आरामपसंद भारत ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात धर्म का सबसे पहला साधन शरीर है लेकिन भारतीय लोग अपने शरीर के बारे में कितने लापरवाह हैं, इसका पता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रपट से चलता है। इसका कहना है कि भारत के 34 प्रतिशत लोग शारीरिक मेहनत का कोई काम नहीं करते। याने न तो वे कसरत करते हैं न मेहनत-मजदूरी करते हैं। दूसरे शब्दों में देश के लगभग 40 करोड़ लोग काफी आरामपसंद हैं। ये लोग कौन हैं ? ये संपन्न हैं, शहरी हैं, ऊंची जातियों के हैं। इन्हीं लोगों की दवा-दारु पर देश सबसे ज्यादा खर्च करता है। गरीब को, ग्रामीण को, छोटी जातवाले को ठीक से दवा तो क्या, खाना भी नसीब नहीं होता। देश में शारीरिक श्रम सबसे ज्यादा ये ही लोग करते हैं। एशिया और अफ्रीका के देशों में शारीरिक श्रम की कीमत बौद्धिक श्रम के मुकाबले इतनी कम है कि उसका सामाजिक जीवन में कोई महत्व ही नहीं है। शारीरिक श्रम करनेवालों की संख्या घटती जा रही है। भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं और भी कम श्रमपूर्ण कार्य करती हैं। ऐसे पुरुष यदि 24 प्रतिशत हैं तो महिलाएं 44 प्रतिशत हैं। इसीलिए बीमारियां भी उन्हें ज्यादा घेरती हैं। कम मेहनत करनेवाले लोगों को हृदयरोग, मधुमेह, उच्च-तनाव, केंसर, विस्मृति और रक्तचाप जैसी बीमारियां अक्सर हो जाती हैं। भारत के 77 हजार लोगों से पूछताछ के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 16 लाख लोग पर्याप्त इलाज के अभाव में मर जाते हैं। इस रपट का कहना है कि स्वस्थ रहने के लिए सप्ताह में कम से कम 75 मिनिट से 150 मिनिट तक सघन व्यायाम करना जरुरी है। यदि कोई व्यक्ति अपने शरीर की देखभाल के लिए 10-20 मिनिट भी रोज़ नहीं निकाल सकता तो वह डाॅक्टरों के शरण में जाए बिना कैसे रह सकता है ? ‘जीवेम् शरदः शतग्वम्’ याने शतायु होने का संकल्प ऐसे लोगों के लिए एक दूर का सपना बनकर ही रह जाता है। यदि भारत को एक संपन्न महाशक्ति बनना है तो उसके हर नागरिक को नियमित व्यायाम का व्रत धारण करना ही चाहिए। आरामपंसदी भारत को महाशक्ति नहीं बना सकती।

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