शराफत‌ के पेरोकार‌

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मोहल्ले वालों ने आसमान सिर पर उठा रखा था|पास पड़ौस के सभी धुरंधर
उसके मकान के पास एकत्रित थे|सत्तरह मुँह सत्तरह बातें हो रही थीं|
|”निकालो उसको यहां से अभी इसी वक्त,कैसे कैसे लोग चले आते हैं,बच्चों पर
क्या असर पड़ेगा|”यह नगर‌प्रमुख लल्ला प्रसाद जी की आवाज़ थी जो भीड़ की
अगुआई करते हुये चीख रहे थे|
“बच्चे तो ठीक है भाई साहब,हमारी माँ बहने यहां रहती हैं, उन पर क्या असर
होगा|एक मछली सारे तालाब को गंदा करने के लिये काफी होती है|हम उसे एक भी
दिन  इस मोहल्ले में नहीं रहने देंगे|” नगर पंडित घोंचू प्रसाद जी हाथ में
माला
लिये हुये बिफर रहे थे|
“पंडितजी शरीफों के मोहल्ले में यदि वैश्यायें रहने लगें तो सत्यनाश ही
समझो मोहल्ले का|कल से देखना यहां आवारा छोकरों का जमघट लगने लगेगा|नगर‌
सेठ नत्थूलाल भी हाथ मटका मटका कर अपने आपको अभिव्यक्त कर रहे
थे|अभिव्य‌क्ति
की बहती गंगा में सभी अपने अपने तरीके से विचार प्रवाहित कर रहे थे|
वह दोपहर में एक ट्रक मॆं समान लेकर आई थी|मज़दूर ट्रक खाली करके जा
चुके थे|लोगों ने सोफा पलंग और बर्त‌नों की बोरी और दो तीन खाली ड्रमों को
उतरते हुये देखा था| शाम होते होते हल्ला हो गया था कि कोई वैश्या मोहल्ले
में रहने आई है|लोग नाराज़ थे|कोई वैश्यामॊहल्ले में रहे वह भी छोटे कस्बे
में यह कैसे संभव था|
फिर नगर‌ प्रमुख लल्ला प्रसादजी, नगर पंडित घोंचू प्रसाद जी और नगर सेठ
नत्थूलाल जी जैसे पुरा
पंथियों के रहते हुये वैश्या…छी छी…. सोचना भी पाप था| फैसला लिया गया
कि कल
सभा बुलाई जाये और उस गंदी मछली को पवित्र बस्ती रूपी तालाब से निकालकर
बाहर फेकने की व्यवस्था कि जाये|
रात के बारह बज चुके थे |बस्ती नींद की गोद में  पड़ी हुई
घुर्राटे मार रही थी|  तथा कथित वैश्या चंपा भी दिन भर की थकी हारी बिस्तर
में पड़ी
भविष्य के सपने बुनती हुई सोने का प्रयास कर रही थी कि दरवाजे पर हल्की
दस्तक हुई|इतनी रात गये इस नई जगह में कौन होगा,उसने कोई जबाब नहीं दिया|जब
लगातार दरवाजा पीटा जाने लगा तो वह खीझ उठी |”कौन है इतनी रात को”वह जोर
से बोली|
“जरा धीरे बोल मैं हूं मुखिया लल्ला प्रसाद ”
“ओह मुखियाजी आप‌ ,”कहते हुये उसने दरवाजा खोल दिया| लल्ला प्रसाद ने
भीतर
घुसते ही बड़ी फुरती से दरवाजा बंद कर कुंडी चढ़ा दी|
“कहिये मैं आपकी क्या सेवा करूं……..”चंपा ने कुछ कहना चाहा|
“चुप धीरे बोल ,दीवारों के भी कान होते है|मैं तो तेरा हाल चाल पूछने
चला
आया था| देखा नहीं  दिन में तेरे विरोध में मोहल्ले वालों के तेवर कैसे
थे|”

“मगर हाल चाल पूछने इतनी रात को? बारह बजे|”चंपा ने हँसते हुये पूछा|
“वह ऐसा  है कि…………….” लल्ला प्रसाद ने उस‌के कंधे पर हाथ
रखना
चाहा| तभी दरवाजे पर फिर दस्तक होने लगी|हे भगवान यहां कौन आ गया लल्ला
प्रसादजी बौखला गये |
कौन? इतनी रात गये कौन है?चंपा ने पूछा|
