क्या फिर से पंजाब में आतंकवाद की हो सकती है वापसी?

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गौतम चौधरी 

विगत दिनों पंजाब में घटी घटनाओं को देखकर कयास लगाया जाने लगा है कि प्रदेश में एक बार फिर से आतंकवाद की वापसी हो सकती है। हालांकि प्रेक्षकों का विश्लेषन है कि इस बार आतंकवाद के विस्तार की संभावना कम है लेकिन प्रदेश के लोगों में डर और अविश्वास का बातावरण बनने लगा है। इस मामले में एक पडताल की गुंजाईस है लेकिन देखना यह है कि इस आसन्न खतरों के लिए प्रदेश सरकार की क्या रणनीति है। सरदार बलवंत सिंह राजुआणा के फांसी पर उठे विवाद को कई प्रेक्षक आतंकवाद की वापसी से जोडकर देख रहे हैं लेकिन इस मामले में खुद राजुआणा और उसके समर्थकों की राय भिन्न है। राजुआणा और सिख चरमपंथियों का मानना है कि पंजाब की वर्तमान सरकार और शिरोमणी गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी दोनों राजनीति में संलिप्त हैं। दोनों कुनवों को पंथ से कुछ भी लेना देना नहीं है और पंथ की संपत्ती पर वे मौज कर रहे हैं। उक्त बातें राजुआण ने एक पत्र के माध्यम से सार्वजनिक किया है। पत्र राजुआणा ने अपनी बहन को दिया था जो उससे जेल में मिलने गयी थी। इधर पंजाब की अकाली सरकार और सिखों की प्रतिनिधि संथा शिरोमणी गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी दोनों ही इस बात के लिए तैयार नहीं है कि फिर से सिखों में अविश्वास पैदा हो। इसलिए प्रदेश सरकार ने जहां एक ओर राजुआणा की फांसा का पंजाब विधानसभा में विरोध किया वही सरकार की मिशनरी ने विगत 28 मार्च को राजुआणा की फांसी के विरोध में पंजाब बंद के दौरान प्रदेश को पूर्ण रूपेण चरमपंथियों के हवाले छोड दिया। पंजाब में इस प्रकार की परिस्थिति के पीछे के दो करण हो सकते हैं एक तो सरकार बिनामतलब कोई लफरा मोल नहीं लेना चाहती है, दूसरा कि सरकार केन्द्र को दबाव में भी रखना चाहती है कि अगर केन्द्र ने किसी प्रकार की चालाकी की तो पंजाब में आतंकवाद की वापसी में देर नहीं लगेगा। इधर राज्य और केन्द्रीय दोनों गुप्तचर विभाग कारिंदों का मानना है कि चाहे पंजाब में चरमपंथी कुछ भी कर लें इस बार आतंकवाद को जीवित करना आसान नहीं होगा। इसके पीछे का तर्क दिया जाता है कि आतंकवाद को पनपाने के लिए कई तत्वों को फिर से सक्रिय करना होगा, जो फिलहाल संभव नहीं है। पहला तो पंजाब में नशे के कारोबार को एक नये जाल की जरूरत होगी। जो वर्तमान में नहीं बन पा रहा है। आतंकवाद के दौर में पंजाब की सीमा खुली हुई थी और खुली सीमा के माध्यम से हथियार और आतंकवाद के हितपोशक सीधे पंजाब में प्रवेश कर जाते थे, लेकिन अब भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा को तारों के द्वारा बंद कर दिया गया है जिसके कारण सीमापार से हथियार की आपूर्ति कठिन हो गयी है। हां एक रास्ता है जिसके द्वारा पंजाब में आतंकवाद को हवा दिया जा सकता है वह है माओवादी गतिविधि, लेकिन माओवादी गतिविधि प्रदेश में अभी बहुत कमजोर है। हालांकि प्रदेश में नशीली पदार्थों के करोबार में तेजी के संकेत मिल रहे हैं। पिछले साल की तुलना में इस वर्ष सीमापार से नशीली पदार्थों की खेप में तेजी के संकेत मिले हैं। वर्ष 2010-11 में पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में मादक पदार्थों की छोटी छोटी खेपें पकडी गयी थी जबकि वर्ष 2011-12 में बडी बडी खेपें पकडी जा रही है। इस बार दो सौ किलो से ज्यादा हेरोईन पकडा जा चुका है जिसका बाजार भाव 1200 करोड रूपये से ज्यादा आंका गया है। इसे प्रेक्षक मादक पदार्थ निरोधक दस्ते की सक्रियता से भी जोडकर देखा जा रहा है लेकिन गुप्तचर संस्थाओं का अनुमान है कि इससे यह साबित होता है कि पाकिस्तान नषीली पदार्थों की खेप भेजने में तेजी ला रहा है, जिससे आतंकवाद की वापसी के संकेत मिल रहे हैं। यही नहीं भारतीय गुप्तचर विभाग को यह भी संकेत मिला है कि पाकिस्तान में पनाह लिये खालिस्तान समर्थकों को पाकिस्तान एक बार फिर से सक्रिय करने के फिराक में है। इस बार उसे चीन के द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस खबर में कितनी सत्यता है यह तो पता नहीं है लेकिन नशीली पादर्थों की खेपों पर नजर डालने से यह साबित होता है कि पाकिस्तान के सहयोग से इस बार चीन प्रायोजित आतंकवाद पंजाब में अपनी जड मजबूत कर सकता है।

