आया वसंत छाया वसंत
लेकर आया खुशियां अनंत
नदियां बहतीं कल-कल, कल-कल
सुरभित पुष्पम चहुं दिग्दिगंत
गाती कोयल स्वर कुहुक-कुहुक
बोले पपीहा पिउ-पिउ रटंत
पादप करते तड़-तड़, तड़-तड़
झरने झरते झर-झर झरंत
धरती प्रसन्न अंबर प्रसन्न
जड़ चेतन पशु मानव प्रसन्न
ॠषि मुनियों का चित ध्यान मग्न
मदनोत्सव करते आर्य वृंद
चंदा चकोर या नृत्य मोर
पूरव से उगता सूर्य भोर
करते हैं जोड़कर, शीश नमन
आनंदित सृष्टि विमल पंथ
आया वसंत छाया वसंत
लेकर आया खुशियां अनंत