेव’ बनाने की जि़म्मेदार स्वयं कांग्रेस पार्टी ही सबसे अधिक है। कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (प्रथम)ने रामदेव को आसमान पर चढ़ाया। केंद्र सरकार के तमाम मंत्रीगण बाबा रामदेव के योग समर्थक मरीज़ों की बढ़ती भीड़ देखकर बाबा की ओर महज़ उनके सामने बैठी भीड़ के चलते आकर्षित होने लगे। उधर रामदेव के मंच पर केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को आता देख उनके समर्थकों में बाबा का ‘ग्लैमर’ दिन दूनी रात चौगुनी की गति से और बढऩे लगा। इन हालात ने बाबा रामदेव में एक अहंकार जैसी स्थिति पैदा कर दी। आज भी उनके मुंह से बार-बार यह अहंकारपूर्ण वाक्य निकलते देखे जा सकते हैं कि ‘देश की 121करोड़ जनता मेरे साथ है’। दरअसल इन हालात की जि़म्मेदार कांग्रेस पार्टी व यूपीए के कई शीर्ष नेतागण ही हैं।

योगा सिखाते-सिखाते राजनीति में उनकी बढ़ती सक्रियता को देखकर तथा 121 करोड़ जनता के समर्थन का बाबा का दावा सुनकर स्वाभाविक रूप से मीडिया उनसे यह पूछा करता था कि क्या आप प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में आना चाहते हैं? क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे? क्या आप अपनी राजनैतिक पार्टी खड़ी करना चाहेंगे? ऐसे प्रश्रों का उत्तर बाबा रामदेव कभी भी सीधे तौर पर नहीं देते थे। बजाए इसके कई बार इन प्रश्नों का उत्तर देते समय भी उनके मुखश्री से अहंकार ही टपकता देखा गया। उदाहरण के तौर पर गत् वर्ष बिहार के बेंतिया जि़ले में जब किसी पत्रकार ने उनसे उनकी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा के विषय में पूछा तो उन्होंने बड़े ही अहंकारपूर्ण तरीके से यह जवाब दिया था कि जब इस देश का राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मेरे चरणों में आकर बैठता है फिर मैं क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा? उनके इसी अहंकारी वाक्य में यह बात छुपी हुई है कि उनका दिमा$ग चौथे आसमान पर ले जाने वाले और कोई नहीं बल्कि यही नेतागण हैं। जबकि रामदेव को तो इस बात की भी संभवत: समझ नहीं कि वे भारत के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के विषय में ऐसी अनर्गल बातें कर उस पद की गरिमा को कितनी ठेस पहुंचा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि कभी देश का कोई प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति जाकर बाबा रामदेव के चरणों में बैठा हो। फिर आखिर रामदेव को सार्वजनिक रूप से ऐसे गैर जि़म्मेदाराना बयान देने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई व इसका कारण यदि अहंकार नहीं तो और क्या था?

अदालती फैसले के बाद रामदेव समर्थक विशेषकर भाजपाई बार-बार एक बात और दोहरा रहे हैं कि जब बाबा का रामलीला मैदान में किया जा रहा धरना-प्रदर्शन गैर कानूनी था फिर आखिर कई केंद्रीय मंत्री उनसे मिलने दिल्ली हवाई अड्डे पर क्यों पहुंचे? निश्चित रूप से केंद्र सरकार का यह $कदम सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण में मामले को समाप्त किए जाने की दिशा में उठाया गया $कदम ही रहा होगा। सरकार के यह मंत्री यही चाह रहे होंगे कि किसी प्रकार का विरोध प्रदर्शन शुरु होने से पूर्व ही बाबा रामदेव से बातचीत कर मामले को आगे बढऩे से रोक दिया जाए। परंतु केंद्र सरकार की इस पहल को भाजपाईयों द्वारा सरकार की कमज़ोरी व बाबा रामदेव की महानता के तौर पर पेश किया जा रहा है। जबकि नैतिकता के दृष्टिकोण से यदि देखें तो यहां भी सरकार अपनी जि़म्मेदारी से दस कदम आगे जाकर काम करती दिखाई दे रही है। ऐसे में एक बार फिर यही महसूस होता है कि भले ही सरकार का यह $कदम दूरअंदेशी भरा क्यों न रहा हो परंतु वास्तव में केंद्रीय मंत्रियों को दिल्ली हवाई अड्डे जाकर बाबा रामदेव से $कतई नहीं मिलना चाहिए था। बहरहाल रामलीला मैदान लाठीचार्ज कांड पर सर्वोच्च न्यायालय का अत्यंत न्यायपूर्ण,संतुलित व सराहनीय फैसला आ चुका है। इस निर्णय ने दिल्ली पुलिस के साथ-साथ बाबा रामदेव को भी आईना दिखा दिया है। परंतु इस $फैसले को लेकर की जा रही राजनीति कतई मुनासिब नहीं है।

5 COMMENTS

  1. तपस जी की टिप्पणी सारगर्भित और सच के साथ नज़र आती है. पर तनवीर साहेब को पता नहीं अचानक क्या हो गया है जो वे इतने पूर्वाग्रही नज़र आने लगे हैं..