यहां यह बता देना उचित रहेगा कि इन दिनों दुनिया के नषीली पदार्थों के कारोबार में चीन ने अपनी हिस्सेदारी बडी तेजी से बढाई है। चीन किसी जमाने में साम्यवादी रूस द्वारा संरक्षित नशीले पदार्थों के कारोबारियों को संरक्षण देना प्ररंभ कर दिया है। साथ ही नशे की खेती पर भी चीन ने कब्जा जमाना प्ररंभ कर दिया है। नशे की खेती खासकर मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में होता है। उन दोनों जगहों पर चीन ने अपना कब्जा जमा लिया है। चीन इन नशों के माध्यम से पश्चिम के देशों में नये प्रकार का प्रभाव चाहता है। साथ ही अपने गुप्तचर संस्था को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए भी चीन इस व्यापार को संरक्षित कर रहा है। पंजाब के 80 प्रतिशत युवाओं में नशे की लत है। खासकर सिख युवा पीढी नशेरी हो रही है। हालांकि प्रदेश सरकार इससे काफी चिंतित लग रही और और नशा उनमूलण की दिशा में प्रयास भी कर रही है, यह प्रयास नाकाफी है। पाकिस्तान इसका उपयोग हथियार के रूप में करने की योजना बनाता रहा है। पहले इस योजना में पाकिस्तान को संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन प्रप्त था, लेकिन अब चीन पकिस्तान को इस योजना में सहयोग करने का आस्वासन दिया है। लेकिन पंजाब में आतंकवाद की वापसी में सबसे बडी बाधा प्रदेश सरकार है। सरकार ने बडी बुद्धिमानी से सिखों के असंतोष को निकालने का प्रयास किया है। वही प्रदेश सरकार ने इस संवेदनशील मामले में केन्द्र सरकार को भी दबाव में रखने का प्रयास किया है। पंजाब सरकार और अकालियों की रणनीति है कि अगर केन्द्र ने इस बार कोई गलंती की तो पंजाब में आतंवाद की वापसी की जिम्मेबारी पूर्णरूपेण केन्द्र पर होगी, ऐसा साबित किया जा सके। इससे केन्द्र सरकार भी दबाव में आ गयी है। यही नहीं केन्द्र की संप्रग सरकार ने राजुआणा की फांसी तो टाल ही दिया साथ ही सिखों की बहुत पुरानी मांग आनंद करज एक्ट को भी लागू कर दिया। अब प्रदेश सरकार को सिख चरमपंथियों को यह समझाने में सहुलियत हो रही है कि केन्द्र सरकार को प्रदेश की शिरोमणी अकाली सरकार दबाव में रख रही है। फिर प्रदेश सरकार ने कुछ खुंखार चरमपंथियों को पकडकर जेल में भी डाल दिया है। खालिस्तान समर्थक और शिरोमणी अकाली दल अमृतसर के अध्यक्ष सिमरंजीत सिंह मान और को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है। इससे ऐसा लगता है कि प्रदेश की अकाली सरकार भी प्रदेश में नये सिरे से आतंकवाद की वापसी के लिए सैद्धांतिक रूप से तैयार नहीं है। लेकिन केन्द्र सरकार के द्वारा बनाई गयी एक समिति ने अपनी आख्या में साबित करने का प्रयास किया है कि प्रदेश में फिर से आतंकवाद की वापसी संभव है। यही नहीं कई हिन्दू संगठनों ने भी अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि जिन तत्वों के करण पंजाब में आतंकवाद पनपा वे तत्व पूर्णतः नीर्मूल नहीं हुए हैं। इसलिए पंजाब में आतंकवाद की संभावना को इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन वर्तमान सरकार इस मामले को सुलझाने में सक्षम है।

