ऋग्वेद प्राचीन भारतीय समाज का गीत दर्पण

– हृदयनारायण दीक्षित

सभी जीवधारी शरीर और प्राण का संयोग हैं। लेकिन मनुष्य विशिष्ट है। मनुष्य जिज्ञासु है। बाकी प्राणी शारीरिक जरूरतों में सीमित हैं। जिज्ञासा की प्यास मनुष्य को प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। जिज्ञासा जानकारी की इच्छा है। दुनिया के सभी भूखंडों के मनुष्य में जिज्ञासा थी लेकिन इसका प्रामाणिक इतिहास नहीं मिलता। इसलिए सारी दुनिया यूनानी दार्शनिकों के चिंतन पर ही निर्भर है। यूनानी जिज्ञासा और सोंच-विचार का इतिहास ईसा के 600 वर्ष पहले ही शुरू हुआ। इस चिंतन में भारतीय वैदिक साहित्य की प्रतीतिंयां हैं। यूनानी चिंतन के पहले भारत में विपुल उपनिषद् साहित्य है। उपनिषद् कर्मकांड पूजा-पाठ से पृथक है। उपनिषद साहित्य में जिज्ञासा का लहलहाता उपवन है। लेकिन इन सबके पहले, यहां ऋग्वेद है। ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम काव्य है, प्राचीनतम समाज विज्ञान है, प्राचीनतम दर्शन है और इस तरह विश्व का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख।

दुनिया के सुदूर अतीत में बोली भाषा के सद्प्रयोग की एक महान घटना घटी। प्रकृति की शक्तियों का दर्शन-दिग्दर्शन हुआ। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश के साथ साथ सूर्य के भी शक्तितत्व का साक्षात्कार हुआ। जिज्ञासा को पंख लगे। तर्क-प्रतितर्क की कैची चली। वैज्ञानिक दृष्टिकोण आया। दर्शन को गति मिली, द्रष्टा भाव का जन्म हुआ। सत्य छंद बने। छंदों में रस थे, भाव थे, प्रीति थी लेकिन द्रष्टा ऋषियों ने ऐसे सारे छंदों को परम व्योम (शून्य) से उतरी ऋचा (काव्य पंक्तियाँ) बताया। वे गेय थीं, गीत थीं, उनमें पुलक थी, प्रीति थी, दर्शन था, विज्ञान था, रोजमर्रा की ऐषणाए थीं सो स्वाभाविक ही स्मृति ने उन्हें संजो लिया। बाद में इनका संकलन हुआ और नाम पड़ा ‘ऋग्वेद’।

‘विश्व की प्राचीन सभ्यताएं’ (सीताराम गोयल, विश्वविद्यालय प्रकाशन) की भूमिका प्रख्यात विद्वान डॉ0 वासुदेव शरण अग्रवाल ने लिखी है। उन्होंने ‘विश्ववारा संस्कृति शीर्षक’ से लिखा, ऋग्वेद में कहा है ‘सा संस्कृति प्रथमा विश्ववारा अर्थात् देव प्रजापति ने जिस सृष्टि की रचना की है, वह एक संस्कृति है। इसकी रचना में प्रजापति ने कितना प्रयत्न किया होगा, इसकी कुछ कल्पना विश्व के अन्य गंभीर रहस्यों को ध्यान में रखकर की जा सकती है। विश्व के गंभीर रहस्यों का कोई अंत नहीं है। मानव ने उन्हें समझने के लिए अनेक यत्न किये हैं।

भारत ने अध्यात्म को, यूनान ने सौंदर्य तत्व को, रोम ने न्याय और दंडव्यवस्था को, चीन ने विराट जीवन के आधारभूत नियम को, ईरान ने सत् और असत् के द्वंद को, मिस्र ने भौतिक जीवन की व्यवस्था और संस्कार को, सुमेर और म्लेच्छ जातियों ने दैवी दंड विधान को अपनी-अपनी दृष्टि से स्वीकार करके संस्कृति का विकास किया। संस्कृतियों का अध्ययन जरूरी है। इस अध्ययन के लिए प्राचीन साहित्य, काव्य, अर्थव्यवस्था, ज्ञान-विज्ञान और दार्शनिक सूत्र ही उपकरण हैं। पुरातात्विक उपकरण भी सहायक हैं। आधुनिक तकनीकी से भी सहायता ली जा रही है। लेकिन ऐसे सारे उपकरणों के बीच केवल ऋग्वेद ही एकमात्र सहारा है। ऋग्वेद मिस्र और सुमेर के लिए भी प्राचीन है। ऐतिहासिक भाषा विज्ञान और पुरातत्व से इस तथ्य की पुष्टि होती है।

भारतीय परंपरा वेदों को अपौरूषेय मानती है – वेद अनादि हैं, ईश्वर और प्रकृति की तरह वे भी नित्य हैं। प्रलय में भी वे नष्ट नहीं होते। वेद भारतीय आस्था हैं। वे भारतीय दर्शन, संस्कृति और सभ्यता का मूल स्रोत हैं। डॉ0 भगवान सिंह ने (हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य-आमुख) ठीक ही लिखा है वेद का नैतिक, बौध्दिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदर्श परवर्ती कालों पर कुछ इस तरह छाया रहा कि वेद को न मानने का अर्थ ही था नास्तिक। वेद ही ब्रह्म और वेद ही अंतिम प्रमाण। आखिर वह उपलब्धि का कौन सा शिखर बिंदु था जिस पर इस दौर में भारतीय समाज या कम से कम इसका स्वामी वर्ग पहुंचा था कि अपने पराभव के दिनों में भी वह इसी के सुखद स्वप्न देखता जीवित रहा और इसी को हासिल करने के मंसूबे पालता रहा। भारत ने वेद को अपना सर्वस्व माना। ईश्वर को भी न मानने वाले लेकिन वेद को मानने वाले आस्तिक कहे गये। वेद विश्व ज्ञान की अमूल्य अंतर्राष्ट्रीय धरोहर है। यूनेस्को ने भी ऋग्वेद को अंतर्राष्ट्रीय धरोहर माना (2008 ई0) है।

