रामनाथ कोविन्द: दसों दिशाएं कर रही हैं मंगलगान

राकेश कुमार आर्य



श्री रामनाथ कोविन्द अब जबकि 66 प्रतिशत मत लेकर और अपनी प्रतिद्वंद्वी श्रीमती मीरा कुमार को परास्त कर भारत के राष्ट्रपति घोषित किये जा चुके हैं, तब उनके राष्ट्रपति बनने के अर्थ, संदर्भ और परिणामों पर विचार करना उचित होगा। श्री कोविन्द के राष्ट्रपति बनने का अर्थ है कि इस समय भारत की राजनीति की और विशेषत: प्रधानमंत्री मोदी की सोच सचमुच ‘सबका साथ और सबका विकास’ करने की है। भारत के राष्ट्रपति भवन में एक ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में प्रविष्ट हुआ है जो दाल-रोटी, दलिया और शाक-भात को पसंद करने वाला है, उसे मांस नहीं चाहिए और बीफ की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहने का अभिप्राय है कि श्री कोविन्द पूर्णत: सात्विकवृत्ति के व्यक्ति हैं, और इस संदर्भ में वह पूर्णत: भारतीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह बहुत ही शुभ संकेत है कि आज हमारा राष्ट्रपति भवन सचमुच भारतीयता का प्रतिनिधित्व करने वाला बनने जा रहा है। इस समय देश में कुछ लोग दलित समाज को भारत की और विशेषत: हिन्दू समाज की मुख्यधारा से अलग करने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं कि जैसे दलित भाई आर्य वैदिक संस्कृति के या हिन्दू संस्कृति के अंग नहीं हैं और उनके खान-पान व हिन्दू समाज के अन्य वर्णों के खान-पान, रहन-सहन और आचार-विचार में जमीन आसमान का अंतर है। ऐसे में श्री कोविन्द जैसे सात्विक साधु पुरूष को भारत का राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य मिलना देश का सौभाग्य है। वे देश के राष्ट्रपति भवन में बैठे-बैठे यह संकेत देंगे कि भारत की मूल आत्मा, मूल चेतना, मूल संस्कृति और मौलिक चिंतन क्या है? भारतीयता का निर्माण किन मूल्यों को लेकर हुआ है? और भारत का निर्माण जिन मूल्यों को लेकर हुआ है उस सारी मूल चेतना, मूल संस्कृति और मौलिक चिंतन के हम सब सामूहिक रूप से उत्तराधिकारी हैं और इन सारे तत्वों को अंगीकार करना हम सब का प्राथमिक उद्देश्य है। क्योंकि इनको अंगीकार किये बिना हमारा अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र को अपने राष्ट्रपति भवन में प्रथम पुरूष को इन्हीं सद्गुणों का एकीभूत पुंज बनाकर उसमें भेजना चाहिए। जिससे राष्ट्रपति भवन उस राष्ट्र की आत्मा का प्रतिनिधित्व करने लगे। राष्ट्रपति राष्ट्र के लिए सूर्य होता है, वह ब्रह्म है। अपने सूर्य से सारे राष्ट्रवासी ऊर्जान्वित होते हैं और एक दिशा में गतिशील होकर उसकी विचारधारा और विचारों की पवित्रता के साथ जैसे ही घूमने लगते हैं जैसे सूर्य के चारों ओर उसके ग्रह घूमने लगते हैं। श्री कोविन्द जिस पवित्र आत्मा को लेकर इस धर्म धरा पर अवतीर्ण हुए हैं उससे सारा राष्ट्र ऊर्जान्वित होगा और हमारी सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाये रखने में हमें सहायता मिलेगी। हमारे दलित भाई इस बात की प्रेरणा लेंगे कि यह राष्ट्र हम सबका है और यह संस्कृति हम सबकी सामूहिक चेतना का प्रतिबिम्ब है। इसी प्रकार देश के अन्य वर्णों के लोग भी यह सोचेंगे कि भारत की मूल चेतना में किसी भी व्यक्ति के साथ सम्प्रदाय, जाति और लिंग के आधार पर अन्याय किया जाना पूर्णत: वर्जित है।

श्री कोविन्द ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की उत्तेजना का या उन्माद का प्रदर्शन कभी नहीं किया। उनका यह संतुलित व्यवहार उन्हें एक ऐसा संतुलित, मर्यादित और न्यायप्रिय राष्ट्रपति बनाने में सफल रहेगा जिसके समक्ष कोई भी राजनीतिक दल या पीडि़त व्यक्ति अपनी पीड़ा को इस अपेक्षा के साथ बयान कर सकेगा कि उसे वहां से वास्तव में न्याय मिलेगा। वैसे हमें इस लेख में अपने किसी पूर्ववर्ती राष्ट्रपति के कार्य व्यवहार पर टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, परंतु प्रसंग है इसलिए लिखना उचित है कि अब से पूर्व दलित समाज से निकलकर देश के राष्ट्रपति बने के.आर. नारायणन शराब के बहुत आदी थे। उनके विषय में कहा जाता है कि कई बार तो वह इतनी पी लेते थे कि उनके स्टाफ के लोग उन्हें उठाकर गाड़ी में डालते थे। अपने साधु राष्ट्रपति श्री कोविन्द से राष्ट्रवासी ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते। इसका अभिप्राय है कि हमारे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्री कोविन्द का बौद्घिक संतुलन सदैव स्वस्थ रहेगा और वह देश निर्माण के लिए अपनी उत्तमोत्तम सेवायें देते रहेंगे। ऐसे बौद्घिक संतुलन वाले दार्शनिक और साधु राष्ट्रपति को अपने राष्ट्रपति भवन में पाकर हम सचमुच अपने आपको सौभाग्यशाली समझेंं।

श्री कोविन्द से अपेक्षा की जाती है कि वह भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास पुनरूद्घार के लिए सजग और सावधान रहेंगे। अभी तक भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास को लेकर अधिकतर राष्ट्रपति या तो चुप रहे हैं या उस पर बोलना उन्होंने उचित नहीं समझा है। जबकि ऐसी प्रवृत्ति किसी भी राष्ट्र के लिए लज्जास्पद होती है। देश के प्रथम नागरिक को अपने देश के धर्म, संस्कृति और इतिहास का न केवल मर्मज्ञ होना चाहिए अपितु उनकी अच्छाइयों और उनके गौरवपूर्ण पक्ष को पूर्ण स्वाभिमान के साथ संसार के समक्ष प्रस्तुत करने में भी पीछे नहीं रहना चाहिए। अपनी बात को शालीनता से कहने में श्री कोविन्द का कोई सानी नहीं है। ऐसे में उनसे यह भी अपेक्षा की जाएगी कि वह भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास की अच्छाईयों को संसार के समक्ष प्रस्तुत करने में किसी प्रकार का प्रमाद नहीं करेंगे। सारा देश अपने नये राष्ट्रपति का अभिनंदन कर रहा है, दसों दिशाएं मंगलगान गा रही हैं, और देवगण पुष्पवर्षा कर रहे हैं। सचमुच कितना मनोरम दृश्य है यह? फिर भी कोई उन्हें दलित राष्ट्रपति कहता है तो उसकी बुद्घि पर तरस आता है।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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