आस्था का सम्मान-सेतु समुद्रम परियोजना

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अरविंद जयतिलक

यह स्वागतयोग्य है कि केंद्र की मोदी सरकार ने setu samundramको पूरा करने की प्रतिबद्धता दिखाते हुए रामसेतु की रक्षा का संकल्प लिया है। सरकार के केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने देश को भरोसा दिया है कि उनकी सरकार रामसेतु को बचाते हुए ही सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट को पूरा करेगी। केंद्र सरकार का यह फैसला उन करोड़ों हिंदूजनों की भावनाओं का सम्मान है जिनका विश्वास व आस्था रामसेतु से जुड़ा है और वे मानते हैं कि रामसेतु भगवान श्रीराम द्वारा ही निर्मित है और इसे नहीं तोड़ा जाना चाहिए। गौरतलब है कि प्रस्तावित सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना है जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र को बड़े पोतों के परिवहन योग्य बनाना और तटवर्ती इलाकों में मत्स्य और नौवहन बंदरगाह स्थापित करना है। लेकिन इस परियोजना का प्रारंभ से ही विरोध हो रहा है। बता दें कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने रामसेतु को हिंदू जनमन की आस्था का प्रतीक न मानते हुए इसे तोड़ने का निर्णय लिया था। उसने अपने फैसले के पक्ष में ढेरों दलील भी दी। मसलन उसने कहा कि रामसेतु सेतुसमुद्रम परियोजना की राह में बाधा है और इसे तोड़े बिना भारत और श्रीलंका के बीच जहाजों के आवागमन के लिए सुविधाजनक रास्ता तैयार नहीं हो सकेगा। यह भी तर्क दिया कि रामसेतु को तोड़ने से सेतु समुद्रम नौवहन परियोजना से भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरुमध्य और मन्नार की खाड़ी को जोड़ा जा सकेगा और जहाजों को पूर्वी तट तक जाने के लिए श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। इसके अलावा तर्क यह भी दिया कि चूंकि रामसेतु रामेश्वरम के निकट पंबन द्वीप और श्रीलंका के तलाइमन्नार के बीच स्थित है, के आसपास जल क्षेत्र छिछला है और उसकी वजह से बंगाल की खाड़ी से हिंद महासाागर आने वाले जलयानों को श्रीलंका के बाहर 30 घंटे या 650 किलोमीटर अधिक चक्कर लगाना पड़ता है। अगर रामसेतु को तोड़ दिया जाए तो समय और ईंधन दोनों की बचत होगी। रामसेतु को तोड़ने से होने वाले लाभ को रेखांकित करते हुए यूपीए सरकार ने दलील दी कि इससे देश की प्रतिरक्षा और सुरक्षा तंत्र मजबूत होगा और तमिलनाडु के तटीय जिलों में अतिरिक्त रोजगार का सृजन होगा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यूपीए सरकार ने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद् आर के पचौरी समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने 23 जुलाई 2008 को सेतु समुद्रम शिप चैनल प्रोजेक्ट के वैकल्पिक मार्ग की संभावना तलाशने के लिए पर्यावरणविद् डा0 आरके पचौरी की अध्यक्षता में समिति के गठन का आदेश दिया था। समिति ने अपनी सिफारिशों में वैकल्पिक मार्ग को नकारते हुए सेतुसमुद्रम परियोजना को पर्यावरणीय, आर्थिक और भावनात्मक आधार पर विनाशकारी करार दिया। लेकिन यूपीए सरकार ने समिति के सुझावों को नहीं माना। उल्टे उसने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामा में कहा कि रामसेतु हिंदू धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इस धार्मिक विश्वास की भी पुष्टि नहीं हो सकी है कि भगवान राम ने ही सेतु को श्रीलंका से लौटते समय तोड़ा था। यूपीए सरकार ने न्यायालय को यह भी समझाने की कोशिश की कि धार्मिक विश्वास संबंधी धर्म को आंतरिक और आवश्यक अंग न हो उसे संविधान के अनुच्छेद 25 एवं 26 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता। यूपीए सरकार की दलील थी कि इस योजना पर हजारों करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं लिहाजा अब इस परियोजना को रोका नहीं जा सकता। लेकिन केंद्र की नई सरकार के रुख से प्रतीत होता है कि वह रामसेतु को तोड़े जाने के पक्ष में नहीं है। यह उचित भी है। रामसेतु हिंदुजन आस्था का प्रतीक है और उसकी ऐतिहासिकता को संरक्षित रखना सरकार का कर्तव्य है। यह कहना उचित नहीं कि रामसेतु राम द्वारा निर्मित नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने श्रीलंका जाकर रावण से युद्ध कर सीता को वापस लाने के लिए इस सेतु का निर्माण किया था। लौटते समय उन्होंने सेतु को तोड़ दिया। रामायण के अलावा महाभारत में भी श्री नल सेतु का उल्लेख हुआ है। इसके अलावा कालीदास के रघुवंश, स्कंद, विष्णु, अग्नि और ब्रह्मपुराण में भी राम के सेतु का जिक्र