जब हम नदियों के संरक्षण की बात करते है तो बहुत ही अजीब सी भावना मन मे उठती है कि क्या ये सम्भव है? क्या हम नदियों का साफ सुथरा, स्वच्छ रख सकेंगे। नदियॉ इतनी दूषित ही क्यों हैं? क्या कारण है इसके पीछे? कुछ लोगों के विचार में भारत देश में व्याप्त अन्धविश्वास नदियों के दूषण का कारण है। हम आस्था और धर्म के नाम पर पता नहीं क्या-क्या नदियों में बहा देते हैं। बिना यह सोचे समझे कि यही पानी हम खाना बनाने एवं पीने के लिए प्रयोग करते हैं। यह कारण उचित है परन्तु एक सीमा तक और यह मुख्य कारण भी नहीं हैं बल्कि बहुत सारे कारणों में से एक कारण है। क्या कभी हम सोचते है कि वर्तमान में ही क्यों दिन प्रतिदिन नदियॉ प्रदूषित होती होती जा रही है। जबकि अब तो शिक्षा और जागरूकता के कारण पिछले 50-100 वर्षों की तुलना में हमारे अन्धविश्वास और अन्ध आस्था में भी कमी आयी है। आज हम उतने कर्म-काण्ड और अन्य धार्मिक कार्य नहीं करते हैं जितने कि 50 वर्षों पहले करते थे। लेकिन अगर पिछले 50-60 वर्षों, यह कहंे कि आज़ादी के बाद से हम देखें तो पायेंगे कि हमारे आस्था कर्मकाण्ड पूजा-पाठ आदि कम हुए हैं लेकिन फिर भी नदियों का प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। क्या कारण है फिर? मुख्या कारण है ओद्यौगीकरण, बाजारवाद । औद्यौगीकरण देश के विकास के लिए अति आवश्यक है लेकिन यही औद्योगीकरण कितनी बीमारियों की जड़ है और नदी प्रदूषण का मुख्य कारण भी है। देश की अधिकतर फैक्ट्रियों, उद्योगों का कचरा, रसायन सब का सब नदियों में प्रवाहित हो रहा है उसे रोकने का कोई उपाय नहीं है जहॉ हो भी सकता है वहॉ उद्योगपति अपने लाभ वृद्धि के लिए भ्रष्टाचार करके करना ही नहीं चाहते है। आप खुद सोचिए कि फूल-पत्तों बताशों से पानी अधिक दूषित होता है या फिर खतरनाक रसायन, गन्दा कचरा आदि से। देश में सरकार को उद्योगीकारण का बढ़ावा देने के साथ-2 उनसे होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के उपाय भी साथ-2 ही करने चाहिए। किसी भी उद्योग को लगाने की अनुमति तब तक नहीं देनी चाहिए जब तक की उसमें उससे होने वाले प्रदूषण, या फिर चाहे वो ध्वनि प्रदूषण हो या फिर जल प्रदूषण के ठोस योजना ना हो और उसे अम्ल में लाने की तत्परता ना हो। जो वर्तमान में उद्योग है और जिनका कचरा सीधे नालों में द्वारा नदियों में जाता है उसकी तुरन्त रोक लगायी जानी चाहिए। उद्योग मालिकों को सख्त कानून के द्वारा रोक लगानी चाहिए। जो उद्योग इस तरह के उपाय अपना रहा है उसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जैसे कर में छूट या अन्य जिससे की अन्य उद्योगपति भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित हो। सरकार को नदियों के प्रदूषण के लिए सिर्फ धर्म और आस्था को ना कोस कर ठोस उपाय करने चाहिए। और सिर्फ सरकार ही क्यों यह तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वो नदियों को दूषित न करें। धर्म और आस्था कभी नहीं कहते की गन्दगी फैलाओ और प्रदूषण बढ़ावो, बल्कि हमें अपने धार्मिक कार्य भी स्वच्छता और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए करने चाहिए। हम सभी को यह संकल्प करना होगा कि हम ना तो खुद नदियों में प्रदूषण करेंगे और ना ही किसी को करने देंगे। इसके अतिरिक्त सरकार को भी नदियों के घाटों पर इस प्रकार के इन्तज़ाम करने चाहिए कि धार्मिक पूजन आदि से दूषित पानी को भी एक निश्चित दूरी के बाद साफ किया जा सके और जो सबसे अधिक नदियों के दूषण के कारण हैं, उद्योगों पर नकेल कसना चाहिए। तभी हम अपनी नदियों को साफ-स्वच्छ रख सकेंगे और पानी से होने वाली बीमारियों से भी निजात पा सकेंगे।