आरक्षण अप्रासांगिक: स्वेच्छा से छोड़ने की अपील

reservationडा. राधेश्याम द्विवेदी
आधुनिक भारत में कुछ लोग, अम्बेडकर के द्वारा शुरू किए गए आरक्षण को अप्रासांगिक और प्रतिभा विरोधी मानते हैं। पिछले वर्षों में लगातार बौद्ध समूहों और रूढ़िवादी हिंदुओं के बीच हिंसक संघर्ष हुये है। 1994 में मुंबई में जब किसी ने अम्बेडकर की प्रतिमा के गले में जूते की माला लटका कर उनका अपमान किया था तो चारों ओर एक सांप्रदायिक हिंसा फैल गयी थी और हड़ताल के कारण शहर एक सप्ताह से अधिक तक बुरी तरह प्रभावित हुआ था। जब अगले वर्ष इसी तरह की गड़बड़ी हुई तो एक अम्बेडकर प्रतिमा को तोड़ा गया था । तमिलनाडु में ऊंची जाति के समूह भी बौद्धों के खिलाफ हिंसा में लगे हुए हैं। इसके अलावा, कुछ परिवर्तित बौद्धों ने हिंदुओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया (2006, महाराष्ट्र में दलितों द्वारा विरोध) और हिंदू मंदिरों मे गन्दगी फैला दी और देवताओं के स्थान पर अम्बेडकर के चित्र लगा दिये।
आरक्षण गले की फांस:-आरक्षण हमारे देश के लिए गले की फांस बन चुका है, जिसे देखों आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आता है। लोग जाति धर्म और मजहब के नाम आरक्षण कीमांग करते है ? जबकि इस देश में सभी को जीने का सामान्य अधिकार है फिर क्यों हमखुद ही अपने आपको और अपनी समाज को नीचा दिखाकर औरों की अपेक्षा कम आंके जाने की मांग करते है। सही मायने में सरकार आरक्षण की जंग की जिम्मेदार है।आरक्षण देश की बर्बादी और मौत का जिम्मेदार है। क्योंकि आरक्षण मांगने वाले या आरक्षित लोग कहीं ना कही सामान्य वर्ग से कमजोर होते है और ऐसे ही कमजोर लोगों के हाथों में हम अपने देशकी कमान थमा देते है। जो उसको थामने लायक थे ही नहीं।बस उन्हें तो यह मौका आरक्षण के आधार पर मिल गया।
आरक्षण से नुकसान:-आज हमारे देश में कई इंजीनियर और डॉक्टर्स आरक्षित जाति से है। जिनकी नियुक्ति को आरक्षण का आधार बनाया गया। एक सामान्य वर्ग, सामान्य जाति के छात्र और एक आरक्षित जाति के छात्र के बीच हमेषा ही सामान्य जाति के छात्र का शोषण हुआ, चाहे स्कूल में होने वाला दाखिला हो ,फीस की बात हो या अन्य प्रमाण पत्रों की। इन सभी आरक्षित जति वाले छात्र को सामान्यजाति वाले छात्र से आगे रखा जाता है। स्कूल फीस में कटौती मिलती है और साथ ही साथ छात्रवृति भी दी जाती है। इतना ही नहीं परीक्षा में कम अंक आने पर भी सामान्य जाति वाले छात्र के अपेक्षा उसे प्राथमिकता पर लिया जाता है। जब सामान्य जाति वाला छात्र स्कूल की पूरी फीस भी अदा करता है और मन लगाकर पढ़ने के बाद परीक्षामें अच्छे अंकों से पास भी होता है।