धर्म, हिंसा और आतंक

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-बीनू भटनागर-
Communal Politics1

मैंने पुणे के एक युवक की पीट-पीट कर हत्या होने पर आक्रोश प्रकट किया, तो मुझे याद दिलाया गया कि कश्मीर से पंडितों के विस्थापित होने पर या हिंदुओं पर मुसलमानों द्वारा हिंसा होने पर मुझे ये आक्रोश क्यों नहीं आया था। यदि पुणे का युवक मोहसिन न होकर मुद्रित होता तो भी मेरा दुख और आक्रोश उतना ही होता, क्योंकि वो हिंदू या मुसलमान होने से पहले इंसान था। पुणे के इस युवक का कश्मीरी पंडितों से क्या लेना-देना, वो तो शायद कभी कश्मीर गया ही न हो। किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के ग़लत काम की सज़ा हम उसी समुदाय के किसी दूसरे व्यक्ति को कैसे दे सकते हैं! उसकी ग़लती क्या थी, यदि कुछ लोगों को फ़ेसबुक पर कोई पोस्ट पसन्द नहीं आई जो उनकी भावनाओं को आहत करती थी, उसे भेजने वाले को ब्लौक कर सकते थे, या मित्र सूची से हटा देते। इस बात के लिये हिंसा पर उतर आना, किसी की जान ले लेना जघन्य अपराध है। बदले की भावना के चलते मन मे एक दूसरे के प्रति घृणा पालना पूरे देश के लिये ग़लत है, इससे हिंसा भड़केगी, मासूम लोग दोनों तरफ़ के मारे जायेंगे, फिर चाहे क़ुरान पकड़ कर रोओ, या गीता पकड़कर, जाने वाला नहीं आयेगा। सिर्फ उन परिवारों पर असर पड़ेगा जिनका कई अपना चला गया…

हमारे देश के नेताओं ने ही दोनों संप्रदायों को बांट कर वोटों के लिये ध्रुवीकरण किया है। हम उसी में फंसते चले गये, अभी भी फंसे हुए हैं। कांग्रेस तथा कुछ अन्य पार्टियों ने मुसलमानों के वोटों को बटोरने के लिये उनका तुष्टीकरण किया, उनका उपयोग किया पर उससे मुसलमानों का कुछ भला हुआ हो ऐसा नहीं लगता। इस तुष्टीकरण के चलते हिन्दुओं मे अवश्य एक आक्रोश ने जन्म लिया। इस्लामिक कट्टरवाद ने हिन्दुओं को ही आतंकित नहीं किया, निर्दोष मुसलमानों ने भी उसकी वजह से अपनी जान गंवाई। इस्लामिक आतंकवाद की वजह से भोले भाले निर्दोष मुसलमानों को भी शक की नज़र से देखा जाने लगा। धीरे-धीरे बदले की भावना और तुष्टीकरण की सरकारी नीतियों की वजह से हिन्दुओं की हिंसक प्रवृत्तियां जागने लगी और कट्टरवादी विचारधारा वाले संगठन सिर उठाकर सामने आये। हिंदू कट्टरवादी विचारधारा के संगठनो को भी राजनैतिक पार्टियों का समर्थन मिलने लगा। किसी भी धर्म का आतंकवाद और जुड़ना बेहद शर्मनाक है, पर सच्चाई यही है कि धार्मिक कट्टरवाद और उन्माद से ही आतंकवाद का जन्म होता है। आतंकवादी जिस दिन बंदूक या कोई और शस्त्र अपने धर्म की रक्षा के लिये उठाता है, उस दिन से उस धर्म का विनाश शुरू हो जाता है।
अंग्रेज़ों से हिन्दू मुसलमान मिलकर लड़े थे, पर आज़ादी के बाद सत्ता अधिकतर कांग्रेस के पास रही और उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के ही कारण क्रोधित हिंदू संगठन के व्यक्ति द्वारा महात्मा गांधी की जान गई। कई दशक तक हिन्दुओं को लगा कि सरकार बहुसंख्यक हिन्दुओं की अनदेखी कर रही है। कहीं न कहीं आक्रोश की यह ज्वाला हिन्दुओं में दहकती रही।

