रोहिंग्या मुसलमान : समस्या और समाधान

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रोहिंग्या मुसलमान इन दिनों केवल भारत ही नहीं, तो बंगलादेश के लिए भी सिरदर्द बन गये हैं। ये लोग मूलतः बंगलादेशी ही हैं, जो बर्मा के सीमावर्ती क्षेत्र में रहते हैं। काम-धंधे के लिए बर्मा आते-जाते हुए हजारों परिवार वहां के अराकान या रखाइन क्षेत्र में बस गये, जो आज लाखों हो गये हैं।

आज तो भारत, बंगलादेश और बर्मा अलग-अलग देश हैं; पर 1935 तक भारत, बर्मा और श्रीलंका का एक ही गर्वनर जनरल (वायसराय) होता था। ब्रिटिश संसद ने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935’ से इन्हें अलग किया; पर लम्बे समय से वहां रहने के बावजूद बर्मा इन्हें अपना नागरिक नहीं मानकर अब निकाल रहा है। इसी से यह संकट उत्पन्न हुआ है। इसका कारण ये है कि कबीलाई जीवन होने के कारण हिंसा, लड़कियां उठाना और दूसरों के धर्मस्थल तोड़ना इनकी स्वाभाविक वृत्ति है।

बर्मा एक बौद्ध देश है। बौद्ध समुदाय अहिंसक और शांतिप्रिय है। काफी समय से वे लोग इनके उपद्रव सह रहे थे; पर जब पानी सिर से ऊपर हो गया, तो उन्हें लगा कि अब भी यदि चुप रहे, तो हम अपने देश में ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे। फिर हमारी दशा ऐसी ही होगी, जैसी बंगलादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं की है। अतः कुछ लोग शस्त्र लेकर इनं पर पिल पड़े। इनके नेता हैं मांडले के बौद्ध भिक्षु आशिन विराथु। वे पिछले 15 साल से इसमें लगे हैं। यद्यपि इसके लिए उन्हें 25 साल की सजा भी हुई; पर जनता के दबाव में सरकार को इन्हें सात साल बाद ही छोड़ना पड़ा। बाहर आकर ये फिर उसी काम में लग गये हैं।

पांचजन्य 1.10.2017 के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने रोहिंग्याओं को जापान के विरुद्ध लड़ने को शस्त्र दिये थे। उन्होंने कहा कि जीतने पर वे रोहिंग्याओं के लिए एक अलग मुस्लिम देश बना देंगे; लेकिन शस्त्र पाकर वे हिन्दुओं और बौद्धों का संहार करने लगे। केवल एक ही दिन (28.3.1942) में उन्होंने 20 हजार बौद्धों को मार डाला। हत्या और हिंसा का यह तांडव आगे भी चलता रहा।

1946 में स्वतंत्र होते ही बर्मा की सेना ने इनके विरुद्ध कार्यवाही कर इनकी कमर तोड़ दी। अतः ये शांत हो गये; पर 1971 में बंगलादेश बनने पर कई आतंकी समूह बनाकर ये फिर सक्रिय हो गयेे। दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देशों ने इन्हें समर्थन और पड़ोसी बंगलादेश ने इन्हें शस्त्र दिये। इस प्रकरण के बाद आशिन विराथु सक्रिय हुए। 28.5.2012 को एक बौद्ध महिला के बलात्कार एवं हत्या से पूरा देश भड़क उठा और फिर हर बौद्ध विराथु का समर्थक बन गया।

बर्मा की राष्ट्रपति आंग सान सू की नोबेल विजेता एवं मानवाधिकारवादी हैं; पर बर्मा का जमीनी सच देखकर उन्होंने भी रोहिंग्याओं को कहा है कि वे या तो शांति से रहें या कोई दूसरा देश देख लें। बर्मा में सेना को अनेक शासकीय अधिकार भी हैं। उनकी इच्छा के बिना संसद कुछ नहीं कर सकती। सेना रोहिंग्याओं को सबक सिखाना चाहती है। अतः वह इन्हें खदेड़ रही है। इससे ये यहां-वहां भाग रहे हैं। बंगलादेश के मूल नागरिक और वहां रिश्तेदारी होने से अधिकांश लोग वहीं जा रहे हैं। कुछ समुद्री मार्ग से सऊदी अरब, यू.ए.ई. पाकिस्तान, थाइलैंड, मलयेशिया, इंडोनेशिया आदि में भी गये हैं। भारत में इनकी संख्या 40,000 से चार लाख तक कही जाती है।

भारत में जो रोहिंग्या हैं, वे हर जगह अपने स्वभाव के अनुसार आसपास की खाली सरकारी जगह घेरकर मस्जिद और मदरसे आदि बना रहे हैं। हर दम्पति के पास छह-सात बच्चे भी हैं। अतः उनके आवास के पास गंदगी रहती है। सघन बस्तियों में उन्होंने कुछ दुकानें भी बना ली हैं। कुछ लोग मजदूरी आदि करने लगे हैं। इससे जहां एक ओर भारतीय संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है, वहां वे भारतीयों का रोजगार भी छीन रहे हैं। अर्थात जो स्थिति बंगलादेशी घुसपैठियों की है, वही क्रमशः इनकी हो रही है। अतः विस्फोटक होने से पहले ही समस्या सुलझानी होगी।

लेकिन ये हो कैसे ? सर्वप्रथम तो दुनिया के सब मुस्लिम देश दो-चार हजार करके अपने मजहबी भाइयों को आपस में बांट लें। भारत उन्हें वहां तक पहुंचा दे। या फिर ये सब हिन्दू या बौद्ध हो जाएं। भारत एक हिन्दू देश है। बौद्ध मत भी विशाल हिन्दू धर्म का ही अंग है। इससे भारतीयों की स्वाभाविक सहानुभूति उन्हें मिलेगी। मंदिर जाने से उनकी हिंसा और उग्रता घटेेगी। 20-30 साल में वे अपने कुसंस्कारों से मुक्त हो जाएंगे। दिल्ली में कुछ रोहिंग्या चर्च का आर्थिक और सामाजिक सहयोग पाने को ईसाई हो गये हैं। जब वे ईसाई हो सकते हैं, तो अपने पुरखों के पवित्र हिन्दू धर्म में भी आ सकते हैं।

दूसरा रास्ता उन्हें निकालने का है। यह बात कई केन्द्रीय मंत्रियों ने कही है; पर ये आसानी से तो जाएंगे नहीं। सरकार तो कई पार्टियों की बनीं; पर आज तक बंगलादेशी घुसपैठिये वापस नहीं भेजे गये। जो बात तब सच थी, वो आज भी सच है। इसलिए सेक्यूलरों के शोर पर ध्यान न देकर सख्ती करनी होगी। भारत सरकार इन्हें पकड़कर सौ-सौ के समूह में नौकाओं में बैठा दे। मानवता के नाते साथ में कुछ दिन का खाना, पानी और बच्चों के लिए दूध आदि रखकर इन्हें भारतीय समुद्री सीमा के पार छोड़ दिया जाए। फिर जहां इनकी किस्मत इन्हें ले जाए, ये वहीं चले जाएं।

विजय कुमार

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