वेद असामान्य हैं, असाधारण हैं, इसलिए अपौरूषेय हैं। ब्रह्मवादी धारणा में सभी कार्यो का मूल कारण ब्रह्म (परमात्मा) है, इसलिए वैदिक ऋचाओं के सर्जन का श्रेय भी उसी को दिया जाना चाहिए। आधुनिक विचारधारा के अनुसार वेद ऋषियों की ही काव्य रचनाएं हैं। ऋग्वेद में स्वयं इसके साक्ष्य हैं। ऋग्वेद (मंडल 1 के 100वें सूक्त) के ऋषि वृर्षागिरि, ऋज्राश्वाम्बरीष, सहदेव भयमान व सुराधस है। मंत्र 18 कहता है हे इन्द्र, वृषागिरि के पुत्र ऋज्रासव, सहदेव आदि (उपरोक्त) आपको प्रसन्न करने के लिए यह स्तुति उच्चारण करते है। (ऋग्वेद 1.100.18, सायण) इसी मंडल के 109 वे सूक्त के मंत्र 2 में यह बात और स्पष्ट है हे इन्द्र! हे अग्नि! आपको सोमरस भेट करते हुए नये स्तोत्र बनाता हूँ – अथा सोमस्य प्रयती युवाम्यामि इन्द्राग्निी स्तोमं जनयामि नत्यम्। विश्वंभर नाथ रेऊ ने ऋग्वेद पर एक ऐतिहासिक दृष्टि (पृष्ठ-7) में बताया है कि ऋग्वेद में दो स्थानों (1.175.3 और 2.14.8) पर मंत्र-रचयिताओं ने अपना मनुष्य होना कहा है। उक्त संहिता में इस प्रकार के सैकड़ों मंत्र मिलते हैं जिनसे भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा (ऋग्वेद) उनकी (ही) रचना प्रकट होता है। रेऊ ने लिखा, इस संहिता के मनन से हमें, इसमें, अपने पूर्वजों की प्राचीनतम विचारधाराएँ धार्मिक और सामाजिक भावनाएं, तथा उनका क्रमिक विकास, काव्य-कल्पनाएं, प्रकृति-सौंदर्य के निरीक्षण का दृष्टिकोण, प्रकृति की रहस्यपूर्ण घटनाओं पर हर्ष-भय और आश्चर्य की भावनाएं तथा उनके विश्वासों की रूपरेखाएं मिलती हैं। संक्षेप मेें कहें तो कह सकते हैं कि वेदकालीन ऋषि जीवन के रहस्य को जानने को उत्सुक थे, और उन्होंने अपने सरल विश्वास द्वारा प्रत्येक वस्तु में और प्रकृति की प्रत्येक शक्ति में, उसके अधिष्ठाता के रूप से, देवत्व की भावना कर रखी थी। ऋग्वेद की रचना अचानक नहीं हुई। पहले प्रकृति और समाज को देखने के तमाम दृष्टिकोण विकसित हुए। विचार-विमर्श और तर्क-प्रतितर्क का वातावरण बना। जिज्ञासा के चलते तमाम प्रश्न भी उठते रहे। जिज्ञासा के केंद्र में सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक प्रश्नावली तो थी ही, दार्शनिक प्रश्न भी उठे।

ऋग्वेद एक प्रवाह है। यहां ऋग्वेद के पहले की अनुभूतियां हैं। तत्कालीन वर्तमान का रस, आनंद, राग द्वैष है। भविष्य की दृष्टि है। सत्य, शिव और सुंदर की त्रयी भी है। शुभ और अशुभ एक साथ हैं। जैसे अस्तित्व भूत, भविष्य, वर्तमान शुभ और अशुभ में भेद नहीं करता। वैसे ही ऋग्वेद के रचनाकारों ने भी शुभ और अशुभ, अतीत और वर्तमान को एक साथ रखा है। ऋग्वेद तत्कालीन समाज का गीत-दर्पण है। ऋग्वेद में समाज जीवन और सृष्टि रहस्यों से भरीपूरी काव्य ऋचाएं हैं। जैसे मनुष्य क्या है? सृष्टि क्या है? सृष्टि कैसे आयी? सृष्टि का कोई निर्माता/सृष्टर्िकत्ता भी है क्या? सृष्टि नहीं थी तो क्या था? जो था वह क्या था? शून्य था क्या? शून्य भी था तो यह शून्य क्या था? जो भी था वह क्या था? क्यों था? क्या सृष्टि ऊर्जा का खेल है? प्रकाश क्या है? ध्वनि क्या है? जल, अग्नि और आकाश क्या हैं? पृथ्वी क्या है? सूर्य क्या है? चांद क्या? तारे क्या? सृष्टि निर्माण में इनमें से किस तत्व का मूल योगदान है? क्या एक से ही सृष्टि बनी? या सबका साझा प्रयास यह सृष्टि है? कोई परमतत्व है क्या? देवता क्या हैं? वे भी सृष्टि के बाद आये? सत्य एक। अनुसंधार्नकत्ता ऋषि अनेक। सबने अपने ढंग से कहा। सबका संकलन है ऋग्वेद। ऋग्वेद विश्व ज्ञान का प्राचीनतम इतिहास और एनसाइक्लोपीडिया हैं।

* लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

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