कुल मिलाकर देखें तो जिन जिन तत्वों को सिख चरमपंथ को फिर से सक्रिय होने की संभावना के लिए जिम्मेबार माना जाता है उन तत्वों में से केवल नशे के कारोबार वाला तत्व ही आतंकवाद के वापसी के लिए अनुकूल है, बांकी के तत्व सारे प्रतिकूल ही है। इसलिए आतंकवाद की वापसी की आशंकाओं पूर्णरूपेण निराधार नहीं है, लेकिन इस बार आतंकवाद की वापसी थोडी कठिन जरूर है। हां राजनीतिक करणों से इसे पनपने के लिए मैदान तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ जरूर की गयी है, लेकिन इस मामले में अबकी बार प्रदेश की सरकार सक्रिय है। इस मामले में पंजाब सरकार ने जहां एक ओर विगत 28 मार्च को राजुआणा के समर्थन में आन्दोलन को दबाने की कोशिश नहीं की गयी वही दूसरी ओर सरकार ने चरमपंथियों पर सिकंजा कसते हुए उसे अपने नियंत्रण में भी ले लिया है। गौरतलब है कि पुलिस ने विगत 28 मार्च को स्व0 बेअंत सिंह की हत्या के आरोपी सरदार बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी के खिलाफ पंजाब बंद के दौरान भड़काउ भाषण देने के आरोप में कई पृथक्तावादी नेताओं को हिरासत में ले लिया। जिसमें सिख आजादी संघर्ष समिति के सदस्य गुरदीप सिंह गोश, शिरोमणी अकाली दल, पंच प्रधानी के मुखिया दलजीत सिंह बिट्टू, शिरोमणी अकाली दल, दिल्ली के पंजाब अध्यक्ष बलविंदर सिंह बलिएवाल एवं बलविंदर सिंह जिंदू शामिल हैं। इसके अलावा पुलिस ने पृथक्तावादी नेता सिमरंजीत सिंह मान को भी गिरफ्तार कर रखा है। इससे यह साबित होता है कि भले सरकार आम सिखों को आन्दोलन के लिए छूट दे दी लेकिन उन नेताओं पर सख्ती बरती जो पंजाब का माहैल बिगाड सकते हैं।

पंजाब के मामले में इन तमाम उहापोहों के बीच केन्द्र की संप्रग सरकार और कांग्रेस की रणनीति अप्रत्याशित तरीके से संदेहास्पद लग रही है। हालांकि जब पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार के मुखिया और सदन के नेता सरदार प्रकाश सिंह बादल पंजाब विधानसभा में खुंखार आतंकवादी, मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे सरदार बलवंत सिंह के फांसी माफी पर एक प्रस्ताव पारित किया तो प्रतिपाक्षी कांग्रेस ने उसका जबरदस्त तरीके से स्वागत किया जबकि पंजाब के मुख्यमंत्रयी बेअंत सिंह कांग्रेस पार्टी जुडे हुए थे। इस संदर्भ में प्रेक्षकों का कहना है कि जिस चुनाव के बाद बेअंत सिंह पंजाब प्रदेश की कमान सम्हाले उस चुनाव में पटियाला के राजा कैप्टन अमरेन्द्रर सिंह भी चुनाव मैदान में थे। उस चुनाव में कैप्टन को अकालियों ने सहयोग भी किया था लेकिन कैप्टन चुनाव हार गये और कैप्टन को अपने वकाद का भी पता चल गया यही नहीं अकालियों को यह आभास भी हो गया कि पंजाब अब पृथक्तावाद को और नहीं झेल सकता है। फिर अकालियों के एक घरे ने अपनी रणनीति बदली और संसदीय व्यवस्था में विश्वास कर चुनाव मैदार में आ गया और कैप्टन कांग्रेस में शामिल हो गये। इसलिए कैप्टन के बारे में चर्चा आम है कि वे पंजाब में अकालियों से कही ज्यादा कट्टर और पृथक्तावादी मनोवृति से ग्रस्त हैं।

