श्रेय के लिए समीक्षा के बहाने शिलान्यास

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प्रमोद भार्गव

हमारे राजनेताओं में श्रेय लेने की होड़ इस हद तक हावी हो गई है कि वे बाला-बाला योजना का समीक्षा के बहाने शिलान्यास भी करने लगे हैं। मध्यप्रदेश के शिवपुरी में एक ऐसा ही हौलनाक वाक्या देखने में आया। यहां केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दो केंद्रीय मंत्रियों ने ग्वालियर से देवास को जाने वाली उस चतुर्भुज सड़क का भूमि पूजन कर शिलान्यास का पत्थर टांक दिया, जिस सड़क को अभी वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी नहीं मिला है। यही नहीं इस भूमि-पूजन में श्रेय लेने की होड़ इतनी बलवती रही कि इस कार्यक्रम के लिए न तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएएचआई) ने अनुमति दी और न ही जिला प्रशासन शिलान्यास स्थल पर उपस्थित रहा। यह कार्यक्रम संपूर्ण राजनीतिक स्तर पर जिला कांग्रेस के सौजन्य से संपन्न करा लिया गया। इसमें केंद्रीय सड़क एवं भूतल परिवहन राज्यमंत्री जितिन प्रसाद और उद्योग व वाणिज्य राजमंत्री तथा क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल थे। राजनीति में श्रेय लेने की यह होड़ कानून व नैतिक तकाजों पर जबरदशत कुठाराघात है।

ग्वालियर से देवास चतुर्भज राजमार्ग परियोजना मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी सड़क परियोजना है। करीब 450 किलोमीटर लंबी इस योजना पर 3600 करोड़ रूपए खर्च होने हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस योजना को धरातल पर लाने का श्रेय गुना-शिवपुरी लोकसभा सांसद व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाता है। सिंधिया केवल अपने संसदीय क्षेत्र में ही नहीं पूरे ग्वालियर-चंबल अंचल के संपूर्ण विकास के लिए हमेशा प्रतिबद्धता के साथ प्रयत्नशील रहते हैं। दायित्व निर्वहन की इसी जिम्मेबारी के चलते वे तमाम विकास योजनाएं इस क्षेत्र में लाए। शिवपुरी में पेयजल आपूर्ति के लिए मणिखेड़ा पेयजल परियोजना तथा मल विसर्जन योजना (सी-वेज प्रोजेक्ट) उन्हीं की देन हैं। गुना वायपास सड़क निर्माण तय समय सीमा से पहले कराकर उन्होंने सड़क निर्माण के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित कराया। प्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक नगरी चंदेरी का जिस पुरातन और आधुनिक समन्वय के साथ सिंधिया ने कायाकल्प कराया है, वह एक अनूठा उदाहरण है। इसका विस्तार देश के खण्डहरों में तब्दील हो रहे इतिहास तथा पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण नगरों में करने की जरूरत है। सिंधिया की पहल पर ही मालनपुर में मोदी समूह एक हजार करोड़ की लागत से कांच कारखाना लगाने जा रहा है।