है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी एडम ब्रिज और रामसेतु का उल्लेख है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रामसेतु की प्राचीनता 17 लाख साल पुरानी है। नासा और भारतीय सेटलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। प्राकृतिक तौर पर रामसेतु भारत के दक्षिण पूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानी श्रृंखला है। इस सेतु की लम्बाई तकरीबन 48 किमी है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाकजलडमरुमध्य को एकदूसरे से अलग करता है। इस क्षेत्र में समुद्र उथला है और चट्टानों की गहराई 3 फुट से लेकर 30 फुट तक है। इस क्षेत्र में जहाजों का आवागमन संभव नहीं है। ऐसी मान्यता है कि 15 वीं शताब्दी के दौरान इस ढांचे के सहारे-सहारे रामेश्वरम से मन्नार द्वीप की दूरी तय की जाती थी। गौरतलब है कि 2005 में भारत सरकार ने इस परियोजना को हरी झंडी दिखायी। अगर रामसेतु को बचाते हुए इस परियोजना को अमलीजामा पहनाया जाता है तो रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा। इसके अलावा तमिलनाडु के कोस्टल क्षेत्रों में कई एयरपोर्ट बन जाएंगे। सभी अंतर्राष्ट्रीय जहाज कोलंबों बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी क्षेत्र से गुजरेंगे। लेकिन इस परियोजना को लेकर ढेरों खतरनाक आषंकाएं भी जतायी जा रही हैं। इसे तोड़ना पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक माना जा रहा है। यही वजह है कि भारत और श्रीलंका के पर्यावरणविदों और संगठनों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। अनेक वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों द्वारा रामसेतु को तोड़े जाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रेखांकित भी किया जा चुका है। पर्यावरणविदों का दावा है कि रामसेतु को तोड़े जाने से गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। रामसेतु एक ऐतिहासिक साक्ष्य है। इसे तोड़ने से न केवल ऐतिहासिकता नष्ट होगी बल्कि रामेश्वरम मंदिर का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। अगर रामसेतु टुटता है तो सुनामी से केरल को बचाना मुश्किल हो जाएगा। हजारों समुद्रतटीय मछुवारों की जीविका चली जाएगी। लाखों लोगों को भूखों मरने की स्थिति में होंगे। इसके अलावा इस क्षेत्र से मिलने वाले दुर्लभ शंख और शिप जिनसे करोड़ों रुपए की आय होती है उससे भी हाथ धोना पड़ेगा। भारतीय नौसेना के समक्ष भी ढेरों चुनौतिया उपस्थित होंगी। पर्यावरणविदों का कहना है कि पाक और मन्नार की खाड़ी को गहरा करने से पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाएगा। सेतु समुद्रम परियोजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तकरीबन 44.9 नाॅटिकल मील यानी 83 किमी लंबा एक गहरा जलमार्ग खोदा जाएगा जिसके द्वारा पाकजलडमरुमध्य को मन्नार की खाड़ी से जोड़ जाएगा। स्वाभाविक रुप से इससे हजारों टन मलवे निकलेगें और उससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। तथ्य यह भी कि खुदायी से बंगाली की खाड़ी से पानी का बहाव मन्नार की खाड़ी की ओर बढ़ेगा और उससे मन्नार की खाड़ी का पारिस्थितिकीय तंत्र और भू-जल संतुलन बिगड़ जाएगा। पर्यावरणविदों ने सतर्क किया है कि इस पट्टी की गहराई बढ़ाने और तटबंधों को मजबूत बनाने के लिए होने वाले उत्खनन से उस क्षेत्र में पलने वाले दुर्लभ प्रजाति के समुद्री जीवों और वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। आशंका यह भी जतायी जा रही है रामसेतु के आसपास थोरियम के भारी भंडार हैं और अगर सेतुसमुद्रम परियोजना फलीभूत होती है तो यह भंडार नष्ट हो सकता है। सेतु समुद्रम शिप चैनल परियोजना की ऐतिहासिकता पर गौर करें तो इस परियोजना का प्रस्ताव 1860 में भारत में कार्यरत ब्रितानी कमांडर एडी टेलर ने रखा था। तकरीबन डेढ़ सौ साल बाद यह योजना फिर सुर्खियों में है। बता दें कि ढ़ाई हजार करोड़ की इस परियोजना के लिए भारत सरकार ने स्वेज नहर प्राधिकरण के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। स्वेज नहर प्राधिकरण ही सेतुसमुद्रम शिपिंग चैनल प्रोजेक्ट का निर्माण और देखभाल करेगा। यह चैनल 12 मीटर गहरा और 300 मीटर चौड़ा होगा। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र की सरकार रामसेतु की रक्षा करते हुए इस परियोजना को कैसे अंजाम तक पहुंचाती है। फिलहाल उसने रामसेतु की रक्षा का प्रतिबद्धता जता देशवासियों की आस्था का सम्मान किया है।

 

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