” अरे मैं हूं पंडित घोंचू प्रसाद दरवाजा खोलो चंपा|”
यह कहां आ मरा कमव‌क्त,लल्ला प्रसाद थूक गुटकते हुये पीछे की तरफ भागने
लगे|
“अरे वहां कहां भागते  हो,यहां चलो”ऐसा कहकर चंपा उन्हें ठेलती हुई कमरे
के कोने में ले गई और उन्हें एक खाली पड़े  ड्रम में बैठा दिया|
दरवाजा खोला तो डरते डरते घोंचू प्रसादजी भीतर आ गये|
” पंडित जी इतनी रात गये इस गंदी मछ‌ली के डेरे में|”
‘चुप कर जब से तेरी तारीफ सुनी है ……..सबकी नज़रें बचाकर आया हूं|”
….कहकर घोंचू ने उसका का हाथ पकड़ लिया|
“तो यह बात है पंडितजी”,चंपा ने हाथ छुड़ाते हुये कहा| “आप तो मुझे भगाने
के लिये लोगों को उकसा  रहे थे|”
“अरे नहीं री ,मेरे होते हुये तुझे कौन  भगायेगा मैं………….”तभी
दरवाजा फिर बजने लगा| क्रृष्ण कृष्ण…. अब कौन आ गया”,पंडित जी की घिग्घी
बंध गई|
“कौन है भाई ,क्या काम है ,कल आईये|”चंपा ने ऊंचे स्वर में कहा|
” मैं नगर सेठ न‌त्थूलाल हूं, दरवाजा खोल ,थोड़ा सा ही काम है|”
चंपा दरवाजा खोलने के लिये आगे बढ़ी तो घोंचू प्रसाद पागल सा होगया |”अरे
यहा क्या
करती है” उसने चंपा को रोक लिया |घबडाहट में वह पलंग के नीचे छुपने लगा|
“अरे इधर नहीं इधर “चंपा ने उनका गला पकड़ा और दूसरे खाली पड़े ड्रम मे ठूंस
दिया| चंपा ने दरवाजा खोला तो नत्थूलालजी भीतर आ गये|”हाँफ रहे थे
बेचारे|एक तो  बड़ी तो‍द, ऊपर से रास्ते में किसी युवक ने उन्हें इधर आते
देख लिया था|कहीं पहचान न‌ लिया हो  नहीं तो कल बस्ती में हल्ला हो जायेगा|
यह डर भी उन्हें सता रहा था|
“चंपा मैं यह कहने आया था कि तू मेरे बगीचे वाले मकान में रह सकती है| हो
सकता है कल बस्ती वाले तुझे बस्ती से निकाल दें|”
“पर यह बात तॊ आप कल भी बता सकते थे ,रात एक बजे….”
नत्थू ने उसका हाथ पकड़कर पलंग पर बिठा लिया  .. “वो बात ऐसी है कि
.”.वह कुछ बोल पाते .तभी कमरे के कोनें से छीकने की आवाज़ आई| नत्थूलाल
हड़बड़ाकर खड़े हो गये|कौन है उधर वे दौड़कर कोने तरफ पहुंचे तो दम घुटने की
पीड़ा से त्रस्त‌
पंडित घोंचू प्रसादजी हड़बड़ाकर ड्रम से बाहर निकलते दिखाई दिये| दोनों की
नज़रें मिलीं
और झुक गईं | पंडित घॊंचू दरवाजे की तरफ भागे |
“अरे पंडितजी कहां चले, थोड़ा इश्क विश्क तो करते जाईये|”चंपा ने उन्हें बीच
में ही पकड़ लिया|
पंडितजी भरभराकर पलंग पर ढेर हो गये|  अचानक दूसरी टंकी में छुपे बैठे
लल्ला प्रसादजी भी लघुशंका का भार‌
अधिक देर तक स‌हन नहीं कर सके और बाहर निकलकर बाथरूम की तरफ भागे|
“तो यह‌ भी यहां हैं…….”नत्थूलाल के मुंह से निकला| थोड़ी ही देर में
बस्ती के  तीनों महारथी आमने सामने थे|
“क्यों करती है तू वैश्यावृति, ईमान डोल जाता है?” उल्टा चोर कोतवाल कॊ
डाँटे वाले मुहावरे को लागू करते हुये लल्ला प्रसाद ने चंपा पर अपना ग्राम
प्रमुख हॊने का डंडा चलाया|
“वाह रे मेरे मिट्टी के शेर रस्सी जल गई परंतु बल नहीं गये”चंपा जोरों से
हँसने लगी| मैंने तो आपको यहां नहीं बुलाया था|बोलिये बुलाया था क्या?