इधर पंजाब में आतंकवाद और पृथक्तावाद पर एक नजर दौरने से मामला और अधिक स्पष्ट होगा। सन् 1857 की लडाई में अंग्रजों को भारतीय जमिंदारों के अलावा गोरखा और सिखों ने सहयोग दिया। इसके बाद से अंग्रेजों ने सिखों पर भडोसा करना प्ररंभ कर दिया। इधर सिखों के मन में यह भाव जागृथ था कि अंग्रेज जाने के बाद वे अपने सिद्धांतों का मुल्क ले लेंगे, लेकिन जाते जाते अंग्रेज किसी कारण से ऐसा नहीं कर सके। इस मामले को लेकर मास्टर तारा सिंह ने एक विवाद को बनाये रखने के लिए सिखों को लामबंद किया और सिखों के अंदर यह प्रचारित किया कि दिल्ले उसके हकों के लिए उचित नहीं है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि तारा सिंह पाकिस्तान के साथ रहने की याजना बनई थी लेकिन पाकिस्तान के निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना के साथ तालमेल नहीं बैठने के कारण वे भारत के साथ आ गये लेकिन मास्टर तारा सिंह और उनके सहयोगियों के मन में यह भाव रह ही गया कि जिस प्रकार महराजा रंजीत सिंह ने सिख राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर एक राष्ट्र की नीव रखी थी उसी प्रकार सिखों का अपना एक देश होना चाहिए। उस विषबेल को पुष्पित करने का काम कालांतर में कई सिख नेताओं ने किया लेकिन सबसे ज्यादा उसे मजबूत किया सरदार ज्ञानी जैल सिंह ने। ज्ञानी जैल सिंह ने सिखों के लिए अलग से एक दल बनाया और उस दल का नाम रखा दल खालसा जिसका अध्यक्ष सरदसरा जरनैल सिंह भिंडरावाले को बनाया गया। इस देश में सबसे पहले न्यायालय को चुनौती देने का श्रेय सिख चरमपंथियों को जाता है। एक आपराधिक मामले में चरमपंथी दबाव के कारण गुरूद्वारा में न्यायालय लगाया गया और अपने ढंग से न्याय करवाया गया। इसका समर्थन कांग्रेस पार्टी ने भी किया और ज्ञानी जैल सिंह ने भी किया। सिख चरमपंथों को उस ममय और बल मिला जब केन्द्र सरकार के द्वारा कई स्तरों पर सिखों को रियायद दिया जाने लगा। फिर देश के बाहर की शक्ति चरमपंथियों को सहयोग करने लगी। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान के साथ था और पाकिस्तान सिखों पृथक्तावादियों को सहयोग करने लगा। खुली सीमा का लाभ लेकर सिखों को हथियार और पैसे पहुंचाये जाने लगे। साथ ही मादक पदर्थों की खेप भी सिख युवाओं को दिया जाने लगा। सीमावर्ती क्षेत्र के आर्थिक दृष्टि से कमजोर सिखों ने नशे के कारोबार में अपनी ताकत झोक दी और उसके संरक्षण के लिए हथियार भी उठा लिया। इधर सिख पंथ के जत्थेदारों में यह भावना भी घर करने लगी थी कि लगातार सिख युवक बाल कटवा रहे हैं और हिन्दू देवी देवताओं एवं पंडित पुजारियों की शरण में जा रहे हैं, जिससे सिख कौम को घाटा होगा। इन तमाम बिन्दुओं को ध्यान में रखकर सिख चिंताकों ने भी पृथक्तावाद को हवा देना प्ररंभ कर दिया। ये तमाम एसे कारण है जिससे पंजाब में आतंकवाद का उदय हुआ। हालांकि ये तमाम संभवनाएं पूर्ण रूपेण निर्मूल नहीं हुई है लेकिन पंजाबी बुद्धिजीवियों को इस बात का भडोसा हो गया है कि सिख राष्ट्र का निर्माण अगर हो भी जायेगा तो उसको स्थिर करने में बडी कुर्बानी देनी पडेगी। जहां तक विकास और सिखों के संरक्षण की बात है तो यह भारतीय संघ में रहकर भी हो सकता है, लेकिन पेंच यहां राजनीतिक है। जहां एक ओर प्रदेश की राजसत्ता पर कांग्रेस अपनी पकड मजबूत करना चाहती है वही अपने को सिखों की हिमायती मानने वाली पार्टी अकाली दल प्रदेश की सत्ता पर अपनी पकड बनाये रखना चाहती है। इस लडाई में सिख पृथक्तावाद को हवा दिया जा रहा है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पडा है। कांग्रेस नेतृत्व को विश्वास होने लगा है कि अकालियों के साथ जबतक भाजपा की युगलबंदी बनी रहेगी तबतक प्रदेश में सत्ता हथियाना आसान नहीं है। फिर अकालियों के जनाधार को चुनौती देना भी कांग्रेस के अकाशी नेताओं को कठिन जान पडता है। जानकारों का मत है कि कांग्रेस इस परिस्थिति में एक बार प्रदेश में आतंकवाद का माहौल खडा कर जहां एक ओर अकिलियों के साथ भाजपा को विलग करने की रणनीति पर काम कर रही है वही दूसरी ओर अकालियों को बदनाम कर प्रदेश में फिर से सत्ता पर कब्जे की योजना बना रही है। प्रेक्षकों की मानें तो वर्तमान माहौल के पीछे की रणनीति यही है।

