रोहिंग्या घुसपैठियों के रद्द होंगे पहचान-पत्र

0
142

संदर्भ-ः संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग के शरणार्थी पहचान-पत्र को भारत में मान्यता नहीं

प्रमोद भार्गव
भारत सरकार रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठिए और शरणार्थीयों की पहचान व वापसी की राह आसान करने के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है। इस नाते सरकार ने रोहिंग्यों समेत सभी अवैध प्रवासियों के प्रति सख्ती दिखाते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी होने वाले शरणार्थी पहचान-पत्र की मान्यता रद्द कर दी है। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी सरकार के दबाव में म्यांमार सरकार ने भारत से अनुरोध किया है कि यहां अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या शरणार्थीयों की पहचान की पुश्टि के लिए जरूरी पहल की जाए।इस मकसद की पूर्ति के लिए दिल्ली स्थित म्यांमार दूतावास ने भारत सरकार को दो भाषाओं वाले फार्म का नया प्रारूप उपलब्ध कराया है, ताकि स्थानीय भाषा  की जानकारी के आधार पर शरणार्थीयों की पहचान तय की जा सके। इस नजरिए से भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों को शरणार्थी अथवा घुसपैठियों की मूलभाषा  के आधार पर नए सिरे से आंकड़े जुटाने के निर्देश  दिए हैं। ये दोनों ऐसे आगे बढ़ाए गए कदम हैं, जिनसे इन प्रवासियों की वापसी आसान होगी। गृह मंत्रालय ने राज्यों को निर्देश वैध रूप से देश  में रह रहे सभी लोगों के राज्य सरकारों की ओर से जारी किए गए मतदाता पहचान-पत्र, राशन-कार्ड, आधार-कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस आदि को रद्द करने को कहा है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों के पुलीस प्रमुखों और राज्य गृह मंत्रालयों को जारी  विशेष  पत्र में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड भारत में कोई महत्व नहीं रखता है। क्योंकि इस बाबत शरणार्थीयों के  विषय को लेकर हुए 1951 के संयुक्त राष्ट्र समझौते पर भारत ने दस्तखत ही नहीं किए हैं। इस कारण यह समझौता भारत पर लागू नहीं होता है। इनमें से केवल उन लोगों के आधार कार्ड बनेंगे, जिन्हें शरणार्थी  के रूप में भारत सरकार ने भारत में रहने की इजाजत दी हुई है। मालूम हो भारत में रोहिंग्याओं के अलावा बांग्लादेशी और अफगानी घुसपैठिए भी बड़ी संख्या में रह रहे हैं। साफ है इन घुसपैठियों की पहचान ठीक से होती है तो सभी घुसपैठियों का देश  निकाला आसान हो जाएगा।
आजादी के 70 साल के भीतर यह पहली बार संभव हुआ है कि असम में अवैध रूप से रह रहे सात रोहिंग्या घुसपैठियों की वापसी म्यांमार को कर दी गई है। हालांकि यह संख्या बहुत कम है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार ही 14,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं। जबकि इनके अनाधिकृत तौर से रहने की संख्या करीब 40,000 है। फिलहाल जिन सात अवैध आव्रजकों को वापस भेजा गया है, वे असम के सिलचर जिले के एक बंदीगृह में रह रहे थे। इन घुसपैठियों को म्यांमार के राजनयकों का काउंसलर एक्सेस दिया गया था। इसी के जरिए इनकी सही पहचान कर घर वापसी हुई है। इनकी म्यांमार के नागरिक होने की  पुष्टि  तब हुई, जब इस देश  के रखाइन राज्य का प्रमाणिक पता मिला। अब नए फार्म में घुसपैठियों एवं शरणार्थीयों की मूल भाषा  की जानकारी के साथ म्यांमार सरकार के दस्तावेज और भारत लाने वाले एजेंट के बारे में जानकारी भी प्राप्त की जाएगी। हालांकि अराजकता और हिंसा के जिस माहौल में जो लोग और समूह अचानक पलायन करते हैं, उनकी पहली  कोशिश  जीवन और धन व सोने चांदी के गहने बचाने की होती है। अभिलेखों की सुरक्षा प्राथमिकता नहीं होती है। भारत जिस एजेंट के जरिए ये लोग आए हैं, उसका ब्यौरा भी मुहैया कराना मुश्किल होगा, क्योंकि जिस हड़बड़ी में इन्हें लाया गया है, उसमें एजेंट के द्वारा दिए दस्तावेज इनके पास हैं भी अथवा नहीं, यह कहना भी मुश्किल है। इस  द्रष्टि  से इनकी पहचान मातृ भाषा  के जरिए की जाना कहीं ज्यादा तर्कसंगत है। बहरहाल इनकी पहचान जल्द से जल्द की जाकर इनकी वापसी जरूरी है। क्योंकि ये एक ओर जहां देश  की सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं, वहीं देश  आजीविका के संसाधन भी हथिया रहे हैं।