  2. श्री तनवीर जी ,

    आपके इस कथन
    “एक तो यह कि योग सिखाते-सिखाते अचानक बाबा रामदेव को काले धन का मुद्दा क्यों सूझ गया? लोगों के स्वास्थय की चिंता करते-करते अचानक काला धन के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेडऩे की बात उनके दिमा$ग में कहां से आई? ”
    से मैं बिलकुल संतुष्ट नही हूँ … क्या देश के बारे में सोचने , समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए कोई विशेष डिग्री की जरूरत है ?? एक देशभक्त होने के नाते कोई भी व्यक्ति सोच सकता है …
    आप में और मेरे भी सरकार और व्यवस्था को लेकर घोर निराशा है पर हमारे पास फेन क्लब नही है जो हमारी बात सुने … बाबा ने अपने प्रसिद्धी का प्रयोग देश के लिए ही किया है … कोई व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु तो नही किया
    ५ साल पहले तक जब बाबा सिर्फ योग करवाते थे तो सारे के सारे राजनेता , मीडिया वाले उनकी चरण वंदना करते थे… महान योगी सन्यासी योग गुरु करके आगे पीछे दोड़ते थे . थोडा समय और रुक जाते तो यही लोग उन्हें भारत रत्ना भी दिलवा देते पर आज उन्होंने राग देशभक्ति क्या छेड़ा सभी के सभी उनकी बखिया उधेड़ने लग गए … ऐसा क्यों ???
    बाबा ने ये कब कहा की इमानदार को फांसी पर चढाओ … बेइमान को सजा देने की ही बात करते है न ….

  3. उच्चतम न्यायालय ने एक संतुलित निर्णय दिया और आप का लेख भी काफी संतुलित है | एक बात और है – कोर्ट ने इस घटना का संज्ञान स्वयं ही समाचार पत्र पढ़ कर लिया था और यह कोर्ट का यह एक सराहनीय कदम था | लेकिन निर्णय में सरकार से यह नहीं पूछा गया की रात के एक बजे पुलिस के कमिश्नर से लेकर नीचे तक बड़े बड़े अधिकारी किस लिए वहां मौजूद थे और क्या वास्तव में उन्हें शान्ति भंग होती नज़र आ रही थी ? क्या उन के पास सुबह तक भी रुकने का मौका नहीं था ? क्या उन्हें किसी क्रांति होने का दर था? क्या गृह मंत्री से वे सलाह नहीं ले सकते थे ? क्या उन की इंटेलिजेंस ने उन्हें इतना डरा दिया था की उन का विवेक खत्म हो गया था ? मेरी मान्यता है की सुबह होते रामदेव को अगर पुलिस फांसी भी दे देती तो किसी को कोई अफ़सोस नहीं होता | ईश्वर से प्रार्थना है की हम सब को सद्बुद्धि दे |

  4. मेसाच्युट्स हिस्टोरिकल सोसाईटी में १९६५-६६ में प्रस्तुत आर्किबाल्ड कोक्स के निबंध “सिविल राईट्स,द कोंस्टीट्यूशन एंड द कोर्ट्स”में उनके द्वारा लिखा गया था “… जब उद्देश्य न्यायसंगत हो, और जब और रस्ते बंद हो गए हो,तब हमें उन लोगों के द्वारा कानून का पालन न करने के सामाजिक और नैतिक अधिकारों का समर्थन करना चाहिए…..”बाबा रामदेव का उद्देश्य पवित्र था. वो क्या अपने लिए लड़ रहे थे और लड़ रहे हैं? नहीं. वो हमारे लिए लड़ रहे हैं. और सर्कार में बैठे लोग उन्हें जनहित के मुदों को उठाने से रोक रहे थे ऐसे में उनके द्वारा सिविल नाफ़रमानी करना पूरी तरह से गाँधीवादी था. और बच निकलने का प्रयास करना शिवाजी और सुभाष का अनुसरण था. ऐसे में ये कहना की लोगों पर आधी रात को पुलिस द्वारा तानाशाही और बर्बरता पूर्ण हमला केवल सरकारी कार्य नहीं था और रामदेव भी इसके लिए जिम्मेदार थे सहज स्वीकार किये जाने योग्य नहीं था. इस तर्क से तो उन सभी लोगों के कष्टों के लिए महात्मा गाँधी जिम्मेदार थे जिन्होंने उनके आह्वान पर आजादी की लडाई के लिए अंग्रेजों की लाठियां और गोलियां खायी थी.ये वास्तव में इण्डिया बनाम भारत की समझ का अंतर है.

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