सामुदायिक रेडियो पर जीवंत संवाद करती किताब ‘कम्युनिटी रेडियो’

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कम्युनिटी रेडियो
कम्युनिटी रेडियो

CR Kitabपुस्तक समीक्षा
संजीव परसाईं
तकनीक के विस्तार के साथ ही संचार माध्यमों का तीव्र गति से विकास हो रहा है. सूचना के लिए कभी हम अखबारों पर निर्भर हुआ करते थे, फिर दौर आया रेडियो का और इसके बाद दूरदर्शन और फिर बांहें फैलायी टेलीविजन मीडिया ने. इस दौर में सोशल मीडिया ने भी अपनी ताकत दिखायी लेकिन इन सबके बीच खामोशी से कम्युनिटी रेडियो विस्तार पा रहा है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि प्रसारण का यह माध्यम लघु आकार में है और इसका यही स्वरूप इसकी पहचान है. कम्युनिटी रेडियो अभी शैशवकाल में है. 2016 में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नीति बनाकर इसे विस्तार देने का प्रयास किया है. जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि वाली पंक्ति चरितार्थ करता प्रसारण माध्यम का यह लघु स्वरूप उन गांवों-टोलों और मंजरों में सूचना पहुंचाने का कार्य कर रहा है, जहां अन्य संचार माध्यमों की पहुंच ना के बराबर है.
लगातार विस्तार पाते इस संचार माध्यम को जानने और समझने के लिए साहित्य लगभग ना के बराबर है. ऐसे में भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोज कुमार की किताब ‘कम्युनिटी रेडियो’ अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती है. किताब में कम्युनिटी रेडियो की उत्पति, विस्तार, देश-दुनिया में स्थिति, रेडियो स्टेशन निर्माण, संचालन, कार्यक्रम निर्माण, तकनीकी जानकारी तथा समय-समय पर केन्द्र सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहायता के साथ ही रेडियो स्टेशन आरंभ करने के लिए जरूरी नियम-शर्तों को शामिल किया गया है.
इस किताब के बारे में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई लिखते हैं-‘सामुदायिक रेडियो एक ऐसा संचार माध्यम है जिसे जनसामान्य को केन्द्र में रखकर नयी अवधारणा के स्तर पर मूर्त किया गया है. इस माध्यम पर अभी बहुत कुछ प्रकाश में नहीं आया है. इस दृष्टि से यह किताब इस माध्यम को सम्यक रूप से प्रकाश में लाती है. वे आगे लिखते हैं कि यह किताब रेडियो के उज्जवल इतिहास की परम्परा में सामुदायिक रेडियो को नए ढंग से न केवल परिभाषित करती है बल्कि हाशिये की जनता से संवाद का एक नया पुल निर्मित करती है.’
यह किताब उन लोगों के लिए तो जरूरी है ही जो कम्युनिटी रेडियो स्टेशन आरंभ करना चाहते हैं बल्कि प्रसारण माध्यम के विद्यार्थियों के लिए भी यह उपयोगी है. दिल्ली के आलेख प्रकाशन ने इस किताब का प्रकाशन किया है. 130 पृष्ठ वाली हार्डबोर्ड बाइंड किताब का मूल्य तीन सौ पचास रुपये है. लेखक मनोज कुमार की यह आठवीं किताब है. इसके पहले पत्रकारिता में साक्षात्कार विषय पर उनकी पहली किताब ‘साक्षात्कार’ का प्रकाशन मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी ने वर्ष 1995 में किया था. तब साक्षात्कार को पत्रकारिता में बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था किन्तु आज मीडिया में साक्षात्कार एक स्वतंत्र विधा के रूप में पढ़ाई जा रही है. इसके अलावा उनकी चर्चित किताबों में ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ हैं. श्री मनोज कुमार भोपाल से प्रकाशित मीडिया एवं सिनेमा की मासिक शोध पत्रिका ‘समागम’ का विगत 16 वर्षों से सम्पादन कर रहे हैं.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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