करगिलः समृद्ध विरासत का गवाह है

हमज़ा अली

logocharkhaकिसी भी क्षेत्र की पहचान उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत से होती है। यही विरासत उसे अन्य क्षेत्रों से अलग मुकाम दिलाता है। औद्योगिकीकरण और विकास की राह पर आगे बढ़ने के बावजूद दुनिया के लगभग सभी देश अपनी समृद्ध विरासत पर न सिर्फ गर्व करते हैं बल्कि उसे संजोये रखने का भी भरसक प्रयास करते हैं। कंप्यूटर और डिजिटलाइजेशन की दुनिया में जीने के साथ साथ अपनी भाशा और महान संस्कृति को जिंदा रखने और उसे आने वाली पीढ़ी को सौंपने के लिए हरसंभव कोशिशें भी जारी रखते हैं। भारत दुनिया के सबसे अनोखे सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान वाले देशों में प्रमुख स्थान रखता है। प्रत्येक राज्य की अपनी एक अलग पहचान है जो उसके सामाजिक ताने-बाने और संस्कृति को दर्शाता है। यद्यपि हमारे देश में महज़ दस किलोमीटर के बाद ही अलग भाशा और संस्कृति के फर्क को महसूस किया जा सकता है। बात चाहे बिहार की हो या फिर तमिलनाडू की अथवा पूर्वोत्तर राज्यों की। तेजी से शहरीकरण और विकास की ओर एक के बाद एक लंबी छलांग लगाने के बावजूद भारत के लगभग सभी राज्यों में आदिकाल से चली आ रही उसकी संस्कृति को फलते-फूलते देखा जा सकता है।

करगिल भी देश के उन क्षेत्रों में एक है जो अपने इतिहास और संस्कृति पर गर्व करता है। धरती पर स्वर्ग कहलाने वाले राज्य जम्मू-कश्मीैर का एक छोटा सा अंग करगिल को आज भी उसके समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। हालांकि विष्व पटल पर इसकी पहचान 1999 में हुई जब पाकिस्तान के साथ युद्ध ने करगिल को सुर्खियों में ला दिया था। परंतु इसकी ऐतिहासिक पहचान सबसे पहले 15वीं शताब्दी के आसपास मिलती है। जब वर्तमान में पाक अधिकृत कश्मीेर स्थित बलतिस्तान तक यह फैला हुआ था। इससे पूर्व इस समूचे क्षेत्र को पूरिक के नाम से संबोधित किया जाता था। करगिल के सेवानिवृत डिप्टी डायरेक्टर सनाउल्लाह मुंशी ने अपने एक आलेख में इस क्षेत्र के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि प्राचीन काल से करगिल कश्मीमर के राजा महाराजाओं के लिए राज्य विस्तार की दृश्टि से काफी महत्वपूर्ण रहा है। 13वीं शताब्दी तक पूरिक आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य दृश्टिकोण से बेहद उन्नत और शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित हो चुका था। अपने आलेख में श्री मुंशी इस बात का विषेश रूप से उल्लेख करते हैं कि करगिल नाम के संबंध में कई धारणाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इसका वास्तविक नाम ‘खर-रिक्ल‘ था, जिसका स्थानीय भाशा में अर्थ ‘साम्राज्य के बीच‘ होता है। धीरे धीरे यही नाम करगिल में बदलता चला गया। हालांकि इस धारणा के संबंध में कोई इतिहासकार किसी पुख्ता प्रमाण तक नहीं पहुंच सके हैं। आर्थिक संदर्भ में भी करगिल कभी प्रमुख व्यापारिक मार्ग के रूप में था। विभाजन से पहले तक करगिल एशियाई व्यापार नेटवर्क के केंद्र के तौर पर पहचाना जाता था। चीन और मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला स्लिक रूट इस रास्ते का एक हिस्सा था। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बटवारे के बाद यह क्षेत्र पूरी दुनिया से अलग थलग पड़ गया। जम्मू कश्मीरर पर्यटन विभाग के पूर्व महानिदेशक मो. अशरफ के अनुसार यह क्षेत्र कभी सर्दियों में भी दुनिया से अलग नहीं रहता था। करगिल-स्कर्दू मार्ग सभी मौसम में खुला रहता था। जो आगे चलकर गिलगित और फिर मध्य एशिया से जुड़ जाता था। परंतु सीमा निर्धारण के बाद स्लिक रूट केवल इतिहास की बातें रह गईं। रास्ते बंद हो जाने के कारण इस क्षेत्र का विकास भी प्रभावित हुआ।

एतिहासिक दृष्टिकोण के साथ साथ करगिल भौगोलिक रूप से भी कई अर्थों में देश के अन्य क्षेत्रों से अलग है। जम्मू-कश्मीकर स्थित लद्दाख अंचल अंतर्गत आने वाला करगिल हिमालयाई पर्वत शृंखलाओं के दुर्गम पहाड़ी के बीच अवस्थित है। चैदह हजार वर्ग किमी तक फैला करगिल देश के अन्य भागों से अत्याधिक ठंडा इलाका है। जहां का तापमान ठंड के समय शून्य से भी 40 डिग्री नीचे तक चला जाता है। पूरी तरह से बर्फ से ढ़के होने के कारण यह क्षेत्र साल के आधे महीने तक जमीनी रास्ते से दुनिया से कटा रहता है। इस दौरान यहां पहुंचने का एकमात्र रास्ता हवाई मार्ग रह जाता है। उन्नत हवाई अड्डा नहीं होने के कारण ठंढ़ के दौरान भारतीय वायु सेना का हेलीकाप्टर यहां के लोगों के लिए एकमात्र सहारा रह जाता है। परंतु इसी वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह में श्रीनगर से करगिल के बीच शुरू हुए निजी विमान सेवा ने लोगों की मुश्किलों को काफी हद तक कम कर दिया है। करगिल दुनिया का दूसरा ऐसा इलाका है जहां इतने कम तापमान में भी वर्षों से मानव निवास और विकास करते रहे हैं। भौगोलिक रूप से कठिन और दुर्गम इलाका होने के बावजूद यहां प्राकृतिक वनस्पतियां भरपूर मात्रा में पाई जाती हैं। जिसका इस्तेमाल दवाओं और जड़ी-बूटियों में किया जाता है। विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद यहां के स्थानीय निवासी पीढ़ी दर पीढ़ी बखूबी जीना सीख चुके हैं। हांड मांस को कंपा देने वाली सर्दी उनके इरादे को और भी मजबूत बना देता है। सर्दियों के दौरान दुनिया से कटे होने के बावजूद यहां जिंदगी हसंती और खिलखिलाती रहती है। सामान्य जनजीवन किसी प्रकार से प्रभावित नहीं होता है। हालांकि बदलते समय के साथ करगिल के सामाजिक जीवन में भी बहुत बदलाव आ चुका है। पारंपरिक परिधान की जगह नए फैशन ने ले ली है। पहले की तुलना में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में करगिल ने स्वंय को बदलते देखा है। लेकिन इसके बावजूद करगिल अपनी समृद्ध संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी गर्व के साथ आगे बढ़ा रहा है। (चरखा फीचर्स)

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