2014 के चुनाव से पहले ही कांग्रेस अपनी पकड़ खो चुकी थी। मोदी जी और भाजपा की लोकप्रियता बढ़ रही थी। मोदी जी बहुत महनत करके अपनी नकारात्मक छवि को बदला। मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले भी और बाद मे भी कहा कि वो भारत के सवा सौ करोड़ लोगों के हितों की रक्षा करेंगे, परन्तु उनकी पार्टी के ही कुछ नेता मुस्लिम विरोधी बयान देते रहे, जिससे मुसलमान अपने असुरक्षित महसूस करने लगे। दूसरी ओर हिन्दू कट्टरविचारधारा वाले लोग समझने लगे कि अब उनके दिन आ गये हैं। धर्म के नाम वो कुछ भी कर सकते हैं। मोदी जी को काफ़ी लोगों ने वोट उनके विकास के नारे और उनकी नेतृत्व की योज्ञता के कारण दिया होगा, पर एक ऐसा बड़ा वर्ग है जिसे हमेशा हिन्दू धर्म पर संकट नज़र आता है और इस वर्ग ने मोदी जी को वोट हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व को बचाने के नाम पर दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान इस प्रकार की बयानबाज़ी उनलोगों ने की भी थी जो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। मोदी ने देश के सवा सौ करोड़ लोगों की ज़िम्मेदारी ली है। सभी को उनसे बहुत उम्मीदें हैं और हम चाहते हैं कि वो इन उम्मीदों पर खरा उतरें।

बहुत से हिन्दू कट्टरवादी संगठन बीजेपी के संरक्षण में काम करते रहे हैं, अब सत्ता में आने के बाद उनका नैतिक दायित्व है कि वो इनसे अपने रिश्ते समाप्त कर दें। मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिन के अंदर ही एक मुस्लिम युवक को एक हिन्दू कट्टरवादी संगठन मार दिया, इससे ग़लत संदेश जनता को जाता है। यद्यपि पुणे की इस घटना के बाद बहुत सी गिरफ्तारियां हुई हैं, न्यापालिका भी अपना काम करेगी, केन्द्र ने घटना की रिपोर्ट भी मांगी है, पर मोदी जी की तरफ से इस घटना की कड़ी निंदा होनी चाहिये थी, पीड़ित परिवार को सहानुभूति मिलनी चाहिये थी।
धर्म के नाम पर किसी की जान लेने की इजाज़त कोई धर्म नहीं देता, और जो देता है उसे धर्म कहा ही नहीं जा सकता।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

3 COMMENTS

  1. मोहसीन की हत्या गलत है. किसी भी तर्क से इस हिंसा को सही नहीं ठहराया जा सकता. एक हिन्दू के रूप में मै इस हिंसा की निदा करता हूँ. और मै यह आशा करता हूँ की जब भी कोई आतंकवादी किसी हिन्दू की ह्त्या करे तो मुस्लिम समाज आगे आ कर ऐसी प्रतिकृया दे. इस प्रकार हम भारत को बेहतर बना सकते है.

