ऋतुराज बसन्त


सखि,बसन्त आ गया ।
धरती पर  छा  गया ।।
ख़ुशियाँ बरसा गया ।
सबके मन भा गया ।।
सरसों से खेत  सजे।
सबका मन मोह रहे।।
आमों में बौर  लदे ।
कुहू कुहू भली लगे ।।
बाग़ों में फूल खिले ।
भौंरे  हैं  झूम चले ।।
मन्द मन्द पवन  चली ।
मन की कली है खिली।।
शिशिर शीत भाग गया।
सुखद समय आ गया ।।
चहुँदिशि है छा गया
सौरभ  सरसा गया ।।
सखि, बसन्त आ गया ।
सुषमा बिखरा  गया ।।
**********
– शकुन्तला बहादुर

Previous article‘बागों में बहार है, कलियों पे निखार है’
Next articleआदमखोरों से मुकाबला कौन करेगा?
शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर. आप के यहाँ बसन्त आ गया. हमारे यहाँ सच में बाहर हिमपात हो रहा है. पर आज पिघलनेवाला हिमपात है. साथ आपकी सुन्दर कविता पढकर प्रफुल्लित हूँ.
    धन्यवाद.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here