नहीं न, आप ही लोग आये हैं, रात के स्याह घुप्प अंधेरे में छुपते छुपाते|
औरत वैश्या नहीं होती, न कभी बनना चाहती है वह तो आप लोगों जैसे सफेद स्याह
पोशों की दरिंगी का शिकार होती रही है और नरक के दरवाजों की तरफ ढकेल दी
जाती रही है| औरत तो माँ होती है ,बहिन होती है ,बेटी होती है ,पत्नी होती
है, भतीजी होती है, भानजी होती है ,बुआ होती है ,मौसी होती है,ये सभी
पवित्र रिश्ते होते हैं ,इनमें वैश्या कहां है| औरत को वैश्या तो आपने
बनाया है, क्यों पंडितजी क्या मैं गलत कह रही हूं? उसने घोंचू प्रसाद को
झखझोरते हुये पूछा|आपके बेटे बेटियां शायद उम्र में मुझसे बड़े ही होंगे|इस
ढलती उम्र में आप यहां क्या करने आये हैं? तीनों चुपचाप खड़े थे|वो वो
…… पंडित की जुबान को जैसे लकवा लग चुका था|”यत्र नार्यस्तु पूजयनते
तत्र रमन्ते देवता:” यह श्लोक तो ग्यानी लोग सबको सुनाते हैं पर अमल कौन
करता है|वासना के दरिया में डूबते उतराते पुरुष समाज  ने ही वैश्याओं को
जन्म दिया है|औरत ने जनम दिया मरदों को मरदों ने उसे बाज़ार दिया|जब जी चाहा
मसला कुचला…….”ये नसीहतें आप लोगों ने ही….”
” बस चुप रहो बेटी ,हमसे भूल हुई बहुत बड़ी भूल “,लल्ला प्रसाद जी ने
अपने कान पकड़ लिये|
“बेटी हमें क्षमा कर दो”नत्थूलालजी की आँखों में आंसू आ गये|
“थोड़ी ही देर में सुबह होने वाली है सारी बस्ती को मालूम पड़ जायेगा कि आप
लोग रात को  कहाँ थे फिर आपका यह नकाब  ,नगर पंडित ,नगर सेठ,नगर
प्रमुख…..क्या उतर नहीं जायेगा|”चंपा ने तो जैसे आज दुर्गा का रूप धारण
कर लिया था|
तीनों प्रमुख अब तक उसके पैरों पर गिरे पड़े थे| बार बार माफी मांग रहे थे|
“वैसे आप लोगों को बता दूं कि मैं कोई वैश्या नहीं हूं, आप लोगों को गलत
जानकारी मिली है| मुझे इस कस्बे में बतौर शिक्षिका नियुक्त किया गया है
|सरकार एक स्कूल यहां खोल रही है ,जहां केवल वैश्याओं के बच्चे पढ़ेंगे| आप
लोग प्रतिग्यां करें कि इस पु
नीत काम में आप संपूर्ण सहयोग देंगें|
तीनों ने इस कार्य के लिये हामीं भर दी|
अगले दिन पंचायत में एक‌ प्रस्ताव  इस पुण्य कार्य में सहयोग देने
संबंधी पारित कर दिया गया|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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