  2. जिस दिन वो मारा गया उसके चार दिन पहले ही पुणे मे एक हिन्दू का कत्ल हौवा था जो इन्फोसिस मे साफ्टवेयर इंजीनियर था उसके कुछ दिन पहले तृणमूल के मुस्लिम गुंडों ने एक भाजपा हिन्दू कार्यक्र्त्ता को गोली मार दी पश्चिम बंगाल मे गोली मार दी आप का कोई लेख नहीं आया अभी तीन या चार दिन पहले एक भाजपा नेता को मार दिया गया है आपका कोई लेख नहीं है केरल तमिलनाडु व कर्नाटक मे पिछले दो सालों में बीसियों हिन्दू नेता मारे गए है जिसमे एक 18 साल का किशोर भी शामिल है जिसे बस मे ही काट दिया मुसलमानों ने आपका कोई लेख या क्षोभ नहीं प्रकट हुवा??क्योंकि आपके लिए एक मियां मारा जाये तो बहुत बड़ा आफत खड़ा हो जाता है एक हिन्दू मारा जाये तो अपने कर्मों से मरा है न???मोहसीन मुद्रित होता और मुहमद की तशवीर लगाई होती और यू ही मारा जाता तब शायद आप नही लिखते क्योंकि तब वो जायज होता???किस को मूर्ख बना रहे हो??तुम जैसे लोगों ने ही अपना ईमान बेच रखा है जनता ने तुम जैसे लोगो को स्पष्ट संदेश दिया है की मुल्ला तुष्टीकरण नहीं चलेगा अब|उस लड़के ने बाला साहब ठाकरे के मुंह की जगह कुत्ता की फोटू लगाई शिवाजी की जगह सुयार और भगवती सीता के चेहरे को टू पीस स्वीम सूट की मॉडल पर अश्लील भाषा मे पोस्ट की|और उस के लिए बकायदा हजारों लोगों ने फेसबुक को बोल्ग करने का भी निवेदन किया महाराष्ट्र मे इसको लेकर बवाल भी मचा था लेकिन पुलिस उस गुंडे को बचाती रही तो भीड़ ने इंसाफ किया|और भीड़ का इंसाफ एसा ही होता है उसके हत्यारों को [उलीस ने पकड़ लिया है और न्यायालय सजा भी दे देगा पर चंद सेक्युलर को कुछ जायदा ही मिर्ची लग गयी है|नरेंद्र भाई मोदी को इस अब की चंच करानी चाहिए इनके आय के स्ट्रोटोन और इनके सब लिंक की जांच हो |

    • मैने कभी किसी व्यक्ति को उसके धर्म के माध्यम से नहीं जाना या समझा, जिस भी मासूम इंसान को मारा गया उसकी निंदा मे यदि लेख नहीं लिखा गया तो क्या…. जब भी एसी ख़बर मिली दुख तो बहुत हुआ इस बार लेखनी से उतर गया, आप कहेंगे मीडिया द्वारा कवरेज के कारण ऐसा हुआ होगा… हो सकता है ज़्यादा देखने से असर गहरा होता है। धार्मिक आतंक तो हर धर्म के लियें हानिकारक हैं। इस लेख को आप ध्यान से पढ़े तो सबसे पहले मैने इस्लामिक आतंकवाद की चर्चा की जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदुओं मे हिंसा पनपी है।
      जो धर्म भी हिंसा फैलाये वह निंदनीय है, वह सिर्फ अधर्म है और कुछ भी नहीं।

      • ये ही मैं कहना चाह रहा हूँ कि लोग एक मुस्लिम के मरने पर शोर मचा रहे हैं जबकि हिन्दू रोज मर रहे है अभी एक और मारा हैं।हिन्दुओं में अभी हिंसा पनपी नही हैं वो छोरा निश्चित झगड़े में मरा हैं जिसे घुमा कर हत्या बना दिया गया हैं पुलिस ने कैसे ओर किस आधार पर उसको क्लीन चिटदी??ये बताया गया हैं कि टोपी पहनने से उसे मारा पुणे में तो लाखों होंगे जो टोपी पहननते हैं उसको ही क्यों??साफ़ हैं वो छोरे उसको समझाने गए होंगे वहां झगडा हो गया होगा और नतीजा!न ही इसका सम्बन्ध हिन्दू धर्म से हैंन ही उस संघठन से जिसका नाम लिया जा रहा हैं।पुलिस उस लडके के अपराध हल्का करआंक रही हैं हमेशा की तरह मि डियाहिन्दू विरोधी।