इस सब के बावजूद श्रेय लेने की होड़ में सिंधिया ने ग्वालियर-देवास सड़क का भूमि पूजन करके जल्दबाजी की। दूसरी गलती उन्होंने यह कि उन्होंने एनएएचआई व जिला प्रशासन को पूरी तरह किनारे करके जिला कांग्रेस के सौजन्य से इस राष्ट्रीय महत्व के आयोजन को अंजाम दिया। कोई भी राजनीतिक दल केंद्र या राज्य सरकार का नेतृत्व संभालकर संविधान सम्मत विधायिका का हिस्सा बन जाता है। नतीजतन नीतियों के अनुरूप चलकर योजनाओं को कार्यपालिका के साथ मिलकर क्रियान्वित करने का विधायिका का संवैधानिक दायित्व व नैतिक कत्र्तव्य बनता है। क्योंकि राष्ट्रीय कोष से वजूद में आने वाली कोई भी परियोजना किसी राजनीतिक दल की नहीं राष्ट्र और सरकार की संपत्ति होती है। अपनी इस गलती का अहसास कमोबेश दोनों युवा व उत्साही नेताओं को था। इसलिए पत्रकारों से बातचीत में जितिन प्रसाद ने स्वीकारा भी कि भूमिपूजन व शिलान्यास का कार्यक्रम अधिकृत नहीं था। वे तो केवल योजना की समीक्षा करने आए थे। उन्होंने मंजूर किया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अभी परियोजना को एनओसी नहीं मिली है। इसमें अभी चार माह का समय और लग सकता है। इस एनओसी के बाद ही ग्वालियर से गुना के बीच इस सड़क का निर्माण कार्य शुरू हो पाएगा। यह जल्दबाजी इसलिए की गई जिससे विकास की इस महत्वपूर्ण परियोजना का श्रेय भाजपा सरकार न हड़प न ले जाए। सिंधिया को सबसे ज्यादा खतरा उन्हीं की बुआ और ग्वालियर से भाजपा की सांसद श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया से रहता है।

हालांकि हो सकता है कि परियोजना को आरंभ होने में इससे भी ज्यादा समय लग जाए क्योंकि यह सड़क सोन चिडि़या अभयारण्य, (घाटीगांव) और माधव राष्ट्रीय उद्यान (शिवपुरी) से होकर गुजरेगी। करीब 36000 पेड़ों की बलि भी यह सड़क लेगी। इसलिए पर्यावरण व वन्य प्राणी संरक्षण के लिहाज से वन मंत्रालय की अनुमति का एकाएक मिलना मुश्किल काम है। भूमि अधिग्रहण और भूमि स्वामियों को मुआवजा देने का काम भी अभी शुरू नहीं हुआ है। इस काम के पूरे हुए बिना भी परियोजना का क्रियान्वयन संभव नहीं है।

इस परियोजना में एक नई बाधा यह भी आ गई है कि जिस दिलीप बिल्डकाॅन कंसट्रक्शन कंपनी को इस सड़क को बनाओ-चलाओ और स्थानांतरित करो (बीओटी) पद्धति के तहत ठेका दिया गया है, उस कंपनी के मालिक दिलीप सूर्यवंशी और उनके सहयोगी सुधीर शर्मा के ठिकानों पर आयकर विभाग ने हाल ही में छापे मारे हैं। यह कार्यवाही अभी भी जारी है। छापे की कार्यवाही जब तक पूरी नहीं हो जाती तब तक के लिए कंपनी के तमाम बैंक खाते और दफ्तरों में तालाबंदी कर दी गई है। कंपनी मालिकों के घरों, दफ्तरों व बैंक लाॅकरों से जो नकदी, सोना व चांदी बरामद हुए हैं, वे जब्ती में हैं। ऐसे विपरीत हालात में कंपनी आयकर के शिकंजे से बाहर आकर कब सामान्य रूप से कामकाज शुरू कर पाती है, यह कहना जल्दबाजी होगा। क्योंकि कंपनी के साथ प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों की बेनामी भागीदारी की भी अटकलें हैं। इन मंत्रियों ने अपनी काली कमाई इस कंपनी में लगाई हुई है। इस बाबत् मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह इस मामले में प्रदेश सरकार के मंत्रियों के संलिप्त होने की आशंका जताते हुए इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की पुरजोर मांग कर रहे हैं। हांलाकि पर्दे के पीछे रहकर एनएएचआई ने केंद्रीय मंत्रियों समेत कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को लजीज भोजन की व्यवस्था माधव राष्ट्रीय उद्यान के सेलिंग क्लाब पर की थी। सब कुल मिलाकर इस सड़क का शिलान्यास करके सिंधिया व जितिन प्रसाद ने जो जल्दबाजी दिखाई है, कालांतर में वह उन्हें सवालों के कठघरे में जरूर खड़ा करेगी ?

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