तत्कालीन राष्ट्रपति की हत्या के प्रयास की साजिश का आरोप लगाकर पुलिस द्वारा एमबीए के एक मासूम और होनहार छात्र को पकड़कर फर्जी मुठभेड़ दिखाकर उसके शरीर में 29 राउंड गोलियां उतार देना यह इतना वीभत्स और हतप्रभ करने वाला कांड है कि मन-मस्तिष्क दहल जाता है। क्या यह संभव है कि इतना जघन्य कार्य सब इंस्पेक्टर के स्तर के अधिकारी कर डालें और उनकी पीठ पर उच्च अधिकारियों एवं नेताओं का हाथ न हो! दिल्ली सीबीआई अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए 18 पुलिसकर्मियों को फर्जी एनकाउंटर का दोषी करार दिया है और उम्र कैद की सजा सुनाई है। यह भी तब ही संभव हो पाया है जबकि मृतक युवक के परिजनों की हैसियत कम से कम इतनी तो थी कि वे बिना डरे मुकदमे की पैरवी कर सकें। हत्या वैसे ही जघन्यतम अपराध है और यदि यह अपराध पुलिसकर्मी करते हैं तो अपराध की जघन्यता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसा करने वाले पुलिस अधिकारियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए, क्योंकि पुलिस का काम आम नागरिक की हिफाजत करना है। वह कानून की रक्षा करने के लिए है उसे तोड़ने के लिए नहीं। छात्र रणबीर का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। वह और उसका परिवार उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के थे। रणबीर मेधावी छात्र था। वह देहरादून नौकरी के सिलसिले में गया था। घटना जुलाई 2009 की है। फैसला आ चुका है, सजा भी सुना दी गई है। यह सवाल अनुत्तरित सा ही है कि जब कोई आपराधिक इतिहास नहीं था तो पुलिस की इतनी बड़ी टीम ने रणबीर का एनकाउंटर क्यों किया! रणबीर के पिता का कहना है कि पुलिसकर्मियों ने मेडल के लालच में उनके मासूम बेटे की निर्मम हत्या की है। यह आसानी से हजम नहीं होता। वैसे यह सच है कि मेडल के चक्कर में फर्जी एनकाउंटर होते हैं। रणबीर को एनकाउंटर के पहले जिस दरिंदगी के साथ पीटा गया और मार-मार कर उसकी हड्डियां तोड़ दी गईं। इससे तो यही लगता है कि पुलिस को शक हो गया और यह जानकर कि उसका यहां कोई पैरोकार नहीं है उसकी ऐसी पिटाई के बाद फर्जी मुठभेड़ बताकर उसे मार दिया गया। बहरहाल, अब पांच साल बाद मामले का फैसला आया है। अपील उच्च न्यायालय में होगी। वहां से मामला फिर सर्वोच्च न्यायालय तक जाएगा। रणबीर के पिता को लगातार पैरवी करनी होगी। लेकिन व्यवस्था में फर्जी एनकाउंटर की गुजाइशों को जब तक समाप्त नहीं किया जाएगा समस्या का समाधान नहीं होगा।
ek sanvedansheel post…saadhuwad aapko.