  3. बीनू भटनागर जी द्वारा लिखा सुंदर लेख “धर्म, हिंसा और आतंक” तथा लेख के प्रति उत्तर में मुहम्मद आरिफ खान जी की टिप्पणी केवल उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति है| मैंने तथाकथित स्वतंत्रता से अब तक भावनाओं में बह हिन्दू मुसलमान को विभिन्न रूप में एक दूसरे के प्रति सक्रिय अथवा निष्क्रिय होते देखा है| भावनाओं से कभी भी कर्म की उत्पत्ति नहीं होती| कर्म करते हुए भावनाओं में निखार अवश्य आ जाता है| भारतीयों के व्यवहार में इस छोटे से अंतर को समझते स्वार्थपरायण सत्ता में बैठे लोगों ने सदा हिन्दू मुसलमान का शोषण किया है| आज भी हम भावनाओं में खो एक दूसरे के प्रति शंका व भय द्वारा अपना सुख चैन खोये हुए हैं| समाज विरोधी तत्वों के पराजित होने पर हम आज भी कर्म में नहीं, भावनाओं में विश्वास रखते मोदी जी से “इस घटना की कड़ी निंदा और पीड़ित परिवार के लिए सहानुभूति” की अपेक्षा करते है| आज से पहले समाचार पत्रों में अथवा राजनीतिज्ञ द्वारा प्रत्यक्ष साक्षात्कार में कड़ी निंदा और पीड़ित परिवार के प्रति सहानुभूति जताने पर भी हिंसा और आतंक हमारे जीवन के आवश्यक अंग बन कर रह गए है| हिन्दू मुसलमान एक जुट हो विधि और व्यवस्था का क्यों नहीं सोचते? सक्रिय मन, संभवतः हम विधि और व्यवस्था द्वारा ठीक प्रकार कार्यरत हो हिंसा और आतंक की समाप्ति में केवल अपनी प्रिय भावनाओं को ध्वस्त होते ही देखते है| और यह हमें स्वीकार नहीं है!

    अभी तो विधि और व्यवस्था को कर्मशील प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी पर छोड़ मैं भावना-ग्रस्त हिन्दू मुसलमान का ध्यान मरे शेर की पूंछ की और आकर्षित करूँगा| भारतीय मतदाता ने १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को तो पराजित कर राष्ट्रवादियों को सत्ता अवश्य थमा दी है लेकिन आज भी उसके समकालीन चचेरे भाई टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया और दोनों के अन्य अवसरवादी संचार माध्यम को गले लगाया हुआ है| सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता के बीच भारतीय मीडिया क्योंकर विभीषण बन हमें प्रिय लगता रहा है? कृपया समाचार के शीर्षक की और विशेष ध्यान दें–बीते दिन अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा समाचार “Curfew imposed in Tarou town of Haryana” (https://www.ptinews.com/news/4794458_Curfew-imposed-in-Tarou-town-of-Haryana-.html) पर आधारित “Communal clash: Curfew imposed in Tarou town of Haryana” (https://timesofindia.indiatimes.com/city/chandigarh/Communal-clash-Curfew-imposed-in-Tarou-town-of-Haryana/articleshow/36262072.cms) प्रस्तुत कर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ किया है और हम निष्क्रिय भावुक हिन्दू मुसलमान को इसकी भनक तक नहीं है| हिन्दू मुसलमान को भावना को त्याग धर्म से प्रेरित कर्म में निष्ठा रखनी होगी और मिल जुल कर हिंसा और आतंक का समाधान कुशल विधि और व्यवस्था में ढूँढना होगा|

  4. R u right bindu ji. Hàm sab aapky vicharo se sahmat h. Agar har inshan aankh ky badly aankh phodyga to sari duniya andhi ho jayegi……

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