अगर हम इसी कहानी के दूसरे पड़ाव की बात करें यानी नौकरी की तो अच्छे अब्बलनंबरों से पास हाने के बाबजूद सवर्ण जाति की बजाय उस व्यक्ति को वह नौकरी सिर्फइसलिए मिल जाती है क्योंकि वह आरक्षित जाति से है। जबकि वह उस नौकरी की पात्रता नहीं रखता था, क्योंकि उसने तो यह पढ़ाई सरकार के पैसों की है, जबकि सवर्ण जाति के छात्र ने यह तक पहुंचने में अपने मां बाप के खून पसीने की कमाई को दांव पर लगा दिया। देशद्रोहियों का विकास हुआ, पर देश का विकास नहीं हुआ जिनको हमारे वतन में रहने की जगह मिली, खाने को रोटी मिली, तन ढ़कने को कपड़े मिले। उन्होंने ही इस सरजमी को गिरवी रख दिया, हमारे अपनों को एकएक निवालों को तरसा दिया, हमारे घरों की इज्जत को वेपर्दा कर उन्हें बदनाम और देश को बर्बाद कर दिया, बिल्कुल यही सब तब हुआ था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे और वह सब अब भी हो रहा है। जब हम अपनों के गुलाम है। ना हम तब आजाद थे और ना ही हम अब आजाद है। फर्क बस इतना है कि तब हमें गैरों ने लूटा था आज हमें कोई हमारा अपना ही लूट रहा है। लोग केवल डॉ.अम्बेडकर के नाम का प्रयोग कर अपनी रजनीतिक रोटियां सेकते हैं। डॉ. अम्बेडकर के नाम पर देश विरोधी, समाज विरोधी कार्यों को करते हैं। इनके दुष्प्रचार के कारण जाने अनजाने में अनेक दलित युवा भ्रमित होकर अपना और देश का अहित करने में लग गए हैं।गाली गलोच, असभ्य भाषा आदि का प्रयोग करने के स्थान पर अम्बेडकरवादी इस पोस्ट को पढ़ कर आत्मचिंतन करें।
खुला पत्र हमारे नीति-निर्माताओं के नाम:-अगर आरक्षण से प्रॉब्लम है, तो जब भागवत बोलते हैं कि आरक्षण की समीक्षा करो, तो बिलबिला क्यों उठते हो? और अगर आरक्षण से प्रॉब्लम नहीं है, तो चाहे पटेल मांगें, कापू मांगें, जाट मांगें, देने में गणितज्ञ क्यों बनने लगते हो? दे दो जाट भाइयों को आरक्षण. ये खून-खराबा, आगजनी-पथराव, गोलीबारी-बमबारी मत करो. तुम्हें क्या अपनी जेब में से कुछ देना है? उनका हक है. उसी में से वे कुछ मांग रहे हैं. दे दो. पटेलों और कापुओं को भी दे दो. और कोई मांगने आए तो उसे भी दे दो. ये रोज-रोज का झगड़ा खत्म हो, इसीलिए मैं बार-बार कहता हूं 100 प्रतिशत आरक्षण कर दो. जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना आरक्षण.
100 प्रतिशत आरक्षण कर दोगे, तो सबसे पहले तो जातिवादियों की दुकानें बंद हो जाएंगी. जाति के नाम पर राजनीति करते कुकुरमुत्ते सूख जाएंगे. हमें नहीं मिला…हमें नहीं मिला… सभी जातियों की ये शिकायतें भी खत्म हो जाएंगी.जहां तक योग्यता का सवाल है, तो यह एक भ्रम मात्र है. न कोई योग्य है, न कोई अयोग्य है. जब अंगूठा छापों को मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद बनने देते हो, तब कहां चला जाता है तुम्हारे योग्यता का पैमाना? सारी योग्यता तुम्हें चपरासियों, क्लर्कों और बाबुओं के लिए ही देखनी है? या इंजीनियरों, डॉक्टरों के लिए भी क्या करोगे योग्यता देखकर? मूर्ख मुख्यमंत्री चलेगा, तो इन-इफीसिएंट इंजीनियर, डॉक्टर क्यों नहीं चलेंगे? डफर डॉक्टरों को मत लगाना प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के दिमाग और सीने की सर्जरी में. सर्दी-खांसी-छींक-बुखार का भी वे इलाज नहीं कर सकते क्या? सबसे ज्यादा लोग तो इन्हीं बीमारियों से बीमार होते हैं. फिर भी अगर तुम्हें अपनी जान का डर है, तो डॉक्टरी पेशे के लिए खत्म कर दो आरक्षण. मुझे यकीन है कि लोग इसपर सहमत हो जाएंगे. जो आरक्षण मांग रहे हैं, उन्हें भी जान का डर तो लगता ही होगा.
