यूपीः बुंदेलखंड के लिये मोदी-योगी का रोडमैप

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योगी सरकार ने बुदेलखंड की पौने दो करोड़ से अधिक आबादी को उम्मीद की नई किरण दिखाई है। कहने को तो पीएम मोदी भी बुंदेलखंड की समस्याओं को लेकर तमाम मौकों पर चिंता जता चुके हैं,लेकिन जब तक प्रदेश में अखिलेश सरकार बैठी थी मोदी के हाथ बंधे नजर आ रहे थे। परंतु योगी के सत्तारूढ़ होते ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने बुंदेलखंड के विकास के लिये खाका खींचना शुरू कर दिया है। संभवता बुंदेंलखंड की तकदीर को संवारने के लिये पैसे की तंगी आड़े नहीं आयेगी। बंुदेलखंड के विकास के लिये रोडमैप तैयार किया जा रहा है। योगी सरकार का सबसे अधिक ध्यान क्षेत्रीय जनता को पेयजल की समस्या से छुटकारा दिलाना, 24 घंटे बिजली की उपलब्धता और सिंचाई व्यवस्था पर है। सीएम योगी का प्रथम बुंदेलखंड दौरा और उस दौरान योगी का हावभाव काफी कुछ संकेत दे गया। योगी ने सभी समस्याओं पर गंभीरता से चिंतन-मनन किया। पेयजल की समस्या से निपटने के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा तवज्जो रहेगी। तालाब खुदवाना और कुंओं की स्थिति सुधारना योगी सरकार की प्राथमिकता में शामिल है।पलायन भी यहां की बड़ी समस्या है। पलायन को रोकने के लिये उद्योग-धंधे तो लगाये ही जायेंगे इस इलाके को 6 लेन से भी जोड़ा जायेगा। बुंदेलखंड में 19 विधान सभा क्षेत्र हैं और सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है,इसीलिये बुंदेलखंड का विकास बीजेपी के लिये सियासी रूप से भी आवश्यक है। योगी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यहां ऐसा कुछ कर देना चाहती है जिससे इस इलाके से मोदी की राह में रूकावट नहीं आये
बुंदेलखंड में 07 जिले (बांदा, चित्रकूट, महोबा,हमीरपुर, झांसी, जालौन, ललितपुर) शामिल हैं। आज भले की बुंदेलखंड सूखे सहित तमाम समस्याओ ंसे जूझ रहा हो,लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहा। चारों तरफ पहाडी श्रंखलायें, ताल-तलैये और बारहमासी नालों के साथ काली सिंध, बेतवा, धसान, केन और नर्मदा नदिओं वाले क्षेत्र का वर्तमान बहुत दुखदायी हो चुका है। यहाँ की जमीन खाद्यान, फलों, तम्बाकू और पपीते की खेती के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है। यहाँ सारई, सागौन, महुआ, चार, हर्र, बहेडा, आंवला, घटहर, आम, बैर, धुबैन, महलोन, पाकर, बबूल, करोंदा, समर के पेड़ पूरे क्षेत्र में पाए जाते रहे हैं। बुंदेलखंड प्रकृति के काफी करीब है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के अधिकांश गांवों के नाम वृक्षों (जमुनिया, इम्लाई), जलाशयों (कुआँ, सेमरताल), पशुओं (बाघडबरी, हाथीसरा, मगरगुहा, झींगुरी, हिरनपुरी), पक्षियों, घास-पात या स्थान विशेष के पास होने वाली किसी खास ध्वनि के आधार पर रखे गये हैं, पर आजादी के बाद तमाम सरकारों की बुंदेलखंड को लेकर निराशावादी सोच ने इसे कहीं का नहीं रखा। यहां के विकास के लिये बनाई गईं अनाप-शनाप नीतियों ने इस क्षेत्र को बंूद-बूंद पानी के लिये मोहताज कर दिया है। यहाँ प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की नीतिओं ने खेती को भी सूखा दिया। पिछले 15 वर्षों र्में बुंदेलखंड में खाद्यान उत्पादन में 58 फीसदी और उत्पादकता में 22 प्रतिशत की कमी आई है।