बलात्कार की शिकार सभी बच्चियों को मिले त्वरित इंसाफ

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संजय सक्सेना   
   अपराध और अपराधी की सिर्फ एक ही परिभाषा होती है। उसे एक ही कानून से सजा मिलती है। अगर किसी धर्म, व्यक्ति विशेष, नेतागण या मीडिया समूह के लिए ‘कालखंड’ के हिसाब से अपराध की परिभाषा बदल जाती है तो समाज और देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई नहीं हो सकता है। इसी लिए साम्प्रदायिक हिंसा, आतंकवाद, देशद्रोह आदि के मामलों में भी हम बंटे हुए नजर आते हैं,जिसका खामियाजा देश और समाज दोनों को भुगतना पड़ता है। सबसे अधिक दुख तब होता है जब किसी महिला या युवती के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को भी हमारे नेता,समाज के कुछ सम्मानित नागरिक और मीडिया समूह धर्म और जाति में बांट कर देखता है। जब मीडिया किसी लड़की के साथ बलात्कार, उस दौरान दरिंदों द्वारा की गई हैवानियत और उसके चलते पीड़ित लड़की की मौत की घटना की खबर को उसकी जाति के साथ जोड़कर दिखाता है तो सभ्य समाज के लिए शर्मसार होने के अलावा कुछ नहीं बचता है। लड़की किस जाति की है, यह बताने से अपराध का दायरा बढ़ा या छोटा नहीं हो जाता है। निश्चित ही इस तरह की ओछी मानसिकता समाज में द्वेष बढ़ाने की सोची-समझी राजनीति या रणनीति के अलावा कुछ नहीं है। इसी प्रकार बलात्कार चाहें गांव की किसी लड़की के साथ हुआ हो या फिर मुम्बई में कोई फिल्म निर्देशक किसी अभिनेत्री के साथ बलात्कार करता है,कानून की नजर में तो दोनों ही एक जैसे अपराध हैं, लेकिन हमारे कुछ नेता, कथित बुद्धिजीवी एवं एवार्ड वापसी गैंग के लोग अक्सर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की भी ‘श्रेणी’ बदल कर राजनीति करने से बाज नहीं आते हैं। यही वजह है कहीं बलात्कार की शिकार लड़की के पक्ष में कोई नेता खड़ा नहीं दिखाई देता है तो वहीं अगर पीड़ित लड़की किसी जाति विशेष से आती है,(जिस जाति का अपना मजबूत वोट बैंक होता है) तो हमारे नेता ‘बाल की खाल निकालना’ शुरू कर देते हैं और पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होने का ड्रामा करके  सियासी रोटियां सेंकने में जुट जाते हंै। उन्नाव में भाजपा विधायक रहे कुलदीप संेगर के अमानवीय कृत्य को कौन भूल सकता है,जिसका सजा अब वह काट रहे हैं। उन्नाव की बांगरमऊ सीट से विधायक कुलदीप सेंगर को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उम्र कैद की सजा दी है। सेंगर और उसके साथियों ने 2017 में एक नाबालिग लड़की को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था,लड़की ने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उसको तथा उसके परिवार को बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया। विधायक के रसूख के चलते बस मुंह बंद किए बैठे रहे थे।
        खैर, हाथरस की 19 वर्षीय युवती जो दंरिदों की हैवानियत के चलते अब हमारे बीच नहीं है,उसको इंसाफ मिलना चाहिए,लेकिन इसके पीछे की वजह सिर्फ यह नहीं होनी चाहिए कि उक्त लड़की दलित थी। जो नेता या दल उसके पक्ष में खड़े हैं, उन्हें पूरें देश का साथ मिलना चाहिए, लेकिन उन लड़कियों के पक्ष में भी तो ऐसी ही बुलंद आवाज उठना चाहिए जो किसी वर्ग विशेष से नहीं आती हैं,जबकि उत्तर प्रदेश में महिला अपराध से जुड़े मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अमेरिका में पढ़ने वाली सुदीक्षा की बुलंदशहर शहर में छेड़खानी से बचने के दौरान सड़क हादसे में मौत हो या फिर उससे पूर्व  गाजियाबाद में भांजी को छेड़खानी से बचाने के दौरान पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या को लोग भूल  नहीं पाए हैं। पूर्वी यूपी के भदोही जिले में गत दिनों लापता हुई एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की का शव नदी के किनारे मिला। नाबालिग लड़की के परिजनों का आरोप है कि गांव के पास के ही ईट भट्टा संचालक ने उसके साथ रेप किया और फिर तेजाब डाल कर उसकी हत्या कर दी। ऐसी घटनाओं से अखबार हमेशा पटे रहते हैं। उत्तर प्रदेश का यह दुर्भाग्य है कि यहां बेटियों के साथ अपराध का ग्राफ कम होने का नाम ही नहीं लेता है।
   नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर दो घंटे में बलात्कार का एक मामला  दर्ज हो रहा है। आंकड़ों पर गौर करें तो 2018 में बलात्कार के 4,322 मामले दर्ज किए गए थे। राज्य में महिलाओं के खिलाफ 59,445 अपराध दर्ज किए गए हैं, जिनमें रोजाना 62 मामले सामने आए हैं। यह 2017 में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जब कुल 56,011 अपराध दर्ज किए गए थे। फिलहाल एनसीआरबी ने 2018 के बाद कोई भी अपराध का आंकड़ा नहीं जारी किया। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा तीन साल में जारी किए आंकड़ों में अपराध कम होना बताया गया हैं।
      बहरहाल, बसपा-सपा और कांगे्रस सहित तमाम दलों के नेताओं ने हाथरस में बलात्कार की शिकार और उसके बाद मौत में मुंह में चली गई युवती के नाम पर योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। बसपा मुखिया मायावती के साथ ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का गुस्सा चरम पर है। गौरतलब हो 14 सितंबर को हाथरस के चंदपा कोतवाली क्षेत्र के गांव बूलगढ़ी की एक युवती के साथ उसी के गांव के कुछ लड़कों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी जीभ काट दी थी। रीढ़ की हड्डी तोड़ दी थी। हैवानियत के बाद 15 दिन तक लड़की सिर्फ इशारे से ही अपना दर्द समझाती रही।  15 दिनों के इलाज के बाद 28 सितंबर को युवती ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया था,जिसके बाद हाथरस में माहौल तनावपूर्ण है तो  सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक सब गुस्से में हैं। विपक्ष ने कानून-व्यवस्था को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार को घेर लिया है,जबकि सभी आरोपी जेल के अंदर हैं।
    बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने हाथरस में एक दलित बालिका के साथ सामूहिक दुष्कर्म को बेहद घृणित कृत्य बताते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार से त्वरित न्याय  दिलाने के साथ ही पीड़ित परिवार की मदद करने की भी मांग की है। इसके साथ ही बसपा सुप्रीमों ने मांग की है कि भुक्तभोगी परिवार की सुरक्षा करने के साथ इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चलाया जाए। जिससे कि इस केस में सभी अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। उधर, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि हाथरस की सामूहिक दुष्कर्म एवं दरिंदगी की शिकार एक बेबस दलित बेटी ने आखिरकार दम तोड़ दिया। नम आंखों से पुष्पांजलि! आज की असंवेदनशील सत्ता से अब कोई उम्मीद नहीं बची। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मांग की है कि युवती के कातिलों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए इस घटना की निंदा की हैं और कहा हैं कि यूपी में महिलाएं व बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। इस युवती के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। प्रियंका की बात सही है,लेकिन तब वह क्यों मौन साध लेती हैं जब एक दलित परिवार एक वर्ग विशेष के उत्पीड़न का शिकार होता है। कांगे्रस गठबंधन वाली महाराष्ट्र सरकार फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत को गाली देती है। तब वह क्यों मौन रहती हैं। इसी प्रकार महाराष्ट्र में वह क्यों आवाज बुलंद नहीं करती हैं कि बलात्कार के आरोपी अनुराग कश्यप को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए।  लब्बोलुआब यह है कि हमारे नेताओं को बलात्कार जैसी अपराध और महिलाओं के अपमान की घटनाओं को एक नजरिए से देखना चाहिए, नकि इसे राजनैतिक चश्मे से नहीं देखा जाए। बलात्कार की कहीं भी कोई घटना हो उसके खिलाफ सबको एकसुर में मुखर होकर बोलना चाहिए।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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