जब संविधान बनाए जाते समय कहा जा रहा था कि आरक्षण एक आग है, मत धधकाओ इसे. धधकने लगेगी, तो बुझाना मुश्किल हो जाएगा. तब समझ नहीं आया? मंडल की सिफारिशें लागू करते समय भी बुद्धि बिलाई हुई थी? अगर सामाजिक न्याय है, तो यह महज कुछ जातियों के लिए ही क्यों होगा? अगर सामाजिक न्याय है, तो फिर जिस-जिस जाति को लगेगा कि उसे न्याय नहीं मिल रहा, तो उसको भी देना होगा. अधूरा न्याय नहीं चलेगा. अगर आरक्षण से प्रॉब्लम है, तो जब भागवत बोलते हैं कि आरक्षण की समीक्षा करो, तो बिलबिला क्यों उठते हो? और अगर आरक्षण से प्रॉब्लम नहीं है, तो चाहे पटेल मांगें, कापू मांगें, जाट मांगें, देने में गणितज्ञ क्यों बनने लगते हो? आरक्षण की समस्या के दो ही हल हैं. या तो जातीय आरक्षण पूरी तरह से खत्म कर दो. या फिर उन सबको आरक्षण दे दो, जो-जो इसकी मांग करें. कल समस्या न उठे, इसलिए उन्हें भी दे दो, जो आज नहीं मांग रहे.
पहला हल अब संभव है नहीं, क्योंकि तुमने अपने लोकतंत्र की बुनियाद ही जाति और धर्म के आधार पर रख ली. धर्म के नाम पर तुमने देश का बंटवारा कबूल कर लिया और जाति के नाम पर तुमने आरक्षण कबूल कर लिया. इसलिए अब सिर्फ और सिर्फ दूसरा हल बचता है- सबको आरक्षण दे देने का. 100 प्रतिशत आरक्षण का. 50 प्रतिशत की सीलिंग समाप्त कर देने का. जिसकी जितनी आबादी है, उसे उतना हिस्सा दे देने का. घर में खाने की टेबुल पर सबकी थालियां क्या अलग-अलग तरह की सजाते हो? जब बाजार से मिठाई लाते हो, तो सभी बच्चों में बराबर-बराबर बांट देते हो कि नहीं? और अगर बराबर-बराबर नहीं बांटोगे, तो झगड़ा होगा कि नहीं?
वैसे भी बात जब हिस्सेदारी पर आ जाए, तो सबको बराबर मिले- यही उचित है. जब तक चार भाई साथ होते हैं, कौन कितना खर्च करता, कोई नहीं देखता, पर जब बंटवारा होता है, तो एक-एक धुर जमीन बराबर-बराबर बांट दी जाती है. तुमने जाति और धर्म के आधार पर बंटवारे वाला लोकतंत्र चुना. सिर्फ दिखाने के लिए अपने संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े. लेकिन दिखावा और सच्चाई में फर्क है प्यारे, इसलिए सबको आरक्षण दे दो. शांति और सौहार्द्र के लिए यही जरूरी है. आरक्षण मजबूरी है. लेने वालों के लिए भी और देने वालों के लिए भी!
आरक्षण की मूल आत्मा :- इसका लाभ उस समूह के सभी परिवारों (सदस्यों तक नहीं) तक पहुंचाना है। फिलहाल यह पूरा नहीं हो रहा है। किसी भी कीमत पर जाती के आधार पे आरक्षण होना ही नहीं चाहिए। इससे तो आरक्षित जातियों की मजबूत परिवार ही कोटे का फयदा पीढ़ी दर पीढ़ी लेगी और उसी जाती के गरीब लोग हमेशा गरीब के गरीब ही रहेंगे । आरक्षण से लाभान्वित परिवार आगे चलकर अपने ही समूह में एक टापू का रूप ग्रहण कर लेता है, जो अपने ही समूह के नीचे वालों को उबरने नहीं देता।अपने लिए आरक्षण की मांग न करना सामाजिक बदलाव की एक नई शुरुआत हो सकती है, बशर्ते कि इसे राजनीतिक लाभ की बजाय सामाजिक लाभ के नजरिये से देखा जाए। प्रधानमंत्री जी ने आर्थिक रूप से ठीक-ठाक लोगों से एलपीजी गैस की सब्सिडी स्वेच्छा से छोड़ने की अपील की थी। आरक्षित जातियों की तरह जाट लोग बहती गंगा में हाथ धोना चाह रह है।

1 COMMENT

  1. kis khoon paseene ki kamai ki bat kar rahe ho jo sadiyon se tum logo ne vanchit rakha aaj jab barabari ka adhikar mila hai to mirch lag rahi hai.
    agar barabari karni hai to baseline barabar honi chahiye hamari tarah majdoor varg me rahkar kuchh ban kar jis din padhna padega aage badhna to door ye hankane wali baaten bhool jayoge
    kabhi hamari paristhitiyo ka samjha hi nahi sadiyo se shoshan

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here