पेट्रोल की बेलगाम कीमत और सरकार की संवेदनहीनता

विपिन किशोरे सिन्हा

वाकई अब हद हो गई। क्या अंग्रेजों की सरकार भी इतनी संवेदनहीन थी? शायद नहीं। आखिर यह सरकार किसकी है – पूंजीपतियों की, कारपोरेट घरानों की, तेल कंपनियों की या जनता की? सरकार का कोई भी प्रतिनिधि प्रथम तीन की सरकार होने की बात कभी भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकता। सड़क से लेकर संसद तक सरकारी मंत्री और सांसद अपनी सरकार को जनता की सरकार ही कहते हैं लेकिन यह सबसे बड़ा झूठ है। महंगाई से जनता कि कमर टूट चुकी है, लोगबाग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन की नेता कांग्रेस अध्यक्ष अपने विदेशी दौरों पर सरकार यानि भारत कि गरीब जनता के 1800 करोड़ रुपए फूंक चुकी हैं। सरकार कि फिजुलखर्ची, भ्रष्टाचार, काला धन, अकुशल प्रबंधन, पूजीपतियों की हित-रक्षा, अमेरिका परस्त नीतियों, अदूरदर्शिता और जनता के प्रति घोर असंवेदनशीलता की चरम परिणति है पेट्रोल कि कीमतों में बेलगाम वृद्धि। सुरसा के मुख की तरह बढ़ती महंगाई के भी यही मुख्य कारण हैं। पिछले डेढ़ साल में हमारी भ्रष्ट केन्द्रीय सरकार ने सात बार पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की। कीमत कब और कितनी कीमत बढ़ी उसका व्योरा रुपयों में निम्नवत है –

तिथि वृद्धि कुल कीमत

26.2.10 2.86 50.534

25.6.10 3.73 55.18

14.12.10 3.00 58.95

15.1.11 2.66 61.72

15.4.11 5.27 66.97

15.9.11 3.31 70.59

3.11.11 2.01 72.60 (ये सभी कीमते वाराणसी में लागू हैं)

सरकार ने पता नहीं कौन सी अर्थव्यवस्था लागू कि है जिसके कारण तेल कंपनियों को यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वे जब चाहें, जितना चाहें, घाटे का हवाला देकर कीमतें बढ़ा सकती हैं। समझ में नहीं आता कि यह स्वतंत्रता सिर्फ तेल कंपनियों को ही क्यों प्राप्त है? अगर यह स्वतंत्रता देश की बिजली कंपनियों को भी दे दी जाय, तो सभी बिजली बोर्ड फायदे में चलने लगेंगे, मोबाइल कंपनियों और बी.एस.एन.एल को दे दी जाय, तो वे अल्प समय में ही बेहिसाब मुनाफ़ा कमाकर दिखा सकते हैं, भले ही जनता की कमर टूट जाय। अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग मापदंड और नीतियां क्यों? इस्पात, सेल बनाता है, मूल्य निर्धारण सरकार करती है। अनाज किसान पैदा करता है, समर्थन मूल्य सरकार तय करती है। तेल के मामले में मुक्त व्यापार की बात की जाती है, बाकी मामलों में सरकारी नियंत्रण की। आइये जरा एक नज़र डालें अपने पड़ोसी देशों में पेट्रोल की वर्तमान कीमत पर। कीमतें भारतीय रुपए में दिखाई गई हैं –

पाकिस्तान – 26

बांग्ला देश – 22

नेपाल – 34

म्यामार – 30

अफ़गानिस्तान – 36

भारत – 72.60

एक ज्वलन्त प्रश्न है – क्यों अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों का सर्वाधिक असर भारत पर ही पड़ता है?

भारत में पेट्रोल की कीमत इसलिए सर्वाधिक है क्योंकि हमारी सरकार विश्व की सबसे असंवेदनशील सरकार है। जनता की पीड़ा, दुःख, यातना, कष्ट या असुविधा के विषय में सोचने वाला इस सरकार में एक भी व्यक्ति नहीं है। सारी सोच आयातित है। मूल्यवृद्धि पर कांग्रेसमाता और युवराज की चुप्पी चौंकानेवाली है। वैसे सर्वसाधारण और देशहित में यह तथ्य बताना अत्यन्त आवश्यक है कि अपने देश में भी पेट्रोल की बेसिक कीमत मात्र रु.16.50/लीटर ही है। शेष राशि केन्द्रीय कर, एक्साइज ड्‌युटी, विक्री कर, राज्य कर और भ्रष्टाचार कर के रूप में सरकार हमारी जेबों से लेती है। देश का 80% पेट्रोल मध्यम वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग के नागरिकों द्वारा ही उपयोग में लाया जाता है। इस वर्ग का सरकार पर सीधे कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। इसके उलट 80% डीजल की खपत करने वाले बड़े-बड़े कारखाने, पावर हाउस, ट्रान्सपोर्टर, पूंजीपति और भारतीय रेल है। किसान सिर्फ 5% डीजल की खपत करते हैं, लेकिन सरकार किसानों कि दुहाई देकर डीजल की कीमत नहीं बढ़ाती है। इसके पीछे असली कारण उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों की सरकार में असरदार घुसपैठ ही है। दो सौ साल तक हमें अंग्रेजों ने लूटा और आज़ादी के बाद कांग्रेस लूट रही है।

जागो जनता जागो!

जागो ग्राहक जागो!!

 

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