भारत में गैरकानूनी ढंग से घुसे रोहिंग्या किस हद तक खतरनाक साबित हो रहे हैं, इसका खुलासा अनेक रिपोर्टों में हो चुका है, बावजूद भारत के कथित मानवाधिकारवादी इनके बचाव में बार-बार आगे आ जाते हैं। जबकि दुनिया के सबसे बड़े और प्रमुख मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि म्यांमार से पलायन कर भारत में शरणार्थी बने रोहिंग्या मुसलमानों में से अनेक ऐसे हो सकते हैं, जिन्होंने म्यांमार के अशांत  रखाइन प्रांत में हिंदुओं का नरसंहार किया हैं ? रोहिंग्याओं  ने 25 अगस्त 2017 को इस प्रांत के दो ग्रामों में 99 हिंदुओं की निर्मम हत्या कर उन्हें धरती में दफन कर दिया था। रोहिंग्या आतंकियों ने अगस्त 2017 में रखाइन में पुलिस चैकियों के साथ म्यांमार के गैरमुस्लिम बौद्ध और हिंदुओं पर कई जानलेवा हमले किए थे। इस हमले में हजारों बौद्ध और हिंदु मारे गए थे। नतीजतन म्यांमार सेना ने व्यापक स्तर पर आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाया। जिसके परिणामस्वरूप करीब 7 लाख रोहिंग्याओं को पलायन करना पड़ा। इनमें से 40,000 से भी ज्यादा भारत में घुसपैठ करके शरण पाने में सफल हो गए, शेष  बांग्लादेश चले गए। संयुक्त राष्ट्र ने सेना की इस कार्रवाई को जातीय सफाया करार दिया था । सैनिकों पर रोहिंग्याओं की हत्या और उनके गांव नेस्तनाबूद करने के आरोप लगे थे। इसके उलट सेना ने भी रोहिंग्याओं पर ऐसे ही आरोप लगाए थे। इनमें उत्तरी रखाइन में हिंदुओं के कत्लेआम का मामला भी शामिल है। बाद में संगठन की रिपोर्ट से पुष्टि  हुई है कि रोहिंग्याओं ने दो ग्रामों मोंगडाव और मंग सेक में 99 हिंदुओं को मार डाला था। इनमें ज्यादातर महिला और बच्चे थे। संगठन को यह जानकारी इन ग्रामों में किसी तरह बचे रह गए आठ हिंदुओं ने दी थी।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने पिछले साल रोहिंग्या मुसलमानों को देश  नहीं रहने देने की नीति पर शीर्ष  अदालत में एक हलफनामा देकर साफ कर दिया था कि रोहिंग्या गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल हैं। ये अपने साथियों के लिए फर्जी पेनकार्ड, वोटर आईडी और आधार कार्ड उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ रोहिंग्या मानव तस्करी में भी लिप्त हैं। इन पर इंसानी मांस खाने के भी आरोप हैं। मांस खाते हुए ये यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं। देश  में करीब 40,000 रोहिंग्या रहे रहे हैं, जो सुरक्षा में सेंध लगाने का काम कर रहे हैं। इनमें से कई आतंकवाद में लिप्त हैं। इनके पाकिस्तान और आतंकी संगठन आईएस से भी संपर्क हैं। ये संगठन देश  में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। देश  में जो बौद्ध धर्मावलंबी हजारों साल से शांतिपूर्वक रह रहे हैं, उनके लिए भी ये हिंसा का सबब बन सकते हैं। 2015 में बोधगया में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान स्थित आंतकवादी संगठन लश्कर -ए-तैयबा ने रोहिंग्या मुस्लिमों को आर्थिक मदद व विस्फोटक सामग्री देकर इस घटना को अंजाम दिया था। वैसे भी भारत के किसी भी हिस्से में रहने व बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है, घुसपैठियों को नहीं। किसी भी पीड़ित समुदाय के प्रति उदारता मानवीय धर्म है, लेकिन जब घुसपैठिए देश  की सुरक्षा और मूल्य भारतीय समुदायों के लिए ही संकट बन जाएं, तो उन्हें खदेड़ा जाना ही बेहतर है। गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने संसद में जानकारी दी थी, कि सभी राज्यों को रोहिंग्या समेत सभी अवैध शरणार्थियों को वापस भेजने का निर्देश  दिया है। सुरक्षा खतरों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। आशंका जताई गई है कि जम्मू के बाद सबसे ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैदराबाद में रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जम्मू-कश्मीर  में रह रहे म्यांमार के करीब 15,000 रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके उन्हें अपने देश  वापस भेजने के तरीके तलाश  रही है। रोहिंग्या मुसलमान ज्यादातर जम्मू और साम्बा जिलों में रह रहे हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश राजधानी हैदराबाद में 3800 रोहिंग्यों के रहने की पहचान हुई है। ये लोग म्यांमार से भारत-बांग्लादेश सीमा, भारत-म्यांमार सीमा या फिर बंगाल की खाड़ी पार करके अवैध तरीके से भारत आए हैं।आंध्र प्रदेश  और जम्मू-कश्मीर  के अलावा असम, पश्चिम  बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश  में कुल मिलाकर लगभग 40,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर  देश  का ऐसा प्रांत है, जहां इन रोहिंग्या मुस्लिमों को वैध नागरिक बनाने के उपाय तत्कालीन महबूबा मुफ्ती सरकार द्वारा दिए गए थे। इसलिए अलगाववादी इनके समर्थन में उतर आए थे। इसी प्रेरणा से श्रीनगर, जबलपुर और लखनऊ में इनके पक्ष में प्रदर्शन भी हुए थे। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत शपथ-पत्र में साफ कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत देश  में कहीं भी आने-जाने, बसने जैसे मूलभूत अधिकार नहीं दिए जा सकते। ये अधिकार सिर्फ देश  के नागरिकों को ही प्राप्त हैं। इन अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर रोहिंग्या सुप्रीम कोर्ट में गुहार भी नहीं लगा सकते, क्योंकि वे इसके दायरे में नहीं आते हैं। जो व्यक्ति देश  का नागरिक नहीं है, वह या उसके हिमायती देश  की अदालत से शरण कैसे मांग सकता है ?
हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here