वैसे केन्द्र सरकार की एक अध्यन संस्था ने भी पंजाब में आतंकवाद की वापासी पर अपनी आख्या प्रसारित की है। विगत दिनों रक्षा अध्यन एवं विश्लेषन संस्थान के अध्येता अजय लेने ने एक आख्या प्रस्तुत कर कहा कि अगर पंजाब के राजनेता, नौकरशाह, खुफिया बिभाग और पुलिस प्रशासन सतर्क नहीं रही तो पंजाब में फिर से आतंकवाद पनप सकता है। अजय की आख्या में यह भी कहा गया है कि पंजाब की वर्तमान सरकार इस मामले में उदासीन रवैया अपनाये हुए है। इस आख्या को लेकर पंजाब के बुद्धिजीवियों में भयानक मतभेद है। मामले पर गुरू नानक देव विश्वविद्यालय के सामाजिक अध्यन संस्थान के अध्यक्ष डॉ0 सुखदेव सिंह सोहल ने अपनी प्रतिकृया में कहा कि इस बर के विधानसभा चुनाव ने साबित कर दिया है कि प्रदेश मे पृथक्तावाद का कोई स्थान नहीं है। डॉ0 सोहल की राय में अगर पृथक्तावाद की ताकत होती तो प्रदेश की जनता सिमरंजीत सिंह मान को समर्थन देती लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इसलिए यह कहना कि प्रदेश में फिर से आतंकवाद लैट सकता है और विगत दिनों राजुआणा के समर्थन में हुए आन्दोलन का राज्य सरकार का समर्थन था गलत है।

इधर पंजाब के बुद्धिजीवियों, व्यापारियों और राजनेताओं को इस बात की भी चिंता लगी हुई है कि प्रदेश अन्य प्रांतों से विकास के मामले में पिछड रहा है। इस प्रकार की स्थिति के पीछे अन्य कारणों के अलावे जो सबासे बडा करण माना जा रहा है वह पंजाब का आतंकवाद भी है। आतंकवाद के कारण प्रदेश की युवा पीढी बरबार हो गयी। प्रदेश के उद्योग और खेती पर उसका नकारात्मक प्रभाव पडा। यही नहीं प्रदेश के नौजवानों मे नशा की प्रवृति को बढावा मिला। आकडे बताते हैं कि पंजाब में आज 80 प्रतिशत युवक खतरनाक ढंग से नशे की चपेट में है। यह सूरत तभी बदलेगी जब पंजाब में पूर्णरूपेण शांति का माहौल कायम होगा। यही नहीं आतंकवाद के कारण संभव है प्रदेश के उद्योगधंधे दूसरे राज्यों में सिफ्ट कर जाये। अब हरियाणा, हिमांचल प्रदेश और उत्तराखंड की स्थिति उद्योग की दृष्टि से ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है। ऐसी परिथिति में पंजाब के राजनेताओं को यह भी चिंता है कि आतंकवाद किसी के लिए फायदेमंद नहीं हो सकता है। फिर पंजाब की सीमा पर तार की घेरेबंदी के करण भी इस प्रकार की स्थिति पर अंकुश लगाने में फायदा हो रहा है। तार की घेरेबंदी से सीमापार से निर्वाध हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लग गया है। तार की घेरेबंदी के करण नशे के कारोबार पर भी अंकुश लगा है।

पंजाब के आतंकवाद के अध्येताओं को इस बात की आषंका है कि अब माओवादी चरमपंथियों के कंधे पर चढकर पंजाब में आतंकवाद लौट सकता है। जानकारी में रहे कि भारत का माओवादी आतंकवाद चीन प्रयोजित है। इन दिनों चीन अप्रत्याशित तरीके से पाकिस्तान के साथ तालमेल बनाने में जुटा है। पाकिस्तान आज भी पंजाब के पृथक्तावाद को सह दे रहा है। फिर एक मीडिया आख्या यह भी कह रहा है कि अब माओवादियों का अगला टारगट पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा उत्तर भारत के राज्य भी हैं। उसमें पंजाब को माओवादी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मान रहे हैं। पंजाब पर माओवादियों का विशेष ध्यान है। ऐसी परिस्थिति में अगर सिख पृथक्तावादी, माओवादियों से हाथ मिला लेता हैं तो एक बार संभव है कि पंजाब में आतंकवाद की पुनः वापसी हो जाये।

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