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“स्वपन-परी” - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
जब जब मेरा “चंचलरूपी” मन भवरें की भांति ...... सपनों की “पुष्प-नागरी” मे मँडराता खुद को कभी इधर...... कभी उधर..... “बदनाम” तन्हा गलियो मे बिलकुल अकेला पाता मन-मंदिर मे बसी “अनदेखी-अनजानी” वो सपनों के संसार की “स्वपन-सुंदरी” जिसमे “सौंदर्यता” और “कोमार्यता” “कूट-कूट” के भरी..... सच कहता हूँ मे....…