बेमानी है ड्रेगन के साथ व्यापार समझौता

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सतीश सिंह

आज भारत के हर शहर हर गाँव का बाजार चाइना के उत्पादों से पटा पड़ा है। उत्पाद के वास्तविक कीमत से उपभोक्ता अनजान हैं, फिर भी वे चाइना के उत्पाद बेझिझक खरीद रहे हैं।

किसी भी चाइना के उत्पाद पर उसकी वास्तविक कीमत नहीं लिखी रहती है। हर दुकानदार चाइना के उत्पादों से जमकर मुनाफाखोरी कर रहा है। ऐसा नहीं है कि भारतीय उपभोक्ता चाइना का उत्पाद खरीद कर अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि उपभोक्ता और दुकानदार दोनों विन-विन की मन:स्थिति में हैं। दरअसल चाइना का उत्पाद सस्ता और विविधता से युक्त है। साथ में आकर्षक भी। इस कारण टिकाऊ नहीं होने के बावजूद भी चाइना के उत्पाद बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे हैं।

आज की तारीख में आपको भारत के दूर-दराज के गाँव का एक अनपढ़ ग्रामीण भी 3 जी फीचर वाले चाइना मेड मोबाईल फोन से बात करता हुआ मिल जाएगा। मोबाईल फोन तो केवल बानगी भर है। गाँव के बाजार में इलेक्ट्रॉनिक आइटम से लेकर हेयर कटिंग सैलून में हेयर कटिंग के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला चादर और तौलिया भी आपको चाइना मेड मिल जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन से थोक के भाव में आने वाले इन उत्पादों का ऑफिसियल तरीके से आयात भारतीय व्यापारी नहीं कर रहे हैं। इन उत्पादों में से 80 से 90 फीसदी तक उत्पाद गैरकानूनी तरीके से नेपाल और बांगलादेश के रास्ते से भारत में लाया जा रहा है। दूसरे षब्दों में कहा जाए तो अब भारत के बाजार पर अप्रत्यक्ष रुप से चीन के उत्पादों ने अपना कब्जा जमा लिया है।

ऐसे में भारत प्रवास के दौरान चीनी प्रधानमंत्री श्री वेन जियाबाओ द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर 2015 तक के लिए 100 अरब डालर का द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य रखना हास्यास्‍प्रद और क्रूर मजाक का पर्याय है।

हालांकि दोनों देश के वर्तमान सरकार के मुखियाओं ने जारी अपने संयुक्त बयान में द्विपक्षीय व्यापार में लगातार बढ़ते असंतुलन को दूर करने की बात कही है। दोनों देशों ने नीति-निर्माण, आपसी विनिमय और परस्पर बातचीत को प्रोत्साहित करने, संयुक्त रुप से चुनौतियों से निपटने और आर्थिक विकास एवं सहयोग बढ़ाने में बेहतर सामंजस्य के लिए रणनीतिक वार्ता के लिए खुशनुमा माहौल बनाने का भी फैसला किया है। दोनों देषों के प्रधानमंत्रियों ने यह माना कि दोनों देशों के विकास के लिए अभी भी काफी गुइंजाइष है। दोनों देश आर्थिक मतभेद दूर करने और संरक्षणवाद का विरोध करने के लिए भी राजी हुए हैं। इंडिया-चाइना सीईओ फोरम का भी गठन किया गया है। इससे कारोबारी मुद्दे और व्यापार विस्तार और निवेश से जुड़े सहयोग को बल मिलेगा। बैंकिंग क्षेत्र में भी आपसी सहयोग बढ़ाने की बात कही गई है। कारोबारी रिष्तों को प्रगाढ़ और मिठास भरा बनाने के लिए भी प्रतिबद्वता जताई गई है।

कुल मिलाकर दोनों देषों के द्वारा आपसी व्यापार के विस्तार के लिए पुरजोर कोशिश की गई है। बावजूद इसके पाकिस्तान, कष्मीर और अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर चीनी मुखिया की चुप्पी चीन के कथनी-करनी में फर्क को दर्शाता है।

इसी संदर्भ में ज्ञातव्य है कि चालू वितीय वर्ष में दोनों देषों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के 60 अरब डालर तक पहँचने की संभावना है, लेकिन साथ में यहाँ विडम्बना यह है कि द्विपक्षीय व्यापार के 60 अरब डालर तक पहँचने के साथ-साथ भारत का व्यापार घाटा भी 20 अरब डालर तक पहुँच जाएगा।

वैसे भारत कहने के लिए चीन पर उत्पादों से संबंधित गुणवत्ता नियम तथा पंजीकरण संबंधी जरुरत जैसे गैर टैरिफ अवरोध हटाने के लिए चीन पर दबाव बनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है। यदि भारत अपने प्रयास में सफल होता है तो उसका निर्यात का प्रतिशत कुछ हद तक बढ़ जाएगा, किन्तु इसके बरक्स में चीन का भारत के प्रति पूर्व का रवैया शुरु से असहयोगपूर्ण रहा है।

उल्लेखनीय है कि जनवरी 2010 में भारत के वाणिज्य एवं उघोग मंत्री श्री आनंद शर्मा ने अपनी चीन यात्रा के दौरान भारत की तरफ से मांगों की एक सूची चीन को सौंपी थी, परन्तु अभी तक चीन द्वारा भारत के मांगों पर विचार नहीं किया गया है।

जगजाहिर है कि चीन दोहरा रवैया अपना रहा है। एक तरफ तो वह गैरकानूनी तरीके से भारतीय बाजारों में अपने उत्पादों को पहुँचा रहा है तो दूसरी तरफ संरक्षणवाद का विरोध तथा आपसी व्यापार को बढ़ाने की बात कह कर अपने को पाक-साफ साबित करना चाहता है। जबकि पड़ताल से स्पष्ट है, चीन की दोहरी और भेदभाव की नीति के कारण भारत का व्यापार घाटा सिर्फ इस वितीय वर्ष में 20 अरब डालर रहने की संभावना है।

लब्बोलुबाव के रुप में कह सकते हैं कि बदलते परिवेश में चीन को भी भारत के बाजार की ताकत का अहसास है। वह जानता है कि वह भारत के बाजार की अनदेखी करके विकास और समृद्धि के सपने नहीं देख सकता है।

इस लिहाज से देखा जाए तो चीन के प्रधानमंत्री श्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा भारतीय बाजार की बढ़ती ताकत की स्वीकृति है। चीन समझ चुका है कि सिर्फ आर्थिक ताकत अर्जित करके ही विश्‍व पर चौधराहट कायम की जा सकती है।

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