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र तीस लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इनमें से 24 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है परन्तु इनमें से मात्र चार लाख हेक्टेयर भूमि की ही सिंचाई हो पा रही है, क्योंकि इस इलाके में खेती के विकास के लिए सिंचाई की ऐसी योजनायें ही नहीं बनाई गई, जिनका प्रबंधन कम खर्च में समाज और गाँव के स्तर पर ही किया जा सके। बड़े-बड़े बांधों की योजनाओं से 30 हजार हेक्टेयर उपजाऊ जमीन बेकार हो गई। ऊँची लागत के कारण खर्चे बढे,लेकिन यह बाँध कभी भी बहुज ज्यादा कारगर नहीं साबित हुए। बुंदेलखंड में पिछले एक दशक में 09 बार गंभीर सूखा पड़ा है। बुंदेलखंड में जंगल, जमीन पर घांस, गहरी जड़ें ना होने की कारण तेज गति से गिरने वाला पानी बीहड़ का इलाका पैदा कर रहा है। बुंदेलखंड को करीब से जानने वाले कहते हें कि केवल बारिश में कमी का मतलब सुखा ़ नहीं है, बल्कि व्यावहारिक कारणों और विकास की प्रक्रिया के कारण पर्यावरण चक्र में आ रहे बदलाव सूखे के दायरे को और विस्तार दे रहे हैं।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड क्षेत्र के जिलों के कुओं में पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। भू-जल हर साल 2 से 4 मीटर के हिसाब से गिर रहा है। वहीं दूसरी ओर हर साल बारिश में गिरने वाले 70 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में से 15 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही जमीन में उतर पाता है।
बात अतीत की कि जाये तो बुंदेलखंड प्रक्रति के प्रकोप से कभी अछूता नहीं रहा है। पानी का संकट वहां इसलिए पनपता रहा क्यूंकि वहां कि भोगोलिक और जमीनी स्थितियां बारिश के पानी को टिकने नहीं देती हैं। वहां जमीन में पत्थर भी है और कुछ इलाकों में अच्छी जमीन भी। यही कारण है कि बुंदेलखंड में राजा-महाराजाओं ने तालाबों के निर्माण को तवज्जो दी और कृषि के तहत ऐसी फसलों को अपनाया जिनमे पानी कम लगता है। बुंदेलखंड में पिछले छह साल में 3,223 किसान आत्महत्या कर चुके हैं,जबकि मुआवजा कुछ ही किसानों को मिल सका है। 1987 से आज तक यहां 19 बार सूखा पड़ चुका है।
बात योगी सरकार के प्रयासों की कि जाये तो योगी सरकार ने बुंदेलखंड को फौरी तौर पर 47 करोड़ रूपये पेयजल समस्या से निपटने को दिये हैं। योगी पीएम मोदी से मिलकर भी बुंदेलखंड के लिये पैकेज की मांग कर चुके हैं,जबकि अखिलेश सरकार ने चुनाव से ठीक पूर्व अंतिम बजट में इस क्षेत्रों की योजनाओं की राशि तीन गुना बढ़ाकर 14 सौ करोड़ कर दी थीं। पेयजल की योजनाओं के लिये भी 200 करोड़ रखे गये थे। बुंदेलखंड को स्थायी तौर पर सूखे से निजात दिलाने के लिए केंन्द्र की मोदी सरकार 17 सूत्री रणनीति पर काम कर रही है तो योगी सरकार ने बुंदेलखंड को संकट से उबारने के लिये अधिकारियोें के पेंच कसने शुरू कर दिये हैं। योगी काफी बारीकी के साथ यहां की समस्याओं पर नजर जमाये हैं। कुल मिलाकर मोदी-योगी ने बुंदेलखंड के लिये रोडमैप तो तैयार कर लिया है, लेकिन इसे अमली जामा पहनाना बाकी है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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