मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना, जब तोड़ा गया था मथुरा के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर को

मथुरा के प्रसिद्ध मन्दिर को तोड़ा गया

औरंगजेब को यह भली प्रकार जानकारी थी कि उसके पूर्वज बाबर ने किस प्रकार 1528 ई0 में भारतीय इतिहास के महानायक श्री रामचन्द्र जी के मन्दिर को अयोध्या में तुड़वाया था । अब उसे भी मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय होने के लिए मथुरा में श्री कृष्ण के भव्य मन्दिर को तोड़ने का विचार आया। जिससे वह भी उतना ही पुण्य लाभ अर्जित कर सके जितना उसके पूर्वज बाबर को श्री रामचन्द्र जी के मन्दिर को तोड़ने से मिला था।
अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए औरंगजेब ने जनवरी 1670 में मथुरा के प्रसिद्ध केशव राय मन्दिर को नष्ट करके वहाँ एक मस्जिद बनवायी थी। इस घटना को इतिहास में बहुत छोटी सी घटना के रूप में उल्लेखित किया गया है ।जबकि श्री रामचन्द्र जी के अयोध्या स्थित मन्दिर को तोड़ने के बाद की भारतीय इतिहास की यह बहुत महत्वपूर्ण घटना थी । क्योंकि भारतीय इतिहास के इन दोनों महानायकों अर्थात श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी के प्रति भारत की जनता असीम श्रद्धा भाव रखती थी और उन्हें भगवान के रूप में पूजती थी।


अपने इन दोनों इतिहासनायकों के साथ मुगल बादशाहों के द्वारा किए गए इस प्रकार के अपमानजनक व्यवहार को देश का हिन्दू मानस कभी भूल नहीं पाया । वह रह-रहकर अपने आक्रोश और क्षोभ को व्यक्त करता रहा और जब – जब उसे कहीं पर भी अवसर मिला तो उसने मुस्लिमों के विरुद्ध अपना आक्रोश और क्षोभ व्यक्त करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी । हिन्दुओं के भीतर अपमान और तिरस्कार का भाव भरा हुआ था और वह उसे समय-समय पर व्यक्त करने से चूकते नहीं थे । इतिहास लेखकों की दुष्टता ने कभी मुगल बादशाहों के इन अत्याचारों का उल्लेख तो नहीं किया पर उन्होंने बार-बार हिन्दुओं के आक्रोश और क्षोभ को साम्प्रदायिक आक्रोश व क्षोभ के रूप में अवश्य व्यक्त करने का प्रयास किया है । जबकि सच यह था कि मुगलों के अपमानजनक व्यवहार से उत्पीड़ित हिन्दू जनमानस अपना आक्रोश और क्षोभ अपनी कुण्ठा को व्यक्त करते हुए करता था। जिससे देश में साम्प्रदायिक दंगों का क्रम चलता रहा ।
भारतीय जनमानस में वाराणसी के श्री विश्वनाथ मन्दिर के प्रति भी असीम श्रद्धा प्रारम्भिक काल से ही रही है ।औरंगजेब ने हिन्दुओं की आस्था के इस परम केन्द्र को भी नष्ट करने का मन बना लिया था । क्योंकि वह हर स्थिति में हिन्दुओं के मर्म पर प्रहार करने की योजनाएं बनाता था, जिससे कि हिन्दू अत्यधिक दुखी हो। फलस्वरूप उसने मथुरा के मन्दिर के विध्वंस के कुछ समय पश्चात वाराणसी के श्री विश्वनाथ मन्दिर और सोमनाथ के प्रसिद्ध मन्दिर को ढहाने का आदेश भी जारी किया। काशी विश्वनाथ के इस मन्दिर के विध्वंस के पश्चात हिन्दू जनता बहुत अधिक बेचैन हो गई थी । उसने अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का बार-बार प्रयास किया था ।
वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों की दृष्टि में भारतवर्ष के उदार बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान की हिन्दू जनता को भी अपने धार्मिक उत्पीड़न का शिकार बनाया था। राजस्थान के उदयपुर और मारवाड़ के क्षेत्र में हिन्दुओं के लगभग 300 मन्दिर उसकी धार्मिक नीति का शिकार हुए । जिस कारण उसने 1679 में अपना एक शाही फरमान जारी कर इन सभी हिन्दू मन्दिरों के विध्वंस करने का निर्णय लिया। हिन्दू मन्दिरों की रक्षा करते हुए अनेकों हिन्दुओं ने अपने बलिदान दिए, परन्तु वे क्रूर औरंगजेब की निर्दयी तलवार का अधिक देर तक सामना नहीं कर पाए, फलस्वरूप बादशाह के सैनिक इन सभी मन्दिरों को तोड़ फोड़कर नष्ट करने में सफल हो गए।औरंगजेब के आदेश से ही चित्तौड़ में 63 मन्दिरों को ढहा दिया गया था।

सर्वत्र मन्दिर नष्ट किए जाते रहे

यदि औरंगजेब के शासनकाल और उसकी धार्मिक नीति की समीक्षा की जाए तो पता चलता है कि उसने भारत को हिन्दूविहीन और हिन्दू धर्म स्थलों से शून्य कर देने के हर उपाय पर विचार किया । वह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उस समय एक मन्दिर-भक्षी की भांति शिकार करता हुआ घूम रहा था । जहाँ भी उसे यह पता चलता था कि अमुक स्थान पर हिन्दुओं के अमुक महापुरुष के द्वारा स्थापित कोई धर्म स्थल है तो वह वहाँ फुंफकारते हुए नाग की भांति जा खड़ा होता और उसे नष्ट करवा डालता ।

पसरा मातम देश में खुशी चली गई दूर।
मानो हमसे खो गया दिल का कोहिनूर।।

अपनी इसी नीति पर चलते हुए औरंगजेब ने 1 जून 1681 को उड़ीसा के पवित्र जगन्नाथ मन्दिर को पूर्णतः नष्ट कर देने का सरकारी आदेश जारी किया। जिन लोगों ने औरंगजेब के इस आदेश का विरोध किया हमें तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अतिरिक्त उनके विरुद्ध वे सारे अत्याचार किए गए जो इस्लाम में गाजी पद पाने या इस्लाम की खिदमत करने के लिए किए जाने हेतु न्याय संगत माने गए हैं।
औरंगजेब की कोपदृष्टि से दक्षिण भारत के हिन्दू धर्म स्थल भी बच नहीं पाए थे । सितम्बर 1681 ईसवी में जब औरंगजेब ने अपनी कथित विजयों के लिए दक्षिण अभियान पर चलने का निर्णय लिया तो उस समय भी उसने अपने सैनिकों व सेनापतियों को यह आदेश जारी कर दिया था कि मार्ग में जितने भी हिन्दू धर्म स्थल पड़ते हैं उन सबको नष्ट कर दिया जाए और उनका विरोध करने वाले काफिरों को भी निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया जाए ।
सितम्बर 1682 में उसने बनारस के प्रसिद्ध बिन्दु-माधव मन्दिर को तोड़ने का आदेश भी जारी किया।
इस प्रकार औरंगजेब ने अपनी धार्मिक कट्टरता का परिचय देते हुए भारतवर्ष के अनेकों हिन्दू मन्दिरों को भी नष्ट करवाया और उनके स्थान पर मस्जिदें खड़ी करवा दीं। उसे हिन्दू धर्म स्थलों के विनाश में एक बहुत ही गहरी आनन्दानुभूति होती थी। जिसे अनुभव करने के लिए वह बार-बार ऐसा करता था। वह अपने आपको इस्लाम का सेवक मानता था। इस्लाम की इससे बड़ी कोई सेवा नहीं हो सकती कि काफिरों के धर्म स्थलों का विनाश किया जाए और उनका जबरन धर्मांतरण कर इस्लाम का प्रचार – प्रसार और विस्तार किया जाए । अपने आपको इस्लाम का सेवक सिद्ध करने के दृष्टिकोण से और उसने इस्लाम की इस प्रकार की सेवा करने को अपना जीवन व